रिजवान 2002 में हमने विश्व के धार्मिक नेताओं को एक खुले पत्र से संबोधित किया था। पत्र में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई थी कि यदि सांप्रदायिक घृणा की यह आंधी नहीं रोकी गई तो आशंका है कि शायद ही दुनिया का कोई कोना इससे अछूता रह पाये। पत्र में अंतधार्मिक अभियान की उपलब्धियों की सराहना की गई है। इस अभियान में आरम्भ से ही बहाइयों ने भरपूर योगदान दिया है। हमारा दृढ़ता से यह मानना है कि यदि धार्मिक उन्माद के संकट से गंभीरता से निपटा जाना है तो संगठित धर्म को अतीत से चली आ रही अवधारणाओं और पूर्वाग्रहों से उबरने का साहस अपने भीतर जुटाना होगा।
सबसे बढ़कर तो यह कि हमने इस संदर्भ में अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की कि अब वह समय आ गया है जब धार्मिक नेताओं को पूरी निष्ठा से और बिना किसी टालमटोल के इस सत्य को लागू करना होगा कि ईश्वर एक है तथा तमाम सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की विभिन्नता और मानवीय व्याख्याओं से परे धर्म एक है। इसी सत्य की अनुभूति ने अंतधार्मिक अभियान को प्रेरित किया था और इसी ने पिछले एक सौ वर्षों के दौरान प्रतिकूल परिस्थितियों में भी इसे बनाये रखा है।
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