प्राक्कथन
मनुष्य के हाथ के ऊपर रेखाओं का गहरा अध्ययन करके उसके आयुष्य के भविष्यकाल में घटने वाली घटनाओं को जान लेना अर्थात् हस्तविज्ञानशास्त्र द्वारा अगर मनुष्य को अपना भविष्यकाल पहले ही मालूम हो जाये, तो वह अपने जीवन की दिशा तय कर सकता है ।
हस्तविज्ञानशास्त्र द्वारा जिस तरह भविष्यकाल का ज्ञान प्राप्त होता है, उसी तरह आधुनिक काल की सशोधन पद्धति में भी इस शास्त्र का महत्त्वपूर्ण योगदान है । इस ग्रंथ मे ग्रंथकर्ता ने हस्तविज्ञानशास्त्र के एक नये पहलू को वाचकों के सामने रखा है । सम्पूर्ण जगत् के पुलिस विभाग को गुनाहगार ढूँढ निकालने में इस शास्त्र का उपयोग हो, इस उद्देश्य को सामने रखकर डॉ० पानसे जी ने हस्तविज्ञानशास्त्र के मूलभूत सिद्धांतों का उपयोग गुनाहगारी क्षेत्र में किया है और गुनाहगारों के हाथ पर होने वाले विविध चिह्नों के द्वारा उसमें स्थित गुनाहगारी प्रवृति की जाँच करने की कोशिश की है । अर्थात् उसके लिये उनको गहरा संशोधन करना पड़ा है ।
डॉ० पानसे जी ने अपना संशोधन कार्य योजनाबद्ध तरीके से और विधिवत किया है । उनके कार्य का विस्तृत विवरण नीचे दिया गया है ।
(1) डॉ० पानसे जी ने पूना के मशहूर कारागृह में जाकर स्वयं लगभग दो सौ गुनाहगार व्यक्तियों के हाथों के छाप लिये ।
(2) तुलनात्मक अध्ययन के लिए उन्होंने सामान्य व्यक्तियो के ' उसी सख्या में हाथों के छाप लिये ।
(3) हस्तविज्ञानशास्त्र का विस्तृत अध्ययन करके उन्होंने मनुष्य में स्थित गुनाहगारी .प्रवृत्ति का निर्देशन करने वाले चिह्नों की एक जंत्री बनायी । ऐसे कुल पैंतालिस चिह्न होते हैं । तथापि डॉ० पानसे जी ने उनमें से सामान्य व्यक्ति की सरलता हेतु कुल पच्चीस चिह्न अपने संशोधन के लिये चुने ।
(4) गुनाहगार व्यक्तियों के हाथो के छापों का शास्त्रीय ढग से विश्लेषण करके उनके हाथ पर इन पच्चीस चिह्नों में से कितने चिह्न उपस्थित है यह सुनिश्चित किया । उसी प्रकार इन पच्चीस चिह्नों में से कितने चिह्न साधारण व्यक्ति के हाथ पर मौजूद हैं यह भी सुनिश्चित किया ।
(5) गणना शास्त्र की विविध पद्धतियों का अवलंब करके अर्थात् दोनो प्रकार के हाथ पर चिह्नों के एकीकरण, समान चिह्न आदि का सूक्ष्मता से अध्ययन करने के बाद उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि सशोधन के लिए जो पच्चीस चिह्न चुने गये थे, उनमें से केवल सात चिह्न ही गुनाहगारी प्रवृत्ति का निर्धारण करते हैं । उन्हे ऐसा भी प्रतीत हुआ कि गुनाहगारी प्रवृत्ति के लिये इन सात चिह्नों में से किन्हीं भी तीन चिह्नों का हाथ पर उपस्थित होना आवश्यक है ।
सशोधन का काम कष्ट-साध्य, जटिल, कालहरण करने वाला होता है । लेकिन डॉ० पानसे जी ने अपने दृढ़ निश्चय और प्रयत्न से उसमें सफलता प्राप्त
अपने किये हुए सशोधन का महत्त्व सरकार के सामने पेश करते समय डॉ० पानसे जी ने कहा है कि गुनाहगार के गुण-दोषों का विधिवत् रूप में निदान करके उनका मनोविज्ञान अगर समझ सके, तो उसका उपयोग मानसशास्त्रज्ञो को, तुरंग अधिकारियों को और प्राइवेट संस्था, जो गुनाहगारों के पुनर्वसन के काम में रत है, उनको होने वाला है । इस दृष्टिकोण से डॉ पानसे जी का काय विचार प्रवर्तक और समाज को एक पृथक एव सही दिशा दिखाने वाला है । इसमें कोई संदेह नहीं है ।
इस ग्रथ के अत में डॉ. पानसे जी ने कुछ गुनाहगारों के हाथों के छापों का विश्लेषण किया है जिससे हस्तविज्ञानशास्त्र की गुनाहगारी क्षेत्र मे उपयुक्तता आसानी से समझी जा सकती है । जिनको गुनाहशास्त्र का अध्ययन गहराई से करना है, उनके लिये तो यह ग्रथ एक वरदान-सा है। प्रत्येक शास्त्र का उद्देश्य मानव का कल्याण करना है और इस दृष्टि से डॉ० पानसे जी का कार्य सराहनीय है ।
भूमिका
हस्तविज्ञानशास्त्र का इतिहास जितना मन लुभावना है, उतना ही रोचक और दिलचस्प है । यह शास्त्र बहुत प्राचीन है । इसे बहुत पुरानी परम्परा माना गया है । इतना होने के बावजूद भी हस्तसामुदिक शास्त्र होने न होने के बारे में बहुत चर्चा होती रही है और आज भी इस विद्या को शास्त्र की मान्यता प्रदान करने वाले कई गिने-चुने लोग हैं । इसका तात्पर्य यह हुआ कि, इसवीं सदी लगभग सोलह सौ तक, लगभग इस शास्त्र की अवहेलना एवं उपेक्षा ही होती रही है । इतना ही नहीं इस शास्त्र के उपासकों को. आराधकों को, पूजको को इस कटु सत्य का कई बार सामना करना पड़ा है । इस शास्त्र का पिछले दो सौ साल का इतिहास देखने से पता चलता है कि इसे कितनी कठिनाइयों का सामना करते-करते यहाँ तक का सफर तय करना पड़ा है ।
इस शास्त्र का उद्गम स्थान देखा जाये तो. भारत में ही हुआ है, ऐसा जाने-माने हस्तसामुदिक कीरों ने अपने ग्रथ में लिखा है । फिर भी हमारे भारत में कुछ गिने-चुने पुराने ग्रंथों को छोड्कर किसी ने इस शास्त्र पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया । फिर अन्वेषण या संशोधन तो बहुत दूर की बात रही । पिछले दो सौ सालों मे कुछ पाश्चात्य संशोधकों ने इस शास्त्र पर अपने विचार या अनुभव ग्रथ के रूप में प्रकाशित किये हैं । इसी कारण इस शास्त्र को बढ़ाने में एव प्रसारित करने में और शास्त्र को शास्त्रीय प्रणाली देकर जनसामान्य लोगों तक पहुँचाने का श्रेय विदेशी विद्वानों को देना ही उचित होगा । इनमें डी० अरपेन टिग्नी. अलफ्रेड दासबरेलोज. इन फ्रेन्च तत्त्ववेत्तों का नाम अग्रक्रम से ही अवश्य लेना पड़ेगा । इसके बाद अमरीकन ग्रंथकर्ता डॉ० बेनहाम, आग्ल ग्रंथकर्ता कीरों सेंट, जरमैन, सेंट मिल हिल, डॉ० नोएल जॅक्वीन चार्लोट वुल्फ इन संशोधक विद्वानों ने इस शास्त्र में अन्वेषण करके इसे बढ़ाने में सहायता की है । हमारे भारत देश में भी पिछले सौ साल में कई विद्वानों ने इस शास्त्र पर संशोधन करके कई ग्रंथों की रचना की है । इसमें कोई भी संदेह नही है कि किसी भी शास्त्र की उन्नति संशोधन पर ही निर्भर होती है और हस्तविज्ञान शास्त्र भी कोई अपवाद नहीं है । इस शास्त्र में भी संशोधन की बड़ी सम्भावनाएँ हैं । यह बात तो हम जानते ही हैं कि मानव-जीवन विविध प्रश्न और समस्याओं से भरा हुआ है । इतना कि प्रत्येक -समस्या को सुलझाने के लिये एक संशोधक का निर्माण होना आवश्यक है । जिस प्रकार वैद्यक शास्त्र में नाक, कान, गला 'हृदय' नेत्र, दंत, कैंसर, मानस रोग आदि के लिये अलग-अलग चिकित्सक और तंत्रज्ञ रहते हैं, उसी प्रकार हस्तविज्ञान शास्त्र में भी प्रत्येक समस्या के लिये अलग-अलग हस्तविज्ञान शास्त्रज्ञों का होना आवश्यक है । इसीलिये इस शास्त्र के अलग-अलग क्षेत्रों में गहन अध्ययन की और कड़ी मेहनत की आवश्यकता है ।
पाश्चात्य देशों में हस्तविज्ञान शास्त्र को एक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त है । वैद्यक शास्त्र में भी हस्तसामुदिक तन्त्रज्ञ की सलाह ली जाती है । इसी प्रकार की मान्यता और प्रतिष्ठा पाने के लिये इस शास्त्र के विविध तत्त्वों का इस्तेमाल करके मानवी जीवन के भित्र-भित्र क्षेत्रों में संशोधन होना चाहिये । विशेष रूप से यहाँ बताना चाहता हूँ की पूना मे अग्रगण्य ज्योतिष संस्था ''भालचंद ज्योतिर्विद्यालय'' ज्योतिष क्षेत्र के विविध अभ्यासक्रमों के साथ-साथ हस्तविज्ञान शास्त्र का भी प्रसार करते आये हैं । इस वर्ग मे हस्तविज्ञान शास्त्र बड़ी आसानी से सिखाया जाता है और साथ ही साथ हाथ को शास्त्रीय ढंग से कैसे देखा जाये इसका गहराई से सविस्तार मार्गदर्शन किया जाता है । साथ ही साथ हस्तविज्ञान शास्त्र में संशोधन करने के लिये लोगों को प्रोत्साहित करके उनको मार्गदर्शन दिया जाता है ।
मैंने डॉ० एम० कटककर के अंग्रेजी ग्रंथ Encyclopaedia of Palm and Palm Reading का मराठी रूपांतर करने का कार्य दि० 27 जुलाई 1991 में शुरू किया और फरवरी 1992 में उसे पूरा किया । इसी कारण मुझको हस्तविज्ञानशास्त्र का गहरा अध्ययन हुआ । और स्वयं ग्रंन्थ निर्माण करने की प्रेरणा मिली । इस शास्त्र के पहले ही विविध पाश्चात्य और पूर्ववर्ती ग्रंथकारों ने ग्रंथ निर्मित किये हैं, तो अपना खुद का एक ग्रंथ जो मूलभूत तत्त्वों पर आधारित हो अर्थात् Applied Palmistry के निर्माण का विचार मेरे मन में आया । इसके बारे में मैंने डॉ० कटककर से बातचीत की । आजकल की परिस्थितियों का या समय का विचार किया जाये तो हमें पता चलता है कि आज के दिन कितने असुरक्षित हैं और सामाजिक जीवन भी असुरक्षित बन गया है यह प्रतिदिन समाचार पढ़ने से पता लग जाता है । खून 'चोरी, दंगा-फसाद ' डकैती 'बलात्कार इन बातों से समाचार पत्र अपना ध्यान खींच लेता है और इस पर विचार करने पर मजबूर कर देता है, सरकार अपने तरीके से इन पर नियंत्रण करने का निरंतर प्रयास करती है, लेकिन गुनाहगारी तंत्र इतना आगे जा चुका है कि बड़े-बड़े योग्य पुलिस ऑफिसरों को भी उन्हे ढूंढकर सजा देने में बड़ी दिक्कत होती है । कठिनाइयाँ होती हैं । इसी कारण से मेरे मन मे यह विचार आया कि हस्तविज्ञानशास्त्र की सहायता से इस पर विचार करे, जिसका पुलिस डिपार्टमेंट को लाभ प्राप्त हो । इसी विचार से प्रेरित होकर इस विषय पर मैंने अंग्रेजी में ग्रंथ निर्माण करने का विचार किया । इस कार्य का शुभारंभ 11 अप्रैल 1992 में डॉ० कटककर के हाथों जानेमाने फलज्योतिषज्ञ श्री० वि०क० नाडगौड़ा की उपस्थिति में किया ।
उपर्युत? विषय पर ग्रंथ निर्माण का विचार मेरे मन में आने के बाद मैने मानस शास्त्र और गुनाहगारी शास्त्र विषयों पर सुप्रसिद्ध और विख्यात लेखकों के ग्रंथों का वाचन । मनन करके टिप्पणियाँ लिखने का कार्य जोर-शोर से शुरू किया । उसके बाद ग्रंथ कैसा प्रस्तुत किया जाये इसके बारे में डॉ० कटककर के साथ समग्र विचार विमर्श किया और ग्रंथ की कच्ची पर्त तैयार कीं ।
इस सिलसिले में 1993 कब आ गया इसका पता ही नहीं चला । पूना के प्रसिद्ध भालचंद्र ज्योतिर्विद्यालय के बहुत से छात्रों ने मिलकर मुझसे 'हाथ शास्त्रीय ढंग से कैसे पड़ा जाये' इस विषय पर एक अच्छा-खासा ग्रथ तैयार करने की विनती की । मुझको भी ऐसा महसूस हुआ कि मराठी और अंग्रेजी भाषा में इस प्रकार का अच्छा-खासा ग्रंथ उपलब्ध नहीं है और ऐसे ग्रंथों के निर्माण की आवश्यकता है । इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए मैंने इस ग्रंथ निर्माण को अग्रक्रम देकर 1994 जनवरी में इस ग्रंथ को पूर्ण किया । इस ग्रथ का प्रकाशन फरवरी 1994 में डॉ० वसंतराव पटवर्धन, ख्यातनाम अर्थतज्ञ के हाथों महाराष्ट्र ज्योतिष परिषद् की ओर से किया गया। इस ग्रंथ का नामकरण कर संकेत किया गया । यही ग्रंथ पूना के प्रसिद्ध भालचंद्र ज्योतिर्विद्यालय में क्रमिक पुस्तक के रूप मे हस्तसामुदिक अभ्यास के लिये रखा गया । इस प्रकार पहले ग्रंथ निर्माण के कार्य मे थोड़ा-सा विलम्ब हो गया ।
मैने जून 1989 में एस०टी० महामंडल की सेवा से निवृत्त होने के बाद हस्तविज्ञान शास्त्र के प्रचार एवं प्रसार के लिये पूरा समय समर्पित किया । उसके बाद वर्ष 1991 से लेकर 2000 तक पूना के 'भालचंद ज्योतिर्विद्यालय में इस विषय पर अध्यापन का कार्य किया । उसके बाद हस्तविज्ञानशास्त्र के प्रसार का कार्य ''गजानन ज्योतिर्विद्यालय" के द्वारा शुरू किया । अक ज्योतिष 'फलज्योतिष और हस्तविज्ञान इन तीनों शास्त्रों के आधार से अपने पारा आने वाले लोगो को (जातको को) पूरी तरह मार्गदर्शन भी किया । इसी के कारण मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ कि हस्तविज्ञानशास्त्र मानव जीवन के लिये उपयुक्त ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है, इस शास्त्र में कई त्रुटियाँ है और उन्हें पूरा करने के लिये इसमे संशोधन की अत्यन्त आवश्यकता है । संशोधन के बारे में मेरे मन में बार-बार विचार आते थे लेकिन इसे कार्यान्वित करने पर मजबूर करने वाली एक घटना घटी । वह इस प्रकार है-
हमेशा कि तरह हाथों का निरीक्षण एव विश्लेषण करते समय जून 1992 में एक आश्चर्य की बात हुई । इसी निरीक्षण के दौरान किसी जातक के हाथ पर मुझको गुनाहगारी निर्देशित करने वाले चिह्न एवं लक्षण दिखायी दिये । और मैं 'अचम्भित हो गया । डॉ० कटककर के साथ विचार-विमर्श करने पर उन्होंने कहा, ''आप (अर्थात् लेखक) इस विषय पर संशोधन करके जाँच करके, यह ढूँढ निकालो कि यह कौन-से विशेष चिह्न हैं जो कि मनुष्य की गुनाहगारी प्रवृत्ति निर्धारित करते हैं ।'' उन्होंने यह भी बताया कि इस प्रकार का संशोधन हस्तविज्ञान शास्त्र में अभी तक पाश्चात्य देशों में भी किसी ने नहीं किया है । अगर आपने इस संशोधन में यश पाया, तो इससे बड़ी आश्चर्य और सम्मान की बात होगी । मात्र यह बड़े कष्ट का और कड़ी मेहनत का काम है और इसमें समय भी बहुत ज्यादा लगेगा। इसके लिए हिम्मत और कड़ी तपस्या एवं मेहनत की तथा उसी प्रकार धैर्य की भी आवश्यकता है। डॉ० कटककर ने आगे कहा कि उन्होंने संशोधन करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हे इस कार्य में सफलता नहीं मिली । ''आप इसमें संशोधन करके देखो । तुम्हे अवश्य सफलता प्राप्त होगी । मेरी शुभकानाएँ तुम्हारे साथ हैं ।''
डॉ० कटककर की इस शुभकामना और सुझाव के बाद मेरी इस विषय में संशोधन करने की मनोकामना और दृढ़ विश्वास चौगुना बढ़ गया । मैंने मन में यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि कुछ भी करके, कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े, मैं संशोधन करूँगा और इसे पूरा करके ही छोडूँगा । अब हम देखेंगे कि उपर्युत्त गुनाहगार जातक के हाथ पर वह कौन-सा चिह्न (चित्र-1) है, जो कि उसकी गुनाहगारी को दिखा रहा है ।
अनुक्रम
प्रथम खण्ड
विषय प्रवेश
1
3
2
प्रगत हस्तविज्ञानशास्त्र
30
हाथ के छापे का महत्व
39
4
बायाँ और दायाँ हाथ
41
द्वितीय खण्ड
हस्तविश्लेषण-हस्तलक्षणशास्त्र के द्वारा
47
5
49
6
हाथ का आकार-बौद्धिक क्षमता का प्रतिफल
54
7
हाथ का विभाजन-व्यक्ति के मानसशास्त्र का अभ्यास
62
8
हाथ की उँगलियाँ-मनुष्य के भावनात्मक विश्व
69
9
अँगूठा-मनुष्य के चरित्र का आधार
82
10
हाथ के उभार-मनुष्य की क्रियाशील मानसिक शक्ति
91
11
हाथ के उभार
97
तृतीय खण्ड
हस्तविश्लेषण-हस्तरेखाशास्त्र के द्वारा
111
12
हाथ की रेखाएँ
113
13
आयु रेखा
118
14
मंगल रेखा-आयु रेखा की भगिनी रेखा
126
15
मस्तिष्क रेखा-मनुष्य में आयु की दिशा अर्थात सुकाणू
प्रदर्शित करने वाली रेखा
131
16
हृदय रेखा
144
17
हाथ की सहायक रेखाएँ
154
18
वासना रेखा
165
चतुर्थ खण्ड
अन्य महत्वपूर्ण जानकारियाँ
169
19
गुनाहगारी प्रवृत्ति प्रदर्शित करने वाले चिह्न
171
20
विविध चिह्नों का एकीकरण
175
21
संशोधन के बारे में संपूर्ण जानकारी
184
परिशिष्ट-अ
194
परिशिष्ट-ब
196
22
कुछ गुनाहगार व्यक्तियों के हाथों के छापों का विश्लेषण
198
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