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पुराण पुरुष- योगिराज श्री श्यामाचरण लाहिरी सम्पूर्ण जीवनी: Purana Purusha- Yogiraj Shri Shyamacharan Lahiri

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Item Code: HBF184
Author: Ashok Kumar Chattopadhyay
Publisher: Sanatan Yogadharma Prasar LLP
Language: Hindi
Edition: 2019
ISBN: 9788194127222
Pages: 402
Cover: PAPERBACK
Other Details 9.00x6.00 inch
Weight 510 gm
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Book Description
प्रस्तावना

महामहोपाध्याय स्वर्गीय गोपीनाथ कविराज महाशय एवं अन्य अनेक महानुभावों की आन्तरिक इच्छा थी कि मैं अपने पितामह दिवंगत श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की पूरी जीवनी लिखूँ। जीवनी लिखने के प्रति सबों का आग्रह इसलिए भी था कि मेरे पास पूज्य स्वर्गीय पितामह की स्वहस्त लिखित २६ डायरियाँ हैं एवं में बराबर अपने पिता के निकट रहा हूँ; एवं उनका स्नेहपात्र था ।

पौराणिक युग के समस्त ऋषि एवं मुनि गृहस्थ थे, उन्होंने गृहस्थाश्रम में रहकर साधना द्वारा जिस तत्त्व की प्रत्यक्ष अनुभूति प्राप्त की थी वह इन दिनों अब तक हजारों वर्षों के भीतर भी उपलब्ध नहीं; किन्तु लाहिड़ी महाशय ने गृहस्थ आश्रम का आजीवन पालन करते हुए तथा सरकारी सेवा में कार्यरत रहकर पेन्शन प्राप्त करने तक और, अन्त में प्राइवेट नौकरी करते हुए भी, इन सब के बीच साधना द्वारा जिन सब प्रत्यक्ष अनुभूतियों एवं दर्शन, श्रवण आदि के माध्यम से जिस आध्यात्मिक जगत का सन्धान किया; वह निःसन्देह इस युग में अन्य किसी के द्वारा सम्भव नहीं। इस सम्बन्ध में सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं कि योगमार्ग में प्रत्यक्ष अनुभूति-सम्पन्न साधक इस युग में महात्मा कबीरदास के पश्चात् एकमात्र लाहिड़ी महाशय ही हुए हैं। अनेक लोगों की ऐसी धारणा थी विशेष रूप से उनके शिष्यों के बीच ऐसी मान्यता थी कि कबीरदास ने ही इस जन्म में उत्तम ब्राह्मण-कुल में जन्म ग्रहण किया है हालांकि इसका कोई साक्षात या ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है। फिर भी कबीरदास की वाणी एवं लाहिड़ी महाशय की लिपिबद्ध अनुभूतियाँ जो उनकी हस्तलिखित डायरियों में प्राप्त होती हैं उससे लगता है, यही धारणा सही है। कबीरदास मरते समय तक गृहस्थ थे। और लाहिड़ी महाशय भी गृहस्थाश्रमी थे। कबीरदास ने कहा है "झीनी-झीनी चदरिया बीनी रे।" -उनका पालनपोषण जुलाहे के घर हुआ, वे ताँत बुनने का काम किया करते। किन्तु हमेशा साधना की परावस्था में रहा करते। यही स्थिति लाहिड़ी महाशय की भी थी। वें हमेशा क्रिया की परावस्था में रहकर सारा काम करते । यह बड़ी ही आश्चर्यजनक अवस्था है। इसी अवस्था की ओर संकेत करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है "तस्मात् सर्वेषु कालेषु योगयुक्तों भवार्जुन।" "युक्त आसीत मत्परः" इत्यादि।

जिन्होंने उनका दर्शन किया है और उनके सान्निध्य में रहे हैं तथा उनके चरणों में आश्रय प्राप्त किया है ऐसे अनेक व्यक्तियों द्वारा उनकी अवस्था के बारे में सुना है; हालांकि मैं स्वयं उनका सगा पौत्र हूँ एवं इस परम पवित्रकुल में जन्म लिया है; किन्तु उनके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त नहीं कर पाया। उनके महाप्रयाण के नौ वर्ष पश्चात् मेरा जन्म हुआ, पता नहीं, पूर्वजन्म में भी उनके साथ कोई सम्पर्क था या नहीं, फिर भी, लगता है एक आध्यात्मिक सम्बन्ध अवश्य था। जिन्हें देखा नहीं और जिनकी संगत में रहा नहीं तथा जिनके साथ प्रत्यक्षतः कोई परिचय नहीं, उनके प्रति इतना अनुराग, इतनी श्रद्धा; भक्ति क्यों है, यह तो अन्तर्यामी ही जानते हैं। वे मेरे जीवन के जीवन थे; वे ही हमारे आराध्यदेव हैं और वही मेरे सर्वस्व हैं।

बार-बार लोग यही आग्रह करते रहे हैं कि मुझे लाहिड़ी महाशय का सम्पूर्ण जीवन-चरित्र लिखना ही होगा; किन्तु खेद का विषय है कि मैं साहित्यिक नहीं हूँ, किस प्रकार लिखना चाहिए, यह भी नहीं जानता। इसके पूर्व अनेक लोगों ने उनकी जीवनी लिखी है और अनेक मासिक पत्र- पत्रिकाओं में भी यदाकदा प्रकाशित हुई है; वह सब किम्वदन्ती जैसी ही है। लेकिन मुझे उनके चरणों का ही भरोसा है।

भूमिका

भारतमाता रत्नप्रसवित्री है। इसका आँचल उज्ज्वल, जगमगाते, जीवन्त रत्नों से भरा पड़ा है। भारत की पुण्य भूमि पर सैकड़ो ऐसे महायोगियों, महापुरूषों एवं महात्माओं का आविर्भाव हुआ है जिन्होंने मातृभूमि के गौरव में वृद्धि की है और लाखों व्यक्तियों को सत्यान्वेषण का मार्ग दिखाकर उन्हें धन्य किया है। उन तमाम महान आत्माओं, महात्माओं के जीवन की कीर्तिगाथा आज भी कानों में गूँजती है। उनके अमूल्य चिन्तन और श्रेष्ठ अनुकरणीय चरित्र ने हमारे साहित्य एवं ज्ञान के भण्डार को समृद्ध किया है। हमारा विश्वास है कि ऐसी महान आत्माएँ अतीतकाल में भी थीं आज भी हैं और कल भी रहेंगी। सामाजिक चेतना एवं जीवन पद्धति के अनुकूल महापुरूष एवं महात्मागण त्रस्त एवं भ्रान्त लोगों के जीवन का मार्ग आलोकित करते हैं। ऐसी ही युगानुकूल पथ प्रदर्शन की भूमिका में भारत माता की एक और कृती सन्तान योगिराज महात्मा श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय का आविर्भाव हुआ था। अनेक महापुरूषों का जीवन चरित्र रचे जाने के बावजूद क्या इस महात्मा की जीवनी लिखने का प्रयोजन है? हाँ, क्योंकि इस महापुरूष ने साधारण मनुष्य की तरह आडम्बरहीन गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए तथा गृहस्थ के सभी कर्त्तव्यों का निष्ठापूर्वक सूक्ष्म रूप से पालन करते हुए, आध्यात्मिक जीवन के उच्चतम शिखर पर पहुँच कर मानव समाज के निकट एक उज्ज्वल दृष्टान्त रखा है जिसके लिए वह इस महापुरूष का ऋणी और चिरकृतज्ञ है। इसके पहले अनेक लोगों ने ही इस महात्मा की जीवनी के सम्बन्ध में छोटे-छोटे ग्रंथों की रचना अवश्य की है; किन्तु किसी ने भी अब तक उनके सम्पूर्ण जीवन चरित्र की रचना प्रस्तुत नहीं की। इसी को दृष्टि में रखकर इस महान गृही योगी के अन्यतम पौत्र पूज्यपाद श्री सत्यचरण लाहिड़ी महाशय के आदेशानुसार इस महापुरुष के जीवन चरित्र को लिपिबद्ध करने का साहस जुटाया है। किन्तु उन्होंने बार-बार सावधान किया है कि इस जीवन चरित्र में सभी सही तथ्यों एवं तत्वों का सभिवेश होना चाहिए; किसी गलत तथ्य या तत्त्व एवं लेखक द्वारा कल्पित आधारहीन बातों का उल्लेख न हो। जैसा कि पहले के अनेक ग्रन्थों में ही उल्लेख किया गया है।

अनेक ज्ञानी-गुणी एवं क्रियावान व्यक्ति, पूज्यपाद श्री सत्यचरण लाहिड़ी महाशय के निकट अनेक दिनों से यह अनुरोध करते आ रहे हैं कि वे अपने जीवन काल में योगिराज श्यामाचरण की एक सम्पूर्ण एवं तथ्यात्मक जीवनी की रचना करें, अन्यथा उनकी अनुपस्थिति में सारे सही तथ्य विलुप्त हो सकते हैं। किन्तु वे वृद्धावस्था एवं समायाभाव के कारण यह कार्य सम्पन्न नहीं कर पाए। इसीलिए उन्होंने सन्तानतुल्य इस लेखक को लिखने आदेश दिया।

मैंने उनके निकट निवेदन किया कि ऐसे महायोगी की जीवनी लिखना क्या मेरे पक्ष में सम्भव होगा? बौना चला चाँद को छूने जैसी स्थिति है! जिस प्रकार क्षुद्र दूबला घास विशाल वटवृक्ष की ऊँचाई को नहीं माप सकती उसी प्रकार मेरे पक्ष में भी इस महायोगी की सही एवं प्रामाणिक जीवनी लिखना असम्भव जैसा महसूस हो रहा है।

पूज्यपाद श्री सत्यचरण लाहिड़ी महाशय ने अभय प्रदान करते हुए एक अनोखी बात कही। उन्होंने कहा- "तुम चिन्ता क्यों करते हो, काम शुरू कर दे, इसके बाद जिनकी जीवनी है, वहीं रचना कर लेगें। 'मैं कर रहा हूँ' इस भावना के त्याग से ही देखोगे कि वे अपना काम स्वयं ही कर लेंगे।"

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