निकोलाई रोरिक (हिमालय की आत्मा का चितेरा ): Nicholas Roerich Painter of The Soul of The Himalayas

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Item Code: NZD006
Publisher: Publication Division, Ministry Of Information And Broadcasting
Author: डा. जगदीश चंद्रिकेश (Dr. Jagdish Candrikesa)
Language: Hindi
Edition: 2003
ISBN: 8123010877
Pages: 118 (19 Color and 4 B/W Illustrations)
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 150 gm
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Book Description

पुस्तक के बारे में

'मैं जब भी सेरिक के बारे में सोचता हूं जो उनकी सृजनशील प्रतिभा और उसके कृतित्व की अद्भुत संपन्नता व विविधता पर चकित रह जाता हूं। वह एक महान चित्रकार, एक शीर्षस्थ विद्वान और लेखक पुरात्तववेत्ता व यायावर थे। उन्होंने मानवीय पक्ष के अनेक कार्य-क्षेत्रों में कार्य किया। उनके अनेक चित्र स्वयं में आश्चर्यजनक हैं। उनके हत्याराों चित्रों में, प्रत्येक चित्रकला का वैभवपूर्ण उदाहरण है। उनके हिमालय विषयक चित्रों में हिमालय की गरिमापूर्ण आत्मा का अंकन है। उनके ये चित्र हमें हमारे इतिहास, हमारे दर्शन और हमारी सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत का स्मरण दिलाते है, जिनमें अधिकांश तत्व भारत के अतीत का ही नहीं, अपितु शाश्वत और चिर-स्थायी है।'

प्राक्कथन

निकोलाई रोरिक की जन्मशताब्दी के अवसर पर सन् 1974 में दूरदर्शन ने अपने एक कार्यक्रम के लिए मुझसे रोरिक पर एक आलेख लिखवाया था । इस आलेख के बाद रोरिक के व्यक्तित्व और कृतित्व के संबंध में जो जानकारियां मुझे मिलती गई उनके आधार पर मैंने एक लंबा लेख लिखा । दरअसल, रोरिक के बारे में हमारे यहां अधिक नहीं लिखा गया । आश्चर्य तो यह कि चित्रकला विषय में बी.. और एम.. करते समय मी मुझे किसी भी पाठ्य- पुस्तक में रोरिक के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली, जबकि रोरिक ने भारत को अपना घर बनाकर, भारतीयता को अपनाकर, भारतीय दार्शनिक मान्यताओं के अनुसार हिमालय का चित्रण किया, सारे विश्व को हिमालय के अद्भुत सौंदर्य से परिचित कराया और भारतीयता की महिमा को उजागर किया । उनके बारे में पाठ्य-क्रम या कला संबंधी पुस्तकों में जानकारी के अभाव का कारण शायद यही रहा होगा जैसा कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखा है, 'ललित कलाओं के इतिहास में समय-समय पर ऐसे अनेक व्यक्ति पैदा हुए हैं, जिनका कृतित्व अपनी गुणात्मक विशिष्टता के कारण उन्हें उनके समकालीनों से अलग एक विशेष स्थान दिलाता रहा है। उस विशिष्टता के कारण उन्हें किसी शात श्रेणी में रखना या किसी धारा विशेष से जोड़ना संभव नही है, क्योंकि वे अपने आप में अकेले व अद्वितीय होते हैं। रोरिक अपने चरित्र और कला की दृष्टि से गही गिने-चुने कलाकारों में से एक रहे हैं।'

विगत अट्ठाइस सालों में मैं रोरिक के बारे में जहां-जहां से जानकारी उपलब्ध हो सकती थी, प्राप्त करता रहा और रोरिक पर लिखता रहा। रोरिक पर मेरे कई लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। इन सबको मैंने एक लंबे लेख के रूप में त्यवस्थित किया ।

प्रकाशन विभाग ने भारत के उस महान मित्र रोरिक के महत्व को रेखांकित करते हुए उसे प्रकाशन हेतु स्वीकार किया, साथ ही परामर्श दिया कि यदि इसका कलेवर कुछ बडा हो और फलक भी व्यापक हो तो पुस्तक कहीं अधिक उपयोगी बन पड़ेगी । अत: इसे दोबारा नये ढंग से, अध्यायबद्ध करते हुए लिखा, जो अब पाठकों के सामने प्रस्तुत है। जहां तक मेरी जानकारी है, राष्ट्र भाषा हिंदी में यह पहली पुस्तक है, जिसे उस महान मनीषी के प्रति अपनी कृतज्ञता शापित करते हुए प्रकाशन विभाग प्रस्तुत कर रहा है। रूस के स्थानों व व्यक्ति-नामों के सही हिंदी उच्चारण के लिए मै रूसी भाषा-विज्ञ डॉ. लालचंद राम, प्रवक्ता, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्। नई दिल्ली के सहयोग तथा चित्रों के लिए रशियन सेंटर ऑफ साइंस एण्ड कल्चर, नई दिल्ली का आभारी हूं और उन विद्वान लेखकों का तो आभारी हूं ही जिनकी कृतियों से मैंने सहायता ली है।

मां भारती के भंडार को यह कला विषयक पुस्तक न्यूनाधिक अंशों में समृद्ध करेगी तथा रोरिक संबंधी जानकारी के अभाव की पूर्ति करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

प्रकाशन विभाग ने भारत के उस महान मित्र रोरिक के महत्व को रेखांकित करते हुए उसे प्रकाशन हेतु स्वीकार किया, साथ ही परामर्श दिया कि यदि इसका कलेवर कुछ बडा हो और फलक भी व्यापक हो तो पुस्तक कहीं अधिक उपयोगी बन पड़ेगी। अत: इसे दोबारा नये ढंग से, अध्यायबद्ध करते हुए लिखा, जो अब पाठकों के सामने प्रस्तुत है। जहां तक मेरी जानकारी है, राष्ट्र भाषा हिंदी में यह पहली पुस्तक है, जिसे उस महान मनीषी के प्रति अपनी कृतज्ञता शापित करते हुए प्रकाशन विभाग प्रस्तुत कर रहा है। रूस के स्थानों व व्यक्ति-नामों के सही हिंदी उच्चारण के लिए मै रूसी भाषा-विज्ञ डॉ. लालचंद राम, प्रवक्ता, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्। नई दिल्ली के सहयोग तथा चित्रों के लिए रशियन सेंटर ऑफ साइंस एड कल्चर, नई दिल्ली का आभारी हूं और उन विद्वान लेखकों का तो आभारी हूं ही जिनकी कृतियों से मैंने सहायता ली है।

मा मारती के भंडार को यह कला विषयक पुस्तक न्यूनाधिक अंशों में समृद्ध करेगी तथा रोरिक संबंधी जानकारी के अभाव की पूर्ति करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

 

अनुक्रमणिका

प्राक्कथन

1

जन्म और वंश-परंपरा

1

2

भावी जीवन की तैयारी

10

3

सर्वाधिक सक्रिय वर्ष

20

4

फिनलैंड में प्रवास

28

5

इंग्लैंड और अमेरिका में

38

6

भारत आगमन

44

7

मध्य-एशिया की खोज में

48

8

अमेरिका के दौरे पर

60

9

हिमालय की गोद में

63

10

रोरिक के जाने के बाद

80

11

परिशिष्ट

86

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