पुस्तक के विषय में
उपासना का मतलब होता है: ‘उसके’ पास बैठना। और जितना द्वैत होगा, उतनी आसन से दूरी रहेगी। उतनी उपासना कम होगी। जितना अभेद होगा, उतने ही उसके निकट हम बैठ पाएंगे। उपवास का भी वही अर्थ होता है, उपासना का भी वही अर्थ होता है। उपवास का मतलब होता है: उसके निकट रहना। उसका मतलब भी भूखे मरना नहीं होता है। तो उसके निकट हम कैसे पहुंच जाएं? और अगर उसकी निकटता में थोड़ी भी दूरी रही, तो दूरी रही। तो उसके निकट तो हम वही होकर ही हो सकते हैं। कितनी भी निकटता रही, तो भी दूरी रही। निकटता भी दूरी का ही नाम है—कम दूरी का नाम, ज्यादा दूरी का नाम। तो ठीक निकट तो हम तभी हो सकते हैं, जब हम वही हो जाएं।
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:-
निरंतर चलते विचारों से मुक्ति के उपाय
क्या है क्रोध का मनोविज्ञान?
जीवन कैसे जाना जाए ?
‘टोटल लिविंग’ का क्या मतलब है?
चिंता और विचार का फर्क
समझ के साथ साहस की बड़ी
जरूरत होगी है
प्रवेश से पूर्व
एक बात तो यह कि अगर व्यक्ति को बिलकुल उस पर छोड़ दिया जाए बचपन से, बिलकुल उस पर छोड़ दिया जाए बचपन से, तो भी सत्य की खोज की संभावना इस स्थिति से ज्यादा होगी जिसमें हम उसे कुछ सिखाते हैं, एक बात । इसलिए ज्यादा होगी कि जिज्ञासा बच्चे को सिखानी नहीं पड़ती, जिज्ञासा तो बच्चे में होती है । जिज्ञासा मारनी पड़ती है, सिखानी नहीं पड़ती । छोटा सा बच्चा भी जिज्ञासा तो करता है कि क्या है यह? सब क्या है यह? ये प्रश्न उसमें उठते है । लेकिन इन प्रश्नों को हम दबा देते हैं । सिखाते तो यही कि यह भगवान की बनाई हुई प्रकृति है । बच्चा पूछता है, यह कहां से आया? हम कहते है, यह भगवान ने बनाया।
हम एक झूठी बात कह रहे है, जिसका हमें भी पता नहीं है । और बच्चा इतना छोटा है कि सोचता है कि पिता बहुत ज्ञानी है, इसलिए जरूर ठीक कहते होंगे । पिता भी कहते है, स्कूल का शिक्षक भी कहता है, संन्यासी भी कहता है, पंडित भी कहता है, आस-पास के लोग भी कहते है। बच्चा सोचता है, इतने बड़े-बड़े लोग, इतने ताकत के लोग, समझदार लोग, ये जब कहते हैं तो ठीक ही कहते होंगे। बच्चा पकड़ लेता है आप जो कहते है उसको । परिणाम क्या होता है?
आप उसे ज्ञान तो दे नहीं रहे है, आप केवल एक शब्द दे रहे है, सिद्धांत दे रहे हैं । और एक बड़ी महत्वपूर्ण चीज नष्ट कर रहे हैं जो उसके भीतर थी, इंक्वायरी जो थी, वह नष्ट हो रही है। क्योंकि जैसे ही वह इसको पकड़ लेगा, इंक्वायरी खत्म हो जाएगी । और लड़का अगर इंक्वायरी करता ही चला जाए, तो आप कहते है, छोटे मुंह बडी बात मत करो । अगर वह लड़का यह कहता ही चला जाए कि नहीं, हमें शक होता है । भगवान को किसने बनाया है? तो आप कहेंगे कि देखो, ये अभी तुम्हारी पूछने की बातें नहीं हैं, अभी उस आने दो । और आप खुद भी अपने दिल में जानते है कि अभी हमको भी इसका पता नहीं है । लेकिन आप बच्चे के सामने ज्ञानी बने हुए हैं।
असल में हरेक को ज्ञानी बनने में बड़ा सुख मिलता है—बाप को भी, गुरु को भी । उपदेशक, ज्ञानी बनने में, गुरु बनने में बड़ा सुख है । और छोटे के सामने तो बहुत सुख है । वह छोटा सा बच्चा है, उसकी अभी कोई... आप उसकी जिज्ञासा की हत्या कर रहे हैं।
अगर वह यह जिज्ञासा किए जाएगा तो आप उसको गाली देंगे कि नास्तिक है, गड़बड़ है, यह है, वह है । सब तरह के दबाव डाल कर धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, धीरे-धीरे उसकी जिज्ञासा तो खत्म हो जाएगी और वह आपकी बाते दोहराने लगेगा कि जगत को ईश्वर ने बनाया है, आत्मा अमर है ऐसा है, वैसा है, वे सारी बातें । जैसा आप दोहरा रहे है, तोते की तरह वह भी उन बातों को दोहराने लगेगा । इनको आप कहते है कि हमने उसे सत्य की दिशा में भेज दिया? आपने हत्या कर दी । सत्य की दिशा में तो जिज्ञासा ले जाती उसे । मैं यह नही कहता कि आप इसको बिलकुल इस पर छोड दे, मैं यह कहता हू इसके भीतर जो जिज्ञासा है उसके सहयोगी बने, दुश्मन न बने ।
तो मैंने कहा कि पहली बात तो मैं यह कहता हू कि अगर यही विकल्प हो हमारे सामने कि या तो हम सिखाएगें बच्चे को कि ईश्वर है, आत्मा है, फला-ढिका और या हम बिलकुल छोड देगे, तो भी मैं कहूगा कि बिलकुल छोड़ देना बेहतर है । इससे ज्यादा बच्चे सत्य की खोज में जा सकेगे जितने जा रहे है, एक बात ।
लेकिन मेरा कहना यह नहीं है, मेरा कहना यह है कि बच्चे की जिज्ञासा के साथी बने । उसकी इक्वायरी को और बढ़ाए । और उससे कहे कि तूने बहुत अदभुत प्रश्न पूछा है । मैं भी इसे पूछ रहा हू अभी तक जान नहीं पाया हू । हम मिल कर पूछे । हमारा पूरा परिवार मिल कर पूछे, हम खोजे, हम सोचे । ये-ये उत्तर लोगो ने दिए है, लेकिन मुझे अभी तृप्ति नहीं हुई, क्योकि मैंने नहीं जाना । ये-ये उत्तर है लोगो के दिए हुए कि ईश्वर ने बनाया है । लेकिन इसके विरोध में भी कहने वाले लोग है कि ईश्वर ने नहीं बनाया, ईश्वर है ही नहीं । बच्चे के सामने सारी बाते खोल दे । उसकी इक्वायरी बढ़ने दे, उसकी जिज्ञासा बढ़ने दे । उसको ज्ञान न दे, उसकी जिज्ञासा को बढाए । अगर आप उसकी जिज्ञासा इतनी प्रबल कर सकते है कि वह उस समय तक किसी बात को मानने को राजी नहीं होगा, जब तक कि वह खुद न जान ले, तो आपसे बेहतर पिता उस बच्चे को दूसरा नही मिल सकता । जब तक वह मानने को राजी नही होगा तब तक कि वह खुद जानने की दिशा में खड़ा न हो जाए । जब तक कि खुद कुछ उसे अनुभव न मिलने लगे पब तक वह मानने को राजी नहीं होगा । इसका मतलब यह नहीं कि आप अश्रद्धा सिखा रहे है । इसका मतलब यह नहीं कि आप अश्रद्धा सिखा रहे है । क्योकि अश्रद्धा भी एक तरह की शिक्षा है, जैसे श्रद्धा एक तरह की शिक्षा है । आप यह नहीं सिखा रहे है कि ईश्वर नहीं है । एक शिक्षा यह है कि ईश्वर है, एक शिक्षा यह है कि ईश्वर नहीं है। ये दोनो शिक्षाएं है।यह भी मत सिखाइए की ईश्वर नहीं है, आपको यह भी कहा पता है । आप तो बच्चे को कहिए कि मुझे पता नही है । कुछ लोग कहते है ईश्वर है कुछ लोग कहते हैं ईश्वर नही है। मैं भी खोज रहा हू । मैंने अभी जाना नही है । तुम भी खोजना तुम भी खोजना!
अनुक्रम
1
मन का विसर्जन
2
विसर्जन की कला
31
3
श्रद्धा, अश्रद्धा और विश्वास
65
4
जीवन क्या है ?
99
5
निर्विचार परिपूर्ण शक्ति है
131
6
मन के पार
159
7
उपासना का मतलब पास बैठना
171
8
जीते-जी मरने की कला
179
9
प्रयासरहित प्रयास
197
10
सफलता नहीं, सुफलता
233
11
अलोभ की दृष्टि
265
ओशो एक परिचय
299
ओशो इंटरनेशनल मेंडिटेशन रिजॉर्ट
300
ओशो का हिंदी साहित्य
302
अधिक जानकारी के लिए
307
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