निवेदन
वर्तमानमें मानव जीवन भौतिक सुख समृद्धिकी ओर विशेष आकर्षित एवं आँख मूँदकर अग्रसरित होनेके कारण अशान्त, दिग्भ्रमित, लक्ष्यसे स्मृत एवं किंकर्तव्यविमूढ़ है । परिणामत आज मनुष्य आत्मकल्याण अथवा परमात्म प्राप्तिके अपने वास्तविक लक्ष्यसे भटककर भौतिक उन्नतिको ही अपना एकमात्र प्राप्तव्य मान परमात्माकी अमूल्य देन इस मानव देहका वह दुरुपयोग ही नहीं अपितु अपने लिये बड़े भारी दुखो और अनजानेमें ही अन्तहीन यातनाओंका सृजन कर रहा है । एतदर्थ इस विषम, दुखद और सर्वथा चिन्तनीय परिस्थितिमें सच्छास्त्रोंका अनुशीलन और सत महापुरुषोंका मार्ग दर्शन ही हमारे ( हम सबके) लिये एकमात्र विकल्प तथा कल्याणकारी उपाय है ।
प्रस्तुत पुस्तक रहस्यमय प्रवचन तत्त्वज्ञ मनीषी तथा आध्यात्मिक चेतना पुरुष एवं (कल्याण के माध्यमसे अपने आध्यात्मिक विचारपूर्ण लेखोंद्वारा) आप सबके सुपरिचित ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके कतिपय अप्रकाशित प्रेरणाप्रद पुराने प्रवचनोंका संकलन है, जिन्हें लिपिबद्ध करके लेखरूपमें छापा गया है । इसके लिये बहुत समयसे अनेक श्रद्धालु तथा प्रेमीजनोंका विशेष प्रेमाग्रह था । भगवत्प्रेरणानुसार इसे अब सर्वजनहिताय आप सबकी सेवामें प्रस्तुत करते हुए हम सात्विक आनन्द एवं कृतकार्यता अनुभव कर रहे हैं ।
यह लेख संग्रह जीवन्मुक्त मनीषीद्वारा अभिव्यक्त अनेक लौकिक तथा पारलौकिक (आध्यात्मिक) विषयोंपर सरल, सुबोध भाषामें शास्त्रानुमोदित स्वानुभूत उन विचारों और सिद्धान्तोंका दिग्दर्शन है, जिसे उन्होंने समय समयपर जनहितार्थ अपने प्रवचनोंके माध्यमसे उद्घाटित किया था । हमें विश्वास है कि सभी श्रद्धालु, ईश्वरविश्वासी, आस्तिक महानुभावों एवं कल्याणकामी सत्पुरुषोंके लिये इसकी प्रेरणाप्रद बातें उपयोगी मार्ग दर्शक सिद्ध हो सकती हैं । अतएव सभीसे हमारा यह सादर विनम्र अनुरोध है कि वे इसे एक बार अवश्य पढ़ें और दूसरोंको भी पढ़नेके लिये प्रेरित करके सद्भावोंके प्रचार प्रसारमें सहायक बनें । अधिकाधिक लोगोंको विशेष लाभ उठाकर पुस्तककी उपयोगिता अवश्य सिद्ध करनी चाहिये ।
विषय सूची
1
रहस्यमय प्रवचन
5
2
उपासनासहित निष्काम कर्मयोग
20
3
भगवान्के आयुध आभूषण आदि धारण करनेका रहस्य तथा अपनेको उनका प्रिय पात्र बनाना
33
4
भगवान्के प्रेमका विषय
46
निष्कामभावसे सेवा कल्याणका साधन
61
6
गोसेवाकी प्रेरणा
77
7
भगवान्के निराकार स्वरूपका वर्णन
87
8
ईश्वर, महात्मा, परलोक और शास्त्रमें श्रद्धा
101
9
मनुष्यका कर्तव्य, आत्माकी उन्नतिके लिये चेतावनी
112
10
दुःखोंका अभाव, परम आनन्द, परम शान्तिके लिये साधन तेज करनेके लिये चेतावनी!
128
11
कर्मयोगका स्वरूप और उसके द्वारा परमात्माकी प्राप्ति
144
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