भारतीय संस्कृति, नैतिक और शिक्षाप्रद सिद्धान्तों का भण्डार है, जो हमें पुराकाल से कहानियों, कथाओं एवं रूपको के माध्यम से प्राप्त हुआ है! इनका मुख्य उददेश्य मानव को अपने आध्यात्मिक जीवन में ऊपर उठाना है जिससे वे राष्ट्रीय, एवं भौतिक विचारधाराओ से परिपक्व उन्नत जीवन जी सके!
कहानियों, कथाओं तथा रूपको के माध्यम से लोक-शिक्षा देने का कार्य हमारे धर्मनायको, ऋषियों तथा संतो ने बड़े अच्छे ढंग से अपनाया है! स्वामी विवेकानन्द ने भी कई कहानिया और कथाएँ मानवता के नैतिक उत्थान के लिए कही !
'विवेकानन्द की बोध कथाएँ', जो अभी आपके हाथो में है, स्वामी जी द्धारा अपने श्रोताओ को कही गयी कहानियो का रूपान्तरण है! स्वामी जी की कहानी कहने की अपनी एक विशेष शैली थी, जो श्रोताओ के मन पर एक अमिट छाप छोड़ जाती थी! इस पुस्तक में इन कहानियो को स्वामी ईशात्मानन्द ने पत्रो को जाने-मने मन:कल्पित नाम देकर उन्हें और सजीव तथा रोचक बना दिया है जिससे हमारे दोष और अवगुण हमे स्पष्टता से दिखाई दे और हम उसे भलीभाँति समझ सके! हर कहानी के अन्त में हमें उसकी शिक्षा का संकेत मिलता है!
विख्यात कलाकार श्री रामकृष्ण बसु ने छोटो तथा बड़ो के लिए समान रूप से अपने मनमोहक चित्रो द्धारा इन कहानियों को और अधिक जीवन्त बना दिया है! श्री सौरेन्द्र दास गुप्त ने इन्हें आकषर्क बनाने में विशेष योगदान किया है!
हमारी यह हार्दिक इच्छा है कि यह आनन्ददायी पुस्तक घर-घर में पहुँचे और हर पाठक को उत्साहित करे, चाहे वह बड़ा हो या छोटा! इसके माध्यम से जो शिक्षा दी जा रही है! उसे समझकर जनसाधारण अपने आप को आध्यात्मिक और नैतिक जीवन में ऊपर उठाने के चेष्टा करे!
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