नम्र-निवेदन
महापुरुषोंने जिस तत्त्वको, आनन्दको प्राप्त कर लिया है उस आनन्दकी प्राप्ति सभी भाई-बहिनोंको हो जाय, ऐसा उनका स्वाभाविक प्रयास रहता है उसी बातको लक्ष्यमें रखकर उनकी सभी चेष्टाएँ होती हैं इस बातकी उन्हे धुन सवार हो जाती है। उनके मनमें यही लगन रहती है कि किस प्रकार मनुष्योंका व्यवहार सात्विक हो, स्वार्थरहित हो, प्रेममय हो, उनके दैनिक जीवनमें शान्ति-आनन्दका अनुभव हो और ऊँचे-से-ऊँचा आध्यात्मिक लाभ हो। इसी दिशामें उनका कहना, लिखना एवं समझाना होता है।
परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका वर्तमान युगमें एक ऐसे महापुरुष हुए हैं जिनकी सभी चेष्टाएँ इसी भावसे स्वाभाविक होती थीं । गीताप्रेससे प्रकाशित पुस्तकोके पाठकगण प्राय: उनसे परिचित हैं । वे गंगाके इस पार ऋषिकेशमें, गंगाके उस पार टीबड़ीपर, वटवृक्षके नीचे, जंगलोंमें तथा समय- समयपर अन्य स्थानोंमें सत्संगका आयोजन करते थे। उन सत्संगोंमें जो समय- समयपर उनके मुखसे अमृतमय अमूल्य वचन सुननेको मिले, उन्हें संगृहीत किया गया है। इन्हीं वचनोंको अमृत वचन पुस्तकके नामसे प्रकाशित करके आप पाठकगणोंके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।
इस पुस्तकमें ऐसे दामी अमूल्य वचन हैं जिनमें भगवन्नाम, भगवत्स्मृति, गीताजी, निःस्वार्थ सेवा तथा सत्संगकी महिमा विशेषतासे कही गयी है। व्यवहारकी ऐसी बातें भी हैं, जिन्हें हम काममें लावें तो हमारे गृहस्थजीवनमें बड़ी शान्ति मिल सकती है। हमारे व्यापारका सुधार हो सकता है, उच्चकोटिका व्यवहार हो सकता है तथा उन बातोंको काममें लाकर हम गृहस्थमें रहते हुए व्यापार करते हुए भगवत्प्राप्ति कर सकते हैं। ऐसे समझनेमें सरल, उपयोगी, अमूल्य वचन बहुत कम उपलब्ध होते हैं । भगवत्कृपासे ही ये हमें इस पुस्तकरूपमें उपलब्ध हो रहे हैं।
हमें आशा है कि पाठकगण इन वचनोंको ध्यानसे पढ़कर मनन करेंगे एवं जीवनमें उतारनेका प्रयास करके विशेष आध्यात्मिक लाभ उठायेंगे।
विषय-सूची
1
संत्संगकी अनमोल बातें
5
2
स्वार्थ-त्यागसे भगवत्प्राप्ति
144
3
शिक्षाप्रद पत्र
148
गजलगीता
158
उड़ जायगा रे हंस अकेला
160
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