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आधुनिक विज्ञापन और जनसंपर्क: Modern Advertising and Public Relations

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Item Code: HBD455
Author: Rasa Malhotra
Publisher: Sanjay Prakashan
Language: Hindi
Edition: 2025
ISBN: 9789392509919
Pages: 251
Cover: HARDCOVER
Other Details 9x6 inch
Weight 454 gm
Fully insured
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100% Made in India
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23 years in business
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Book Description
पुस्तक परिचय

वर्तमान विज्ञापन की संचार व्यवस्था से बहुत पहले ही बस्तुओं पर ट्रेड मार्क का वर्णन मिलता है। यद्यपि उस समय हाथ से तैयार वस्तुएँ ही उपलब्ध होती हैं, किन्तु कलाकार अपने उत्पाद पर कोई चित्र बना देते थे, ताकि उसके उत्पाद को पहचानने में उपभोक्ताओं को मदद मिल सके। दूसरे प्रकार के विज्ञापन का आरम्भिक रूप पाम्पई में पाए गए अनेक अवशेषों से मिलता है जिससे पता चलता है कि दुकानों के प्रवेश के आस-पास कुछ चिन्ह अंकित कर दिये जाते थे, जिससे पता चल जाता था कि दुकान में कौन-कौन सी वस्तुएँ उपलब्ध हैं। बाद में सभ्यता के विकास के साथ इन्हीं चिन्हों को लकड़ी, धातु या पत्थर के पटों पर लिखकर दुकान पर लगाया जाने लगा, जो आज तक सूचना पट्ट, होर्डिंग या नियोन साइन के रूप में विकसित है। तीसरे प्रकार का विज्ञापन का आदि रूप ईसा पूर्व विश्व की अनेक सभ्यताओं में मन्दिरों, स्मारकों, अदिलों और पिरामिडों पर अंकित चित्रकला के रूप में मिलता है जो इन चित्रों और कलाकृतियों के माध्यम से ही अभिव्यक्ति का काम लेते थे। शिलालेख भी इसी श्रृंखला की कड़िया हैं। चारों तरह के विज्ञापन का प्रारम्भिक रूप मौलिक सन्देश सम्प्रेषण रूप में मिलता है। लिपि का विकास होने से पूर्व राजकीय घोषणाएँ उद्घोषकों तथा ढोल-नगाड़े बजा कर प्रेषित करने की परम्परा थी। आज भी भारत के ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में विज्ञापन के इस रूप को देखा जा सकता है।

विज्ञापन जगत में जनसम्पर्क का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जनसम्पर्क के द्वारा ही जनता की रुचियों और इच्छाओं का पता लगाकर जनमत के अनूकल ही उत्पाद का निर्माण किया जाता है। उदाहरणार्थ टाटा कम्पनी ने भारत की बहुसंख्यक जनता की इच्छाओं का पता लगाकर ही एक लाख रुपये की कार बाजार में उतारने की घोषणा कर परिवहन में नई क्रांति की शुरुआत कर दी। विज्ञापन की सफलता में तो लोगों का बहुत बड़ा हाथ होता है। जब तक विज्ञापन लोगों में विख्यात न हो तब तक वह प्रभावशाली नहीं हो पाता। अतः जनसंपर्क वर्तमान समय की प्रमुख आवश्यकता के लिए अत्यंत जरूरी है।

'आधुनिक विज्ञापन और जनसंपर्क' नामक इस पुस्तक में विज्ञापनः अर्थ प्रकृति, आधुनिक विज्ञापन के विविध आयाम, विज्ञापन विकास की प्रक्रिया, विज्ञ, का वर्गीकरण, विज्ञापन की भाषा, विज्ञापन कॉपी, विज्ञापन एजेंसी, जनसंपर्क के विविध आयाम, शासन में जनसंपर्क आदि शीर्षकों के द्वारा पुस्तक का अत्यंत सरल शब्दों में वर्णन किया गया है।

लेखक परिचय

रसा मल्होत्रा का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ। इलाहाबाद शहर के एक सरकारी विद्यालय से इन्होंने आरंभिक शिक्षा प्राप्त की। उच्च शिक्षा इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की। महानगर की चकाचौंध के बीच भी लेखिका ने लेखन को ही आत्मसात किया, जो लेखन के प्रति इनके लगाव को परिलक्षित करता है। देश सेवा के लिए लेखन के अतिरिक्त सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रीय रूप से भाग लेती रही हैं। इसके अलावा लेखिका कई सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ी हैं। इन्होंने कई पत्र व पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विषयों पर लेख भी लिखें हैं।

प्रस्तावना

आधुनिक युग विज्ञापन का युग है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अर्थ के पीछे भाग रही दुनिया में विज्ञापन एक साधन ही नहीं जो ग्राहकों/उपभोक्ताओं या उत्पादकों की सेवा करता है बल्कि शीर्षस्तरीय व्यवसाय के रूप में विज्ञापन विकसित, विकासशील सभी देशों पर आच्छादित हो गया है। आधुनिक युग में उपभोक्ता, उपभोग्य उत्पादनों के विषय में लगभग सम्पूर्ण जानकारी विज्ञापन के माध्यम से ही जान पाता है। विज्ञापन में अपना एक सहज आकर्षण होता है। कभी-कभी पाया जाता है कि उत्पाद की तुलना में विज्ञापन कहीं ज्यादा चित्ताकर्षक होता है। यह चमत्कार मूल तौर पर विज्ञापन आलेख से ही उत्पन्न होता है। अंततः चाहे किसी विज्ञापन के गुणों की बात हो या कम्पनी के यश स्तर की या फिर उसकी सादगी की। एक उत्तम विज्ञापन में आलेख के अलावा यह भी आवश्यक होता है कि उसका प्रदर्शन अत्यन्त आकर्षक हो, नेत्रप्रिय के साथ-साथ आन्तरिक रूप से ग्राह्य और मानस पटल पर अंकित होने वाला हो।

आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। किसी सामग्री की तीव्र जरूरत महसूस होने के बाद मानव इसकी प्राप्ति हेतु प्रयत्न करता है। निरंतर किये जाने वाले प्रयासों के बाद मानव को संबंधित वस्तु के प्रचार-प्रसार के लिए एक माध्यम की आवश्यकता महसूस हुई और अनेक प्रयासों के बाद वह माध्यम विज्ञापन के रूप में सामने आया। प्राचीन काल में वस्तुओं के प्रचार-प्रसार के लिए कोई न कोई माध्यम अवश्य रहा होगा जिसका रूप संकुचित और आज की तरह विकसित नहीं था।

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