पुस्तक परिचय
इस पुस्तक में सरस्वती नाम की एक ऐसी नदी की गाथा है जो आज से लगभग साढ़े तीन हज़ार वर्ष पूर्व विलुप्त हो गयी थी। बिना तकनीकी शब्दों का प्रयोग किये सरल भाषा में लिखी इस रचना में उस महान नदी सरस्वती का इतिहास है जो हरियाणा, पश्चिमोत्तर राजस्थान और पूर्वी सिन्ध राज्यों को सींचती हुई अरब सागर में विसर्जित होती थी। नदी के उर्वर मैदान में विकसित पल्लवित पाषाणकालीन एवम् हड़प्पा संस्कृतियों के लोगों की जीवनशैलियों पर भी इस पुस्तक में प्रकाशित डाला गया है।
लेखक ने विज्ञान की कसौटी पर परख कर, प्रभूत चित्रों का सहारा लेकर, विवित्र भूवैज्ञानिक, भौमिक, भूजलीय, पुरातात्विक एवम् पौराणिक साक्ष्य प्रस्तुत कर सरस्वती का इतिहास चित्रित किया है एवं भूगतिक भौमिक घटनाओं का हवाला देते हुए सरस्वती के विलुप्त होने का कारण बताया है।
लेखक परिचय
कभी नवनीत, धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान में विज्ञान विषयक लोकरंजक लेख लिखने वाले डॉ० खड्ग सिंह वल्दिया भूविज्ञान एवम् पर्यावरणविज्ञान पर अंग्रेज़ी में दस और हिन्दी में चार पुस्तकों के रचयिता हैं। शान्तिस्वरूप भटनागर पुरस्कार, पीताम्बर पन्त नेशनल एन्वायरन्मेन्ट फ़ैलो, नेशनल लैक्चरर, नेशनल मिनरल अवार्ड ऑफ़ ऐक्सलैन्स, वाडिया मैडल, इन्सा गोल्डन जुबिली प्रोफ़ैसर, हिन्दीसेवी सम्मान (आत्माराम पुरस्कार), पद्मश्री, आदि, सम्मानों से विभूषित प्रोफ़ैसर वल्दिया भारत के तीनों विज्ञान अकादिमों थर्ड वर्ल्ड अकैडमी आँफ़ साइन्सैस, जिओलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ अमेरिका तथा नेपाल जिओलॉजिकल सोसाइटी के फैल़ो हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया है।
उत्तराखण्ड में पिथौरागढ़ के निवासी प्रो० वल्दिया लखनऊ विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय वाडिया इन्स्टि्यूट ऑफ़ हिमालयन जिओलॉजी, कुमाँऊ विश्वविद्यालय तथा जवाहर लाल नेहरू सैन्टर फ़ॉर अडवान्स्ड साइन्टिफ़िक रिसर्च में विभित्र पदों पर रहे हैं। आईटी आई रुड़की तथा आईटी आई मुम्बई ने भी उन्हें दो वर्षों के लिए सम्मानित विज़िटिंग प्रोफ़ैसर के रूप में आमन्त्रित किया।
दो शब्द
समय की अन्तहीन पगडंडी पर चलता हुआ हिमालय के भूवैज्ञानिक अतीत के सुदूर कालों में भटकने के बाद मेरी दृष्टि पड़ी पर्वतराज के सामने सिन्धु गंगा के मैदान के उस भूभाग पर जो नितान्त नदी हीन है । इसी भूभाग के लिए कुछ हजार साल पहले भयंकर महाभारत युद्ध हुआ था कुरुक्षेत्र में । अनेक भूविज्ञानियों तथा पुरातत्ववेत्ताओं की भाति मुझे भी आश्चर्य होता था कि हड़प्पा सभ्यता के प्रगतिशील समाज के लोग क्यों ऐसी निर्जल वाहिका के किनारे बसते थे जिसमें आज केवल बाढ़ का पानी बहता है । कैसे बन गये थे वे समृद्ध सम्पन्न और उन्नत नदी हीन अंचल में रहते हुए भी कैसे हो गया उनका जीवन इतना जीवन कि उसमें कला के प्रति आग्रह था आवश्यकताओं में सुरुचि थी और पर्यावरण के प्रति प्रेम था? उनके अंचल में सदानीरा नदी न होते हुए भी उनकी सभ्यता कैसे फली फूली?
सन् 968 में लोकप्रिय साप्ताहिक धर्मयुग में मेरा लेख छपा था कैसे गंगा ने सरस्वती के जल का अपहरण किया । पाठकों में व्यापक दिलचस्पी पैदा थी । बारह वर्ष बाद सन् 980 में यशपाल आदि ने उपग्रहों से चित्रों के आधार पर जब सरस्वती के जलमार्ग को रेखांकित किया तो विद्वानों की शंका काफी कम हो गयी । सन 996 में रैज़ोनैन्स पत्रिका में छपे मेरे लेख ने सरस्वती पर अनेक विज्ञानियों की अभिरुचि उत्पन्न कर दी ।मेरा मानना है कि महाकाव्य और पुराण पूर्णत कपोल कल्पित और मनगढ़न्त नहीं हैं । वे इतिहास के महत्वपूर्ण पहलुओं एवम् घटनाओं को उजागर करते हैं । सन 984 में प्रकाशित भूविज्ञान के विद्यार्थियों के लिए लिखी पाठ्यपुस्तक मै मैंने सरस्वती की त्रासदी पर लिखने का साहस किया । जब कभी, जहाँ कहीं पश्चिमोत्तर भारत की विवर्तनिक हलचलों पर लिखने बोलने का अवसर मिला, मैंने सरस्वती नदी के विलुप्त होने का कारण बताने का प्रयास किया है ।
जब स्वर्गीय प्रोफैसर सतीश धवन ने सुझाया कि उस विलुप्त नदी से सम्बन्धित इतिहास और विरासत पर लोकरंजक प्रबन्ध लिखूँ जो इस महाद्वीप में रहने वाले श्रेष्ठ लोगों के जीवन का आधार थी, तो मैने यह कार्य सहर्ष स्वीकार कर लिया । संयोग से सरस्वती नदी पर मेरा वैज्ञानिक व्याख्यान सुनने वाले श्रोताओं में शामिल प्रो रोड्डम नरसिंह ने उससे कुछ ही दिन पहले मेरे हृदय में पुस्तक प्रणयन की चिंगारी पैदा कर दी थी ।
यह रचना एक ऐसे भूविज्ञानी की सोच की अभिव्यक्ति है जिसे ऊँचे पर्वतों और दुर्गम भूभागों में संधान करने में सुख मिलता है और जो पुरातत्ववेत्ताओं एवम् इतिहासकारों के क्षेत्र में घुसपैठ करने की धृष्टता करता है । इस पुस्तिका में एक ऐसी नदी का वर्णन है जो हिमालय में हिम के गलने से बन कर अरावली श्रेणी के पश्चिम में फैले भूभाग से होती हुई कच्छ की खाड़ी में विसर्जित होती थी । वह ऐसी नदी थी जिसका पाट चौड़ा था और जिसमें प्रबल धाराएँ बहती थीं । पुराणों के प्रति अपनी आस्था को दरकिनार कर तथा सरस्वती अंचल को भूवैज्ञानिक परिस्थितियों के चौखटे में रखकर मैंने अपने निष्कर्षो को विवर्तनिक इतिहास की कसौटी में कसने का प्रयास किया है । शिवालिक अंचल में हुई विवर्तनिक घटनाओं का सिन्धु गंगा मैदान की स्थलाकृति एवम् नदी तंत्र पर गम्भीर प्रभाव पड़ा था । हरियाणा और संलग्न राजस्थान में बहती नदी के उस बहुत ही चौड़े पाट की वह नदी भी प्रभावित हुई होगी जिसकी वाहिका हिमालय से आयी रेत मिट्टी बालू से पटी पड़ी है । खारे पानी वाले थार रेगिस्तान के मध्य में बालू रेत के अम्बार के नीचे घूमती मुड़ती प्रच्छन्न वाहिकाओं में हजारों वर्ष पुराने मीठे पानी की उपस्थिति का क्या अर्थ लगाया जा सकता है क्या कहा जा सकता है उस जल के भण्डारों के बारे में जो निरंतर बड़े पैमाने पर दोहन के बावजूद और वर्षाजल द्वारा पुन पूरित हुए बिना भी घट नहीं रहे हैं? कहना न होगा कि मीठे पानी के ये भण्डार किसी आन्तर्भौम सदानीरा सोन से जुडे हुए हैं । कौन सा सोत सदानीत हो सकता है ? आज केकच्छ के रण में लवणयुक्त दलदली मैदान के उत्तर में एक डेल्टे के अवशेष के सामने एक पुरातन प्राचीन पोतपत्तन की अवस्थिति एक ऐसी नदी के होने की सूचक एं जिससे होती हुई नावें अरब सागर में जाती थीं । तब अरब सागर कच्छ की खाड़ी के मार्फत इस बन्दरगाह तक विस्तीर्ण था।
पंजाब, हरियाणा और संलग्न राजस्थान में ऐसे नदी नालों के अनोखे बेतुके आचरण के प्रमाण मिलते हैं जो अपनी अपनी वाहिका छोड़ कर नया नया रास्ता बना कर बहा करते थे । अरावली मारवाड़ का भूभाग ऐसे भ्रंशों दरारों से कटा फटा है जिन पर होने वाले भूसंचलनों के परिणामस्वरूप धरती कहीं धँसी बैठी कहीं उठी उभरी और कहीं खिसकी सरकी । सौराष्ट्र से लेकर हिमालय तक विस्तीर्ण यह भूभाग बार बार भूकम्पों डरा झकझोरा गया है । इस प्रदेश में अतीत में हुए भूकम्पों के असंदिग्ध चिल्ल मिलते हैं । ऐसे समय में जब नदियों ने मार्ग बदले, और धरती भूकम्पों द्वारा आन्दोलित विलोड़ित हुई सब सरस्वती नदी के मैदान से बड़े पैमाने पर लोगों की भगदड़ और उनके हिमालय की तलहटी और समुद्र तटीय क्षेत्रों में बस जाने का क्या अर्थ लगाया जा सकता है
अनेक भूवैज्ञानिक साक्ष्यों के विश्लेषण के आलोक में मैंने उन लोगों की जीवनशैली के बारे में जानने का प्रयास किया है जो उस नदी जो आज निर्जल है के मैदान में बसे थे । इस अध्ययन का परिणाम है उस सभ्यता की गरिमा एवम् सुरुचि सम्पन्नता का बोध जिसे हड़प्पा के नाम से जाना जाता है ।
इस पुस्तिका में मैंने सरस्वती के अंचल का भौमिकीय इतिहास प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । उन विवर्तनिक घटनाओं का विशेष उल्लेख है जिनके कारण सरस्वती विलुप्त हो गयी । इस रचना में ऐसे विचित्र तथ्यों का वर्णन है जिन्हें कुछ लोग गल्प मानते हैं भ्रान्ति समझते हैं।
विषय सूची
आभार ज्ञापन
vii
ix
इतिहास की रंगभूमि
1
सरस्वती अंचल का भौमिकीय इतिहास
9
आबाद था सरस्वती अंचल
39
सरस्वती का तिरोभाव
63
सरस्वती की त्रासदी परिणाम
81
ऋग्वेद और महाभारत
87
संदर्भ सूची
97
अनुक्रमणिका
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