भगवत्प्राप्ति कठिन नहीं: Not Difficult to Find God

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Item Code: GPA320
Author: Jayadayal Goyandka
Publisher: Gita Press, Gorakhpur
Language: Sanskrit Text With Hindi Translation
Edition: 2012
ISBN: 812931438X
Pages: 128
Cover: Paperback
Other Details 8.0 inch X 5.0 inch
Weight 110 gm
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Book Description
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निवेदन

साधक भाई-बहनोंकी एक धारणा बन गयी है कि भगवत्प्राप्ति करनेके लिये एकान्तमेंजाना, तीर्थस्थानमेंजाना, वनमें जाना आवश्यक है । वहाँ जाकर कठोर परिश्रम, साधना-तपस्या करके ही भगवत्प्राप्ति सम्भव है। कई ऐसे प्रचलित भ्रम फैले हुए हैं कि स्त्री, शूद्र, वैश्य एवं गृहस्थोंका कल्याण नहीं होता। श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाको जो गीताप्रेसके संस्थापक थे बहुत छोटी आयुमें ही भगवद्दर्शनका सौभाग्य प्राप्त होने से इनका एकमात्र उद्देश्य जीवोंका कल्याण करनेका बन गया था। हमारी धारणामें अपने प्रवचनों द्वारा जीवोंका उद्धार करनेका अधिकार भी उन्हें भगवान्से प्राप्त हो गया था। वे अपने उद्देश्यकी दिशामें ऋषिकेश गंगाके उस पार ग्रीष्मकालमें सत्संग-हेतु पधारते थे। वहाँ वटवृक्षके नीचे या गंगा-किनारे बालूपर सत्संग करते थे। उन्होंने अपने प्रवचनोंमें जो ऊपर लिखे भ्रम लोगोंमें फैले रहते हैं, उनका युक्तिसहित निराकरण किया है और सबके लिये भगवत्प्राप्ति कठिन नहीं अपितु सहज है, सभी वर्गके भाई-बहनोंको भगवत्यप्राप्ति सुगमतासे हो सकती है-इस आशयके प्रवचन दिये हैं। भगवत्प्राप्ति कठिन माननेसे कठिन और सुगम माननेसे सुगम है, यह साधककी मान्यता एवं श्रद्धापर निर्भर है, ऐसा बताया गया है।

माताएँ-बहनें पतिकी सेवासे, व्यापारी व्यापारसे, पुत्र पिताकी सेवासे, शिष्य गुरुकी सेवासे, गृहस्थ अतिथि-सेवासे भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं। ये भाव उनके प्रवचनोंमें बहुत बार आये हैं। साधकको निराश होना ही नहीं चाहिये। नीचसे नीचको भी भगवत्प्राप्ति बहुत सुगमतासे हो सकती है।

उपर्युक्त भावोंका विवेचन श्रद्धेय श्रजियदयालजी गोयन्दकाके प्रवचनोंमें कहीं विस्तार और कहीं संक्षेपसे हुआ है। उन प्रवचनोंसे हम लाभान्वित हों इसलिये उन प्रवचनोंको पुस्तकरूप देकर प्रकाशित किया जा रहा है। जिन भाई-बहनोंने इन्हें सुना है उन्होंने विशेष लाभ उठाया है।

पाठकोंसे प्रेमपूर्वक निवेदन है कि इन प्रवचनोंको अवश्य पढ़ने-पढ़ानेकी कृपा करें।

 

विषय-सूची

1

दोष-त्याग करके भजन करनेका महत्व

5

2

सर्वोत्तम भाव-सभीका कल्याण चाहना

15

3

अन्तिम चिन्तनके अनुसार योनिकी प्राप्ति

24

4

भगवान्में प्रेम न करना नीचताकी हद

31

5

समता ही न्याय है

38

6

महापुरुषोंकी महिमा

42

7

पातिव्रत्य धर्म

43

8

गीताके तत्त्वको जाननेसे मुक्ति

46

9

श्रद्धासे विशेष लाभ

49

10

साधन कठिन नहीं है

52

11

व्यर्थ चिन्तन कैसे मिटे

56

12

निष्कामभावकी आवश्यकता

76

13

तत्वज्ञानीके व्यवहारका वर्णन

87

14

प्रेम, विह्वलता एवं रोनेसे शीघ्र भगवद्दर्शन

92

15

साधनकी उच्च स्थिति कैसे हो?

100

16

भगवान्के अवतारका रहस्य

106

17

भरतजीका आदर्श प्रेम

115

18

भजनसे बढ़कर भी भगवान्के लिये रोना है

122

19

दृढ़ धारणासे भगवत्प्राप्ति

124

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