भारतीय नाट्य परंपरा में नाट्य समस्त कलाओं में श्रेष्ठ मानी गई है। नाट्य कला एक ऐसी कला है जिसमें समस्त कलाओं का समावेश किया है और सिनेमा इसकी बहुत ही सुन्दर शाखा है, जो बिल्कुल नवीन विधा है। परन्तु यह बहुत आकर्षक, कलात्मक, और व्यवसायिक रूप से समृद्ध विद्या है। इस शताब्दी के आरम्भिक चरण में जब नाट्य की विद्यालयीन शिक्षा प्रणाली का सूत्रपात हुआ। नाट्य संस्थानों, नाट्य समूहों, नाट्य विभागों के द्वारा इस विषय की कक्षाएँ लगाने तथा परीक्षाएँ प्रारम्भ करने का जो उपक्रम किया गया वह निश्चय ही स्तुत्य हैं। किन्तु इस प्रयास में जो कठिनाई प्रारम्भिक स्तर से अनुभव की जा रही है वह थीं पाठ्य-पुस्तकों का अभाव। इसके कई कारण है एक तो हमारे अधिकांश नाट्य शिक्षक व कलाकार ऊँचे दर्जे का क्रियात्मक ज्ञान रखने के उपरान्त भी सैद्धान्तिक ज्ञान की ओर विशेष ध्यान नहीं दे पाये। दूसरे प्राचीन नाट्य ग्रंथों व वर्तमान नाट्य शैलियों के प्रयोगात्मक स्वरूप में भी समयानुसार पर्याप्त अन्तर आ गया है, और इस विषय पर अधिकांश किताबें अपने पांडित्य ज्ञान से भरी पड़ी हैं, जो विद्यार्थियों की समझ से परे है।
इस पुस्तक को लिखने का मेरा आशय उन विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों के विद्यार्थियों से है। जो बी.ए. एम.ए. यू.जी.सी. नेट, एन.एस.डी. एफ.टी.आई.आई. एस.आर.एफ.टी.आई.आई, एस.एत्त.सी. आदि की परीक्षा प्रदर्शनकारी कलाओं में देते हैं जिसमें रंगमंच एवं नाट्य सम्बन्धी जो भी सामग्री आती है, इसे मैंने सरल भाषा का प्रयोग कर लिखने की कोशिश की है।
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