पुस्तक परिचय
संस्कृत और प्राकृत के व्याकरण बद्ध हो जाने के पश्चात्! छठी शताब्दी में अपभ्रंश का प्रयोग आरंभ हो चुका था, लेकिन अपभ्रंश भाषा में रची गई महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाएँ आठवीं शताब्दी के बाद ही मिल पाती हैं ।
महाकवि पुष्पदंत अपभ्रंश भाषा के ऐसे समर्थ कवि हैं, जिन्हें अपभ्रंश के आदि कवि स्वयंभू देव के पश्चात् सर्वाधिक प्रसिद्धि और महत्त्व मिला है । आरंभ में कवि पुष्पदंत शैव-धर्म को मानते थे; कालांतर में किसी जैन मुनि के संसर्ग में आने के बाद जैन-धर्म में दीक्षित हो गए और राष्ट्रकूट राजाओं की राजधानी मान्यखेट में आकर उन्होंने अपने आश्रयदाता अमात्य भारत के अनुरोध पर जिन-भक्ति से प्रेरित होकर महापुराण का सृजन किया । इनके दो अन्य ग्रंथ हैं- जसहर चरिउ और णायकुमार चरिउ । दसवी शताब्दी में राष्ट्रकूट राज्य के संरक्षण में रहकर उन्होंने अपनी उपर्युक्त तीनों कालजयी कृतियों का सृजन किया है । इन सभी कृतियों में उनके युग की सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक, और साहित्यिक प्रवृत्तियों का व्यापक रूप में चित्रण किया गया है । तत्कालीन इतिहास के अभाव में समाज का पूर्ण विवरण प्रदान करने में हमें पुष्पदंत के ग्रंथ सहायता करते हैं ।
लेखक परिचय
योगेन्द्र नाथ शर्मा 'अरुण' (जन्म 1941 कनखल, हरिद्वार) कवि, जैन साहित्य के विद्वान तथा बाल साहित्यकार हैं । विभिन्न विधाओं की लगभग दो दर्जन कृतियाँ प्रकाशित । पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर लेखन । कई महत्वपूर्ण शैक्षिक संस्थानों की सलाहकार समितियों के सदस्य रहे तथा वर्तमान में साहित्य अकादेमी हिंदी परामर्श मंडल के सदस्य ।
अनुक्रमणिका
1
अपनी बात
7
2
भूमिका
9
3
परिस्थितियाँ एवं साहित्यिक परिवेश
19
4
जीवन परिचय तथा कृतित्व
27
5
वैचारिक प्रदेय एवं महत्व
52
6
कला-सौष्ठव
72
उपसंहार
93
परिशिष्ट –
1. सूक्ति कोश
96
2. त्रिषष्टि शलाकापुरुष सूची
99
3. महाकवि पुष्पदंत के ग्रंथों की पांडुलिपियों की प्रतियाँ
101
4. ग्रंथानुक्रमणिका
103
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