'पल्टू बाबू रोड' अमर कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु का लघु उपन्यास है | यह उपन्यास पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'ज्योत्स्ना' के दिसम्बर 1959 से दिसम्बर, 1960 के अंको में धारावाहिक रूप से छपा था | रेणु के निधन के बाद 1979 में पुस्तककार प्रकाशित हुआ |
नई-नई कथाभूमियो की खोज करनेवाले रेणु 'पल्टू बाबू रोड' में एक कस्बे को अपनी कथा का आधार बनाते है | वे कठोर, विकृत और हासोन्मुख समाज को लेखकीय प्रखरता के साथ परखते है | इस उपन्यास में रेणु अपने गाँव-इलाके को छोड़कर बैरगाछी कस्बे को कथाभूमि बनाते है | इस कस्बे के नियति पल्टू बाबू जैसे काइयाँ, धूर्त, कामुक बूढ़े के हाथ में है | उसने कस्बे के लिए ऐसी राह निर्मित की है जिस पर राजनीतिज्ञ, ठेकेदार, व्यापारी, वकील (पूरे कस्बे के लोग ही ) चल रहे है | लगता है, कस्बावासी शतरंज के मोहरे है और पल्टू बाबू इनके संचालक |
इस उपन्यास का लक्ष्य है उच्च वर्ग के अंतर्विरोधों, उसकी गिरावट, राजनितिक और आर्थिक सम्बन्धो में यौन-व्यापार आदि का चित्रण | निम्न वर्ग छिटपुट आया है | आदर्शवादी पात्र विडम्बना से घिरे है | भाषा प्रवाहपूर्ण और अर्थव्यंजक है |
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