प्राक्कथन
बन समाश्रित। येSपि निर्ममा निष्परिग्रहा: ।।
अपि ते परिपृच्छन्ति ज्योतिषां गति कोविदम् ।।
जो सर्वसंग परित्याग कर वन का समाश्रय ले चुके हैं, ऐसे रागद्वेष शून्य, निष्परिग्रह मुनिजन-संत-महात्मा भी ज्योतिष शास्त्र वेत्ताओं से भविष्य ज्ञात करने के लिये उत्सुक रहते हैं; तब साधा- रण संसारी प्राणी की तो चर्चा ही क्या ?
प्राय: इस भविष्य ज्ञान की प्राप्ति ज्योतिष शास्त्र के द्वारा होती है । ज्योतिष शास्त्र अथाह सागर है । जन्म-कुण्डली निर्माण के लिये, जन्म का स्थान, ठीक समय का ज्ञान आदि परमावश्यक हैं । शुद्ध लग्न, भाव स्पष्ट, ग्रह स्पष्ट, मान्दि स्पष्ट मित्रामित्रचक्र, सप्तवर्गी चक्र, दशवर्ग, दशा, अन्तर्दशा, अष्टक वर्ग, सर्वाष्टक वर्ग आदि बनाने में बहुत गणित करना पड़ता है और परिश्रम साध्य है । फलादेश में भी अनेक विचारों का सामन्जस्य करना पड़ता है । बृहत् ज्योतिष शास्त्र की परिक्रमा लगाना वैसा ही कठिन है जैसा पृथ्वी की परिक्रमा लगाना ।
पृथ्वी की परिक्रमा के सम्बन्ध में पुराणों में एक कथा' है कि एक बार स्वामी कार्तिक तथा गणेश जी दोनों ने आग्रह किया कि उनका विवाह हो । स्वामी कार्तिक चाहते थे पहिले उनका विवाह हो तथा गणेश जी चाहते थे पहिले उनका विवाह । तब उनके माता-पिता ने कहा कि जो पहिले पृथ्वी की परिक्रमा पूर्ण कर आवेगा उसी का विवाह पहिले किया जावेगा । स्वामी कातिक अपने वाहन मयूर पर चह कर द्रुतगति से चले और देखते-देखते आँखों से ओझल हो गये । गणेश जी का शरीर भारी और वाहन छोटा-सा 'मूषक' । सो विचार में पड़ गये कि कैसे परिक्रमा पूर्ण करूँ? उन्होंने आने माता-पिता को बैठाया, उनके चरणों का पूजन कर ७ बार माता-पिता की परिक्रमा की और प्रणाम कर कहा कि ''मैंने पृथ्वी की परिक्रमा कर ली--भाई एक बार भी परि- क्रमा करके नहीं आये । अब पहिले मेरा विवाह कीजिये'' । शास्त्रों में माता-पिता का पूजन और परिक्रमा पृथ्वी-परिक्रमा के समान है । इस युक्ति से गणेश जी का विवाह हो गया और उन्हें ऋद्धि, बुद्धि-यह दोनों विश्वरूप प्रजापति की दो सुन्दरी कन्याएँ--पत्नी रूप में प्राप्त हुई ।
कहने का तात्पर्य यह है कि जो सज्जन ज्योतिष शास्त्र की बृह- त्परिक्रमा में अक्षम हैं, वह गणेश जी के उपर्युक्त उदाहरण को लेकर ''अंक विद्या'' का अभ्यास करें तो थोड़े परिश्रम से--केवल अंगरेज़ी की जन्म तारीख, नाम, किंवा प्रश्न से भविष्य का बहुत कुछ शुभाशुभ जान सकते हैं । अंगरेज़ी में Numerology की अनेक पुस्तकें हैं किन्तु हिन्दी में. अंक-विद्या (ज्योतिष) की कोई पुस्तक. मेरे देखने में नहीं आई । अनेक ग्रन्थों का अध्ययन तथा अनुशीलन कर यह पुस्तक पाठकों के सम्मुख ररवी जा रही लूँ ।
शरण करवाणि कामद ते चरणं वाणि चराचरोपजीव्यम् ।।
करुणामसृणै कटाक्षपातै: कुरुमामम्ब कृतार्थसार्थवाहम् ।।
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