हस्ते गौरी नाम रेखा नरस्य, भोगं लीलां सोख्य मुक्तं फलं च। उत्पत्तिवें तस्य प्रोक्ता मुनीन्द्रैः शुक्ल पक्षे गर्ग विप्रस्य वाक्यं ।। शोपाश्च सर्वाखलु शुक्ल जन्म, प्रदाश्च रेखा ननु मानवानां। विलोम रीत्या च तथा नरस्य, पक्षः प्रदिष्टः मुनि काश्यपेन ।।
सामुद्रिक शास्त्र अर्थात् हस्तरेखा की प्राचीनता के लिए इससे प्राचीन प्रमाण और क्या हो सकता है? आदिकवि महर्षि वाल्मीकि के काल में भी सामुद्रिक शास्त्र का अस्तित्व था।
मुगल काल में ज्योतिष, तन्त्र, हस्तरेखा आदि का अस्तित्व तक खतरे में पड़ गया था। बीसवीं शताब्दी में ज्योतिष, हस्तरेखा, तन्त्र एवं मन्त्र के क्षेत्र में विशेष कार्य हुआ है। इस प्राचीन एवं उपेक्षित शास्त्र ने भारत ही नहीं, विश्व-भर में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया। इस शास्त्र की लोकप्रियता के कारण अनेक ऐसे व्यक्ति जिन्हें तन्त्र, ज्योतिष या हस्तरेखा का ज्ञान तक न था-भी लेखक हो गये। परिणामस्वरूप जो भी पुस्तकें आयीं, पाठक को कुछ सिखाने-बताने की अपेक्षा उन्होंने दिग्भ्रमित ही किया।
प्रस्तुत पुस्तक लीक से हटकर, सरल, सुबोध भाषा में इस प्रकार लिखी गयी है कि प्रत्येक पाठक किसी का भी हाथ देखकर, पुस्तक पढ़कर भविष्यवाणी कर सके। विषय को स्पष्ट करने हेतु जगह-जगह चित्रों का प्रयोग किया गया है। साथ ही समसामयिक विशिष्ट व्यक्तियों के हस्त-चित्रों का समावेश भी पुस्तक में किया गया है, जिससे कि अन्य पाठक भी व्यवसाय विशेष से सम्बन्धित रेखाओं से परिचित हो सकें। इसमें न तो प्राचीनता को नकारा गया है और न ही आधुनिक शोधों की उपेक्षा की गयी है, अपितु प्राचीन एवं आधुनिक शोधों का समन्वय ही हुआ है। मैं भी अपने कुछ अनुभवों का वर्णन तथा शोधों का उल्लेख करने से स्वयं को रोक नहीं पाया हूँ।
आशा है, पाठकों को पुस्तक पाथेय सिद्ध होगी।
Hindu (हिंदू धर्म) (12718)
Tantra (तन्त्र) (1020)
Vedas (वेद) (707)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1907)
Chaukhamba | चौखंबा (3360)
Jyotish (ज्योतिष) (1466)
Yoga (योग) (1095)
Ramayana (रामायण) (1389)
Gita Press (गीता प्रेस) (731)
Sahitya (साहित्य) (23185)
History (इतिहास) (8271)
Philosophy (दर्शन) (3393)
Santvani (सन्त वाणी) (2584)
Vedanta (वेदांत) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist