रावण जब सृष्टि में पैदा हुआ तो उसके रुदन से सभी भयभीत हो गए और करुण क्रंदन करने लगे। इसीलिए इसे रावण कहा गया। यह नाम इसे स्वयं भगवान शिव ने भी उस समय दिया था जब रावण ने अपने बल में चूर होकर कैलाश पर्वत को उठाने की चेष्टा की थी। उस समय भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत पर दबाव डाला तो रावण का हाथ उसमें दब गया और वह करुण क्रंदन करते हुए शिव का स्तुति गान करने लगा। तब भगवान शिव ने उसे कष्टमुक्त करके उसे रावण नाम से संबोधित किया था।
पुलस्त्य ऋषि का पौत्र होने के कारण पौलस्त्य के नाम से भी वह प्रसिद्ध हुआ। पिता का नाम वित्रवा व माता का नाम कैकसी था।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पिछले जन्म में कैकय देश के राजा सत्यकेतु का पुत्र भानुप्रताप था। उसका भाई अरिमर्दन था तथा मंत्री धर्मरुचि था।
ऋषि-मुनियों के शाप से भानुप्रताप त्रेता युग में रावण बना, उसका भाई अरिमर्दन कुंभकर्ण बना तथा मंत्री धर्म रुचि विभीषण, बना। विगत जन्म के प्रभाव से ही रावण बुद्धिमान, नीतिज्ञ, विद्वान, ज्योतिष मर्मज्ञ था। लेकिन त्रेता युग में क्रूर प्रवृत्ति होने के कारण तीनों लोकों को भयभीत करने लगा।
मायावी विद्या में रावण पारंगत था। उसने आशुतोष शिव की कृपा से तंत्र- पंत्र, नीति, आदि अनेक रहस्यात्मक विद्याओं की प्राप्ति की। रावण का पुत्र नेघनाद मायावी विद्या में रावण से भी एक कदम आगे था। उसे रावणि नाम से भी जाना जाता है।
मूलतः रावण संहिता की रचना रावण द्वारा आज से लगभग नौ लाख वर्ष र्व हुई थी। तब उसका स्वरूप कुछ और ही था। लेकिन कालांतर में उसमें जो दलाव हुए और होत रहे, उसके परिणामस्वरूप वर्तमान में जो रूप उसका हमारे रामने है, उसी को रावण संहिता मानना उचित रहेगा।
इसमें अनेक खंडों में रावण का जीवन वृत्तांत श्रीराम-अगस्त्य संवाद रूप में वर्णित है। रावण विरचित उड्डीश तंत्र, कुमारतंत्र, के अलावा क्रियोड्डीश तंत्र भी है, जिसकी रचना के बारे में कहा जाता है कि यह रावण पुत्र मेघनाद द्वारा रचित है।
रावण द्वारा रचित उड्डीश तंत्र में जहां षट्कमों का निरूपण, प्रयोग विधि का वर्णन किया गया है, वहीं अर्कप्रकाश में चिकित्सा पद्धति का तथा कुमार तंत्र में जहां षट्कर्मों का निरूपण, प्रयोग विधि का वर्णन किया गया है, वहीं अर्कप्रकाश में चिकित्सा पद्धति का तथा कुमार तंत्र में बाल रोगोपचार का वर्णन है।
इसी तरह शिव तंद्ध के शिव व रावण संवाद रूप में गूढ़ातिगूढ़ तंत्र-रहस्यों को विवशता से उजागर किया गया है।
ज्योतिष प्रकरण से रावण के ज्योतिष ज्ञान का पता चलता है। वह सामुद्रिक शास्त्र विशारद था। उसका इतना दबदबा था कि किसी भी कुंडली में कोई ग्रह अपना स्थान रावण की आज्ञा से प्राप्त करता था।
किसी समय लंकाधिपति रहा कुबेर रावण का सौतेला भाई था। रावण संहिता की विलक्षणता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें वर्णित यंत्र मंत्र तंत्र इतने प्रभावी हैं कि दुरुपयोग करने पर ये अनिष्टकारी भी सिद्ध हो सकते हैं। अतः आमजन को सचेत कर देना आवश्यक है कि इनका दुरुपयोग न करें।
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