मुहावरे: आर्थी संरचना और मनोभाषिकता: Proverbs - Psychology and The Construction of Meaning

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Item Code: NZD096
Author: डॉ. पुनीता पचौरी (Dr. Punita Pachauri)
Publisher: Uttar Pradesh Hindi Sansthan, Lucknow
Language: Hindi
Edition: 2006
ISBN: 8190395351
Pages: 177
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 190 gm
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Book Description

प्रकाशकीय

मुहावरों और लोकोक्तियों में समाज विशेष का विकासक्रम, सामाजिक-आर्थिक सांस्कृतिक स्थितियाँ और लोकजीवन, जितनी स्पष्टता तथा प्रभावोत्पादक ढंग से अभिव्यक्ति पाते हैं, इस पर न केवल सम्बन्धित समाज बल्कि उससे जुड़ी कोई भी भाषा गर्व कर सकती है । समय के अनन्त प्रवाह में विकसित मुहावरों की अपनी लयात्मकता होती है और वह न केवल अपनी भाषा को धनी बनाते हैं, उससे उसकी पहचान स्तरीय बनती है, बल्कि स्थानीय इतिहास-संस्कृति और लोकजीवन को भी व्यवस्थित पहचान मिलने में मदद मिलती है । यही कारण है कि समाज विशेष और उसकी भाषा या भाषाओं में सैकड़ों वर्षों के दौरान चाहे जितने परिवर्तन आये हों, मुहावरों और लोकोक्तियों का महत्त्व निरन्तर बना रहा है । मुहावरों के माध्यम से मानव स्वभाव और उसकी प्रवृत्तियों को समझने में भी महत्त्वपूर्ण मदद मिलती है । मुहावरे समाज, उसकी संस्कृति और लोक जीवन को खँगालने के साथ, मनुष्य के अन्तर्मन की परतें भी खोलते हैं और स्वाभाविक रूप से इन अर्थो में हमारे वर्तमान परिवेश को समझने और अभिव्यक्ति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

ऐसे में मुहावरों के विकासक्रम को समझना, उनकी आथी संरचना के विस्तार में जाना और उनके विकास के पीछे कार्यरत मनोवैज्ञानिक स्थितियों की पड़ताल करना, निर्विवाद रूप से अत्यन्त उपयोगी है । डॉ. पुनीता पचौरी की यह पुस्तक 'मुहावरे : आर्थी संरचना और मनोभाषिकता' इसी आवश्यकता का प्रतिफल है । मनुष्य की दुनिया इतनी खूबसूरत होने का एक कारण उसके कार्य क्षेत्र की विविधता और उसके मनोभावों की अनन्तता है । स्वाभाविक है कि ऐसे में मुहावरों के बनने और विशिष्ट अर्थ ग्रहण करने के कारण भी अलग-अलग होंगे । इनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण हमारी जानकारी तो बढ़ाता ही है, प्रभावित भी करता है । सम्बन्धित भाषा की प्रौढता, स्तरीयता और विविधता की भी झलक इस तरह मिलती है और हम काफी हद तक सम्पूर्णता में अपने परिवेश को समझने और निष्कर्ष निकालने में सफल होते हैं।

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान यह पुस्तक भारत सरकार की, विश्वविद्यालय स्तरीय कथ निर्माण योजना के अन्तर्गत प्रकाशित कर रहा है । 'मुहावरे आर्थी संरचना एवं मनोभाषिकता' को विद्वान लेखिका डॉ. पुनीता पचौरी ने मुहावरों की आर्थी संरचना को व्यक्त करने के लिए सात अध्यायों में बाँटा है । यह हैं -विषय प्रवेश के अन्तर्गत हिन्दी भाषा का क्षेत्र विस्तार और अभिव्यक्ति के विविध रूप, मुहावरों की भाषिक सरचना, मुहावरों में शब्द और कोटिविचलन तथा मनोभाषिकता अर्थगत विचलन औरमनोभाषिकता, बिम्ब, अलंकार और प्रतीक, मुहावरों का मनोभावपरक वर्गीकरण ओर उपसंहार के अन्तर्गत मुहावरों के बनने की प्रक्रिया और उस पर पड़ने वाले ऐतिहासिक, भौतिक, सांस्कृतिक प्रभाव आदि । इनकी चर्चा यहाँ इसलिए जरूरी है ताकि यह अनुमान लग सके कि लेखिका ने किसी प्रभावी स्तर पर सम्पूर्ण विषय को देखा और शब्द दिया है । इस पुस्तक का महत्त्व इन अर्थों में और बढ़ जाता है क्योंकि अभी तक इस सन्दर्भ में जो कार्य हुए हैं, वह अधिकतर मुहावरों के वर्गीकरण और अर्थाभिव्यक्ति तक सीमित रहे हैं, उनकी संरचना को, व्यापक और विविध आधार पर देखने का कार्य विभिन्न कारणों से आगे नहीं बढ़ पा रहा था । यह पुस्तक यह गतिरोध तोड़ती है । ऐसे में स्वाभाविक रूप से साहित्य, भाषा विज्ञान सहित समाज विज्ञान आदि में रुचि रखने वाले सभी विद्वत्जनों के साथ-साथ शोधार्थियों के लिए भी यह पुस्तक लाभदायक सिद्ध होगी, ऐसी आशा है ।

प्राक्कथन

मुहावरों के अध्ययन-विश्लेषण का विषय सदैव से ही भाषाविज्ञान के अध्येताओं के लिये जिज्ञासा का विषय रहा है । विषय की रोचकता इसके प्रयोग में ही नहीं, बल्कि इसके जन्म से लेकर यह जानने तक, निरन्तर बनी रही है कि मुहावरे मानव की किन मानसिक अभिवृत्तियों का परिणाम है । वास्तव में मानव-स्वभाव और उसकी मनोवृत्तियों के बारे में जानना महत्त्वपूर्ण ही नहीं, रोचक भी है ।

मेरे पी-एच .डी. शोध-प्रबन्ध के मार्गदर्शक स्व. डॉ. कैलाशचन्द्र अग्रवाल की प्रेरणा ने मुझे 'मुहावरे-आर्थी संरचना और मनोभाषिकता' विषय का चयन करने की दिशा दिखाई । विषय की रोचकता और नवीनता ने मुझे सर्वाधिक आकृष्ट किया और मैंने विश्वासपूर्वक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली की 'रिसर्च एसोशिएटशिप' योजना के अन्तर्गत, उक्त विषय को प्रस्तुत किया, वहाँ चयन-समिति ने इसे स्वीकृति प्रदान कर मेरा उत्साहवर्धन किया ।

पाँच वर्षों के सतत् चिंतन, मनन, उगलोव्य सामग्री-विश्लेषण तथा मनोविदों और भाषाविदों के सत्परामर्शों के पश्चात् मैं अपेक्षित निष्कर्षो को खोजने में एक सीमा तक अराने आप को सफल मानती हूँ ।

मनुष्य का कार्य-क्षेत्र विस्तृत है, उसी के अनुरूप उसके मानसिक भाव भी अनन्त हैं । इसलिये मुहावरों के बनने, तथा विशिष्ट अर्थ ग्रहण करने के, कारण भी अलग-अलग हैं । प्रस्तुत अध्ययन के अन्तर्गत हिन्दी के प्रचलित म्रुहावरों को विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत करके मनोभाषिक अध्ययन किया गया है, साथ ही मानव की मनोदशाओं के अनेकानेक सूक्ष्म-स्कूल बिम्ब जो मुहावरों में अंकित हो गये हैं, उन सबका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने का प्रयास भी किया गया है ।

मुहावरों के विषय में अब तक जो भी कार्य हुआ है, उसके अन्तर्गत हिन्दी मुहावरों को संग्रह करने का कार्य अधिक हुआ है, साथ ही विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित मुहावरों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत करने का कार्य भी हुआ है, किन्तु हिन्दी मुहावरों पर किसी ने मनोभाषिक दृष्टि से कुछ भी नहीं लिखा है, जबकि मुहावरों का सीधा सम्बन्ध मनोविज्ञान से ही है । यद्यपि डॉ. ओमप्रकाश गुप्त ने अपनी पुस्तक 'मुहावरा मीमांसा' में और डॉ. प्रतिभा अग्रवाल ने अपनी पुस्तक 'हिन्दी मुहावरे. विश्लेषणात्मक विवेचन' में मुहावरों का सम्बन्ध मनोभावों से है इस बात की ओर इंगित किया है और इस दिशा में शोध कार्य किये जाने की आवश्यकता पर बल भी दिया है ।हिन्दी मुहावरों के अध्ययन-विश्लेषण का कार्य अत्यन्त विस्तृत एवं गूढ़ है । किसी भाषा के मुहावरे उसके प्राचीनतम साहित्य से भी पुराने होते हैं । भाषा की उत्पत्ति और विकास का इतिहास लिखा जा सकता है, किन्तु मुहावरे कब और कैसे बने, उनकी उत्पत्ति, विकास तथा इतिहास क्या है, उसके सम्पूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, भाषा वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक पक्ष को जानना सचमुच टेढ़ी खीर है, इसके अतिरिक्त हिन्दी भाषा और हिन्दी मुहावरों पर अध्ययन-विश्लेषण का कार्य क्षेत्र इतना विस्तृत है कि उसकी कोई निश्चित सीमा (कार्य-सीमा, समय सीमा) निर्धारित नही की जा सकती, किन्तु प्रत्येक प्रकार के अध्ययन को या प्रत्येक कार्य की एक निश्चित सीमा निर्धारित की जानी आवश्यक होती है । हिन्दी मुहावरों के कार्य क्षेत्र का विस्तार देखते हुए सीमित समय में उसके सभी पहलुओं पर विचार करना असम्भव है । प्रस्तुत विषय से सम्बन्धित अध्ययन एक 'मनोभाषिक' अध्ययन है, जिसका उद्देश्य हिन्दी भाषा के प्रचलित मुहावरों की आथी संरचना का 'मनोभाषिक' दृष्टि से अध्ययन-विश्लेषण करना है । प्रस्तुत कार्य की सीमा निर्धारित करते हुए केवल हिन्दी मुहावरों की आथी संरचना के 'मनोभाषिक' पक्ष को ही अध्ययन का केन्द्र बिन्दु बनाया गया है जिससे इस मनोभाषिक अध्ययन पर गहनतापूर्वक विचार कर महत्त्वपूर्ण तथ्यों को सामने लाया जा सके ।

इस विषय से सम्बन्धित सामग्री-संकलन का कार्य विभिन्न स्रोतों से करने का प्रयास किया गया है । सर्वप्रथम प्रयास उन पुस्तकों से संकलित करने का किया गया है, जो प्रस्तुत विषय से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में जुड़ी हुई हैं तथा जो आवश्यकतानुसार सामग्री-संकलन में सहायक हो सकती हैं । अत: मुहावरों से सम्बन्धित विषय पर शोध कर चुके (मनोभाषिक पक्ष के अतिरिक्त भी) अन्य शोधार्थियों के विचारों को उनके शोध-ग्रंथों के माध्यम से जानने तथा उनके द्वारा किये गये अध्ययनों से यथासंभव लाभ उठाने का प्रयास किया गया है ।

मुहावरे भाषा की अक्षय निधि हैं, किसी व्यक्ति-विशेष की नहीं । अत: मुहावरों का सम्बन्ध जन-सामान्य से ही जोडा जाना चाहिए । मुहावरे जन-सामान्य की सम्पत्ति हैं । शिक्षित-अशिक्षित, शिष्ट-अशिष्ट प्राय: सभी लोग समान रूप से आवश्यकतानुसार वाचन और लेखन दोनों में ही इनका प्रयोग करते रहे हैं, इसीलिए सामग्री तो जनसाधारण के मध्य बिखरी पडी है। अत: मुहावरों की आर्थी संरचना के मनोभाषिक पक्ष को जानने तथा तत्पश्चात् उचित निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए जन-सामान्य के विचारों को भी जानने की आवश्यकता का अनुभव करते हुए आम किन्तु प्रबुद्ध व्यक्तियों से मुहावरों की आर्थी संरचना के मनोभाषिक पक्ष पर विचार-विमर्श करके सामग्री-संकलन का कार्य किया गया है ।

हिन्दी के प्रचलित मुहावरों को संकलित करने का कार्य विभिन्न मुहावरा कोशों के एकत्र करके किया गया है । मुहावरों की शुद्धता एवं प्रामाणिकता बनी रहे, ऐसाप्रयत्न करते हुए मुहावरों का संकलन कार्य हिन्दी के प्रमुख मुहावरा कोशों (कुछ पुराने तथा कुछ नव प्रकाशित कोश) से ही किया गया है जिससे मुहावरों को एकत्र करने के बाद उन्हें आवश्यकतानुसार विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जा सके और मुहावरों की (वर्ग विशेष) पृष्ठभूमि में व्याप्त परोक्ष मनोविज्ञान को बनाना जा सके ।

मनोविज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों को जानने का प्रयास करते हुए, तथा उन सिद्धान्तों को मनुष्य के मनोभावों से जोड़ते हुए, मुहावरों के पीछे छिपी मनोभाषिकता को जानने का प्रयास किया गया है । अर्थात् विषय की आवश्यकता के अनुरूप मनोविज्ञान की पुस्तकों के अतिरिक्त अनेक मनोवैज्ञानिकों से भी विचार-विमर्श करके सामग्री-संकलन का कार्य किया गया हैं जिससे वास्तविक मनोभाषिक कारणों को जाना जा सके ।

प्रस्तुतीकरण प्रत्येक अध्ययन का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है । प्रस्तुत पुस्तक की सम्पूर्ण सामग्री का प्रस्तुतीकरण अत्यधिक वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित ढंग से करने का प्रयास किया गया है जिससे मुहावरों की आर्थी संरचना से सम्बन्धित जो भी मनोवैज्ञानिक तथ्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं, उनमें स्वाभाविकता और वैज्ञानिकता बनी रहे ।

पुस्तक का प्रथम अध्याय हिन्दी भाषा का क्षेत्र .विस्तार और अभिव्यक्ति के विविध रूप 'मुहावरा और पदबंध', 'मुहावरे की वैज्ञानिक परिभाषा', 'मुहावरा और कहावत', 'उनका स्वरूप और गठन' शीर्षकों पर आधारित है । सामान्यत: मुहावरा को ही पदबंध और पदबंध को ही मुहावरा समझ लिया जाता है, साथ ही मुहावरे और कहावत में अधिक भेद नहीं किया जाता । यह सत्य है कि ये सभी भाषा की मिलती-जुलती अभिव्यक्तियों हैं, किन्तु वास्तव में ये सभी भाषा की अलग-अलग और महत्त्वपूर्ण इकाइयाँ हैं । अत: इन सभी को अलग-अलग स्पष्ट करते हुए, तथा इस भ्रम को दूर करने का प्रयास करते हुए, इन सबका महत्त्व सन्दर्भांनुसार स्पष्ट किया गया है, क्योंकि पदबंधों, मुहावरों, कहावतों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं जो एक-दूसरे को अलगाती हैं । अत: इस विवादास्पद पहलू पर विस्तार से विचार करते हुए अनेक मनीषियों. के विचारों को भी समाहित किया गया है । मुहावरे की एक सशक्त एवं वैज्ञानिक परिभाषा सभी विद्वानों के विचारों को दृष्टि में रखकर निर्धारित की गई हे और गम्भीरतापूर्वक मुहावरे के स्वरूप एवं गठन पर विभिन्न दृष्टियों से विचार किया गया हे ।

मुहावरे किसी भी भाषा की अमूल्य निधि होते हैं । किसी भी भाषा की अभिव्यक्ति को अधिक सशक्त एवं सजीव बनाने के लिए मुहावरों के प्रयोग की आश्यकता होती है । यही कारण है कि बोलचाल में ही नहीं साहित्य में भी मुहावरों के महत्त्व को स्वीकार किया गया है । मुहावरों का प्रयोग भाषान्तर्गत आज से नहींऋग्वेदकाल से अब तक चला आ रहा है । प्राचीन कवियों एख अनेक आघुनिक लेखकों के द्वारा मुहावरों का जी खोलकर प्रयोग हुआ है । मुहावरों के सम्बध में स्मिथ का कहना है' कि - 'भाषा की सौन्दर्य वृद्धि का एक और महत्त्वपूर्ण तत्व है । यह तत्त्व, मुहावरों के योग से बनता है ।'

'मुहावरों की भाषा और साहित्य में महत्ता' शीर्षक के अन्तर्गत प्राचीनकाल से लेकर अब तक विभिन्न कवियों एवं गद्य लेखकों के द्वारा उनके साहित्य में प्रयुक्त मुहावरों को दृष्टिगत रखते हुए साहित्य में मुहावरों के महत्त्व को स्पष्ट किया गया है । थोड़े में बहुत कुछ कहना ही नहीं, बल्कि प्रभावपूर्ण ढंग से कहना भी मुहावरों का अभीष्ट होता है । मुहावरों की प्रभावपूर्ण भाषा ही साहित्य को जीवन्तता और स्वाभाविकता प्रदान करती है, यही कारण है कि आज साहित्य के विविध क्षेत्रों में विविध वर्गों के मध्य मुहावरे 'दाल में नमक' की तरह घुले हुए हैं । मुहावरों की भाषिक-संरचना विशिष्ट होती है । मुहावरों में शब्दों का स्थान निश्चित होता दै तथा अर्थ भी सर्वथा रूढ़ होते हैं, इसीलिए उनमें थोड़ा भी हेर-फेर संभव नहीं होता । मुहावरे के एक भी शब्द को इधर-उधर करना या घटाना-बढ़ाना मुहावरे की आर्थी संरचना को प्रभावित करता है । मुहावरों का चयन देश-काल, धर्म-संस्कृति आदि को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए, अन्यथा कहीं स्थिति हास्यास्पद हो सकती है, तो कहीं अर्थ का अनर्थ हो सकता है । जिस प्रकार मुहावरों में शब्दों का चयन बडे कौशल से रहता है, उसी प्रकार मुहावरों का प्रयोग भी सही परिवेश (यथा सन्दर्भ) के अनुसार ही होना चाहिए । शब्द के अर्थ का बोध कराने वाली शक्ति 'शब्द-शक्ति' मानी जाती है । यह शक्ति शब्द और अर्थ का सम्बन्ध निर्धारित करती है । शब्द और अर्थ का विलक्षण सम्बन्ध है । शब्दों के साथ सम्बद्ध अनेकानेक अर्थ शब्द-शक्तियों के आधार पर उद्घाटित होते हैं । 'विचलन और वक्रता' मुहावरों का प्रमुख गुण है । मुहावरों में प्राप्त 'भाषिक विचलन' और 'वक्रता' का सम्बन्ध पूरी तरह से मनोविज्ञान पर आधारित है । इसी प्रकार मुहावरों की भाषिक संरचना में प्राप्त 'बहुअर्थता' भी मनोविज्ञान से सम्बधित है ।

द्वितीय अध्याय 'मुहावरों की भाषिक संरचना' के अन्तर्गत इन्हीं शीर्षकों 'शब्द और चयन', 'शब्द और सन्दर्भ', 'अर्थ दीप्ति', 'शब्द-शक्तियाँ अभिधा, लक्षणा, व्यंजना', 'विचलन और वक्रता', 'बहुअर्थता' पर यथोचित प्रकाश डालते हुए सम्बन्धित मुहावरों के पर्याप्त उदाहरण देते हुए विस्तृत विवेचन किया गया है ।

'विचलन' का होना मनोविज्ञान से सम्बन्ध रखता है, चाहे भाषा में विचलन किसी भी रूप में क्यों न हो । आर्थी संरचना के अन्तर्गत कई प्रकार के विचलन प्राप्त होते हैं । विचलन एक प्रकार से व्याकरणिक क्रम का व्यतिक्रम है । मुहावरोंके अन्तर्गत विशेष अर्थ की संयोजना के लिए वाक्य में प्रयुक्त विभिन्न संरचकों के प्रकार्य में व्यतिक्रम होता है ।

व्याकरण के नियमों की पाबंदी किसी विकसित (मानक) भाषा के लिए आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है । उसके बिना, अर्थ-बोध सर्वथा दुष्कर है, किन्तु मुहावरों के क्षेत्र में व्याकरण के नियमों में पर्याप्त व्यतिक्रम दिखाई देता है । ऐसे मुहावरों की संख्या काफी बड़ी है, जिसमें व्याकरण के नियमों से हटकर विचलनयुक्त प्रयोग किये गये हैं, किन्तु ये विचलन सोद्देश्य किए गए हैं । पुस्तक में विस्तृत रूप से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि मानव की विभिन्न मनोदशाओं का ही परिणाम 'विचलन' तृतीय अध्याय के अन्तर्गत विविध मनोदशाओं के कारण मुहावरों में पाये जाने वाले विचलनों की चर्चा की गयी है । कोटि-विचलन के अन्तर्गत 'कारक-विचलन', 'वचन-विचलन' तथा अन्य प्रकार के विचलनों को मुहावरों में प्रयोग करते हुए आर्थी संरचना की मनोवैज्ञानिकता पर विचार किया गया है ।

मुहावरों का सौन्दर्य उनके अर्थ में निहित है, बल्कि मुहावरों का तो प्राण ही नयी अर्थवत्ता में है । कोई भी उक्ति तभी 'मुहावरा' नाम की अधिकारिणी होती है, जब उसे कोई विशेष अर्थ प्रदान किया जाता है । अनेक मुहावरे अर्थ की दृष्टि से समान होते हैं । जैसे - 'ईट से ईट बजाना', 'ईंट का जवाब पत्थर से देना' । इन दोनों ही मुहावरों में मुकाबला करने का भाव है । 'आँखों में बसन्त छाना' और 'आँखों में बसन्त फूलना' में बसंत ऋतु के चारों ओर छाई रहने वाली हरियाली एवं उल्लास की तरह आखों में भी आनन्द, उल्लास छाया रखने का भाव निहित है, इसी प्रकार अनेक अनेकार्थी मुहावरे, अनेक वाग्विदग्धतापूर्ण मुहावरे सामने आए हैं, जिनका अर्थ पूरे प्रसंग को जानकर ही समझा जा सकता है ।

चतुर्थ अध्याय के अन्तर्गत समानान्तरता, अनेकार्थता, वाग्विदग्धता अनुतान और अर्थ-संरचना, वक्रोक्ति, अर्थ-संरचना, अर्थ प्रतिबन्धन और अर्थ विचलन से सम्बन्धित मुहावरों को एकत्रित करके उन्हें विभिन्न मनोभाषिक पहलुओं से जोड्ने एवं उनमें निहित अर्थ को मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि में रखकर अध्ययन-विश्लेषण किया गया है ।

अन्य प्राणियों से मनुष्य की श्रेष्ठता का मुख्य आधार उसकी विचार-शक्ति एवं उसकी भाव-प्रवणता है । मनुष्य का सौन्दर्य-बोध अत्यधिक विकसित और बहुमुखी है वह न केवल स्थूल वस्तुओं को अलंकृत करने का प्रयास करता है, बल्कि सूक्ष्म भावों एवं वाणी को भी अलंकृत करता है । मुहावरों में प्राप्त अलंकार इसका प्रमाण है। प्रतीक-निर्माण मनुष्य की सबसे मौलिक विशेषता है और मनुष्य की आत्मचेतना केक्रमिक विकास में, प्रतीकों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । ऐसे मुहावरों की संख्या अत्यधिक है, जिनमें बिम्ब, अलंकार और प्रतीकों का प्रयोग हुआ है । मुहावरों में प्राप्त होने वाली प्रतीक-योजना, बिम्ब-योजना, अलंकार-योजना में, बहुत बड़ी संख्या ऐसे मुहावरों की है, जो अत्यन्त लोकप्रिय हुये हैं । इस प्रकार के मुहावरों को गढ़ने के पीछे मनुष्य की क्या मनोदशा हो सकती है, इस पर मनोभाषिक दृष्टि से विस्तृत विचार-विमर्श किया गया है । पुस्तक का पाँचवीं अध्याय इन्हीं शर्षिकों पर आधारित

छठे अध्याय में मुहावरों का मनोभावपरक वर्गीकरण है, जिसमें मनुष्य की प्रमुख मनोदशाओं को आधार बनाकर वर्गीकरण किया गया है ।

सातवें अध्याय के अन्तर्गत सम्पूर्ण अध्ययन का निष्कर्ष निकालते हुए प्रस्तुत मनोभाषिक अध्ययन की 'अर्थगत संरचनात्मक विशिष्टताओं' तथा 'मनोभाषिक विशिष्टताओं' का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करते हुए, सम्पूर्ण मनोभाषिक अध्ययन की विशिष्टता को सिद्ध करते हुए, प्रस्तावित अध्ययन की विशेषताओं का आकलन किया गया है ।

अस्तु, प्रस्तुत कार्य इस दिशा में किया गया प्रथम प्रयास है । कोई भी अध्येता यह दावा नहीं कर सकता कि उसके द्वारा सम्पन्न कार्य अंतिम है, क्योंकि संशोधन, परिमार्जन, परिष्करण की संभावना सदैव बनी रहती है, इसलिये आवश्यक्ता है, ऐसे मर्मज्ञों, विचारकों एवं जागरूक पाठकों की, जो अपने अमूल्य सुझावों से अवगत करवायें, जिससे मैं भविष्य में उन सुझावों का उपयोग कर इस कार्य को और अधिक गरिमा प्रदान कर सकूँ ।

प्रस्तुत ग्रन्थ हेतु समय-समय पर अपने विचारों, अनुभवों, सुझावों और निर्देशों से, मेरे ज्ञान-कोश में वृद्धि कर स्व. डी. कैलाश चन्द्र अग्रवाल ने सदैव ही मेरा उत्साहवर्धन किया है । विषय को समझने, परखने, तराशने, प्रस्तुत करने की नवीन दृष्टि उन्हीं की देन है । शिष्या होने के अथिकारवंश मैंने अपनी झोली उनके स्नेह, आशीर्वाद के साथ ही साथ उनके सुझावों, सद्परामर्शों से खूब भरी, उनसे जो पाया वह अनुपम है, अमूल्य है, आज वे नहीं हैं, उनसे जुड़ी अनेक पुनीत स्मृतियों को मेरा नमन ।

इस ग्रन्थ को प्रकाशन योग्य बनाने में प्रो. ऊषा सिन्हा (विभागाध्यक्ष भाषाविज्ञान विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय) के सुझावों और सहयोग की चर्चा किये बिना बात अधूरी सी प्रतीत होती है । ग्रन्थ के संशोधन, परिष्करण में उनकी विशेष भूमिका रही है, मैं उनके प्रति उपकृत हूँ उनकी शिष्या रही हूँ अत: उनके द्वारा की गई खुली आलोचनाओं और सुझावों के साथ ही उनका आशीर्वाद सहज प्राप्यएक बार मैं पुन: 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' सहित उन सभी के- प्रति आभार व्यक्त करना चाहती हूँ जिनके सहयोग, और सानिध्य से मैं यह दुरूह कार्य सम्पन्न कर सकी ।

'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' लखनऊ ने ग्रन्थ को प्रकाशित करने की स्वीकृति देकर मुझे जो सम्मान दिया है, वह किसी पुरस्कार से कम नहीं है, अत: मैं संस्थान के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करना अपना कर्तव्य समझती हूँ ।

 

Contents

 

1 विषय-प्रवेश 1-23
2 मुहावरों की भाषिक-संरचना 24-43
3 मुहावरों में शब्द और कोटि-विचलन तथा मनोभाषिकता 44-57
4 अर्थगत विचलन और मनोभाषिकता 58-99
5 बिम्ब, अलंकार और प्रतीक 100-115
6 मुहावरों का मनोभावपरक वर्गीकरण 116-129
7 उपसंहार 130-138
  परिशिष्ट 139-156

 

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