संत-साहित्य बपनी उदात्त भूमिका के कारण हिन्दी काव्य धारा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसमें लोकचित्त को सामूहिक उज्ज्वल संवेदनाएँ, कमी तो दार्शनिक तत्व चिन्तन के अंचल में और कमी प्रेमामक्ति तथा कभी सामाजिक ओवन दर्शन के माध्यम से रूपावित होती रही हैं। मारतोय संस्कृति बऔर साधना के साहित्य में जो भी सुन्दर, महान् और अपूर्व है, उसका संबयन इस साहित्य में हुआ है। संतों की बहिंसा (निराकार) के प्रति प्रेम नाम जर घोर वैश्व चैतन्य तया भावमय गतिशील जोवन की स्थापना बादि का प्रतिपादन इस साहित्य का प्रमुख विषय रहा है।
सन्त-साहित्य के विभिन्न पारवों का अध्ययन अनेक विद्वानों ने विभिन्न दृष्टिकोणों से किया है। संत-साहित्य के बध्येताओं में डा० पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल का नाम प्रमुख है। बपनी पुस्तक 'हिम्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय' में उन्होंने यथासम्भव निर्गुण साहित्य के सभी पहलुओं पर विबार किया है। डा० बड़थ्वाल द्वारा निर्देशित मार्ग के बाधार पर चलने बाले विद्वानों में डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी, डा० रामकुंवार वर्मा, बाचार्य परघुराम चतुबंदी डा. विनय मोहन शर्मा बादि प्रमुख हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिमा के उपयोग से संत-साहित्य के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त किया ।
संत दर्शन के विभिन्न पक्षों का समीक्षात्मक बनुशीलन अनेक विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से किया है। डा० गोविन्द त्रिगुणायत ने 'निर्गुण साहित्य को दार्शनिक पृष्ठभूमि' में सम्तों के दार्शनिक पक्ष का सम्यक बनुशीलन किया है। सन्त साहित्य के दार्शनिक विवेचन की बपेक्षा इसके काव्य पक्ष पर भो विवार किया गया है। इस साहित्य का समप्र बनुधोउन प्रस्तुत करने वाले विद्वानों में उल्लेखनीय हैं: बाचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डा० रामकुमार वर्मा, परघुराम चतुर्वेदी, डा० विनय मोहन शर्मा यादि ।
ऊपर जिन समीक्षकों का संकेत किया गया है, उन्होंने केवल निगुणो संतों को हो बपनी बालोच्य परिधि में रखा है। साथ ही साथ निर्गुणी संतों को दाशांनक विवेचना में उन्होंने अपना मत प्रतिपादित करते हुए कहा है कि उनका दर्शन विभिन्न दर्शनों को पंचमेल खिचड़ी है। प्रस्तुत प्र'द की लेखिका ने सर्वप्रथम अपने बालोच्य विषय की परिधि को विस्तृत करके सन्त साहित्य को केवळ निर्गुणी साहित्य तक ही न सीमित रखकर सगुण साहित्य तक भी विस्तृत किया है। कारण यह है कि संत बही है जो सत्य का मम्यक् द्रा है। संतों का जीवन विश्व बन्युत्व को मावना से बोत-प्रोत है, क्योंकि सत्य के बालोक से उनका जोवन दोपित रहता है इसी से वे पृष्वों के प्रत्येक प्राणी को बन्धुत्व भाव से देखते हैं। नगर निर्गुण सम्त सत्य के इहा है तो निश्चय ही सगुण मक्त कवि भो व्यापक बन्तर्दृष्टि के कारण सन्त हो है। अंतर केवल सायना का है, साध्य का नहीं।
For privacy concerns, please view our Privacy Policy
Hindu (हिंदू धर्म) (12516)
Tantra ( तन्त्र ) (987)
Vedas ( वेद ) (705)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1896)
Chaukhamba | चौखंबा (3352)
Jyotish (ज्योतिष) (1443)
Yoga (योग) (1094)
Ramayana (रामायण) (1390)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23073)
History (इतिहास) (8226)
Philosophy (दर्शन) (3385)
Santvani (सन्त वाणी) (2533)
Vedanta ( वेदांत ) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist