आरंभ में इसका नाम 'आज का सच' था। असल में उन दिनों अयोध्या की बाबरी मस्जिद को हिन्दू कारसेवकों ने जो ध्वस्त किया उसकी गूंज देश-विदेश में थी। उस ज्वलंत राष्ट्रव्यापी समस्या को नाटक के केन्द्र में रखा। तब पंडित-मुल्ला धर्म को लेकर परस्पर जितना भी संघर्ष करते किन्तु जैसे ही उनकी और उनके धर्म की कट्टरता की आलोचना की जाती एक हो जाते और सुर में सुर मिलाते हुए देखे जाते । राष्ट्रीय पैमाने पर भी धर्माचार्यों का बयान लगभग एक ही होते हैं धर्म के संबंध में। उल्टे आलोचक एवं सत्याग्रही बुद्धिजीवी ही बलि के बकरे बनते रहे हैं। इस विषय के कच्चे माल को जब नाटक का रूप दिया-पुटकी (धनबाद) के रंगकर्मियों ने मंचन हेतु चुना। अब तक इसका दर्जनों मंचन अखिल भारतीय नाट्य प्रतियोगिताओं में पुरस्कार अर्जित किए जा चुके है। मंचन के दौरान आयीं कमजोरियों को यथासंभव दूर करने का निरंतर प्रयास किया गया है जिससे कि इसका मंचन आसान और कम से कम खर्चे में एवं दर्शकों पर असरदार हो।
डंकल चाचा यह विश्वबाजारीकरण एवं वैश्वीकरण के नतीजों पर आधारित एक सामाजिक नाटक है। उसका प्रभाव महानगरों से होता हुआ गाँव तक कैसे पहुँचता है और अपने प्रभाव से गिरफ्त में लेता है, दर्शाया गया है। इस नाटक को सर्वप्रथम बोकारो इस्पात नगर में ही 'छन्दरूपा' द्वारा आयोजित अन्तर्भाषीय नाट्य प्रतियोगिताओं में हिन्दी और भोजपुरी दोनों भाषाओं में स्थानीय कलाकारों द्वारा मंचित किया जा चुका है। मंचन पूर्व लेखक से अनुमति लेने की औपचारिकता का निर्वाह अवश्य करें। धन्यवाद !
Hindu (हिंदू धर्म) (12719)
Tantra (तन्त्र) (1023)
Vedas (वेद) (706)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1907)
Chaukhamba | चौखंबा (3360)
Jyotish (ज्योतिष) (1466)
Yoga (योग) (1096)
Ramayana (रामायण) (1385)
Gita Press (गीता प्रेस) (732)
Sahitya (साहित्य) (23189)
History (इतिहास) (8272)
Philosophy (दर्शन) (3393)
Santvani (सन्त वाणी) (2587)
Vedanta (वेदांत) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist