पुस्तक परिचय
मराठी में प्रयुक्त अभंग मराठी पद्यकाव्य में प्राचीन काल से चला आ रहा है । ओवी का ही मालात्मक रूप अभंग के रूप में पहचाना जाने लगा ।
अपने पूर्ववर्ती संतश्रेष्ठ नामदेव तथा एकनाथ की तरह तुकाराम ने भी विशाल अभंग रचना की । तुकाराम का कवित्व काव्यदृष्टि से अत्यन्त महान है । उनके मन की संरचना काव्य के लिए अनुकूल थी । अंतःकरण संवेदनशील, अनुभव जीवंत, निरीक्षण सूक्ष्म, बुद्धि सुरुचिपूर्ण, वाणी मधुर और ध्येय की दृष्टि से अनुकूल थी ।
अपने कवित्व के सम्बन्ध में तुकाराम कहते हैं तुका तो अपने मन से बातें करता है । उनके अभंगों में स्वयं से किया गया स्वयं ही का आलाप है । श्री विट्ठल के साथ वे मित्रवत् संवाद करते हैं । वे बड़ी आक्रामक मुद्रा में विट्ठल से लड़ते झगड़ते हैं, उन्हें भली बुरी सुनाते हैं, कभी उनसे क्षमा माँगते हैं तो कभी पैरों पड़ते और रोते हैं । परमेश्वर के दर्शन के लिए उनकी व्याकुलता उन्हीं के शब्दों में पढ़िए
जैसे कन्या सर्वप्रथम ससुराल जाते समय मायके की ओर देखती है, वैसी ही व्याकुल अवस्था मेरी भी हो गयी है । हे भगवन्! तू कब दर्शन देगा ?
संतकृपा झाली । इमारत फला आली ।। ज्ञानदेव रचिला पाया । उभारिले देवालया ।। नामा तयाचा किंकर । को केला हा विस्तार । एका जनार्दनी खांब । ध्वज दिला भागवत ।। तुका जालासे कलस । भजन करा सावकाश
तुकाराम की शिष्या बहिणाबाई अपने गुरु का वर्णन ऋग्ने हुए कहती है, तुका झालासे कलस । वारकरी सम्प्रदाय को पूर्णावस्था देकर उसका कलश बनने का श्रेय तुकाराम को ही जाता है ।
महाकवि भवभूति ने महापुरुष के चित्त को वज से भी अधिक कठोर किंतु फूल से भी अधिक कोमल कहा है । वह बात तुकाराम के जीवन पर सटीक बैठती है । उनका प्रापंचिक प्रेम जितना उत्कट था, उनका वैराग्य भी उतना ही प्रखर । सम्पन्न परिवार में जन्म लेने वाले तुकाराम के जीवन ने ऐसा पलटा खाया कि उन पर एक के बाद एक विपत्तियाँ चोट करती चली गयीं । घर के लोगों ने भी साथ नहीं दिया लेकिन तुकाराम विपत्तियों से टूटे नहीं । उन्होंने अपने एक अभंग में कहा है, भगवन्! मैं तेरा आभारी हूँ कि मुझे चिड़चिड़ी पत्नी मिली जो मुझे प्रपंच से अलग होने में सहायक बनी । अन्यथा मैं माया के बंधन में फँसा रहता । जो भी हुआ अच्छा ही हुआ और मैं तेरी शरण में आ गया ।
वे पलायनवादी नहीं अपितु संघर्षवादी थे । जब वे परमार्थ की ओर मुड़े तो उन्होंने अपने गृहस्थ धर्म की धरोहर को अपने अभंगों का आधार बनाया । अभंगों की सदाशयता के कारण उनके विरोधी भी उनके भक्त, उपासक बन गये । विट्ठल से उनके मित्र जैसे सम्बन्ध थे । उन्हें सगुण भक्ति अत्यन्त प्रिय थी । वे भक्ति के लिए पुनर्जन्म की कामना करते हैं।
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