पुस्तक के विषय में
चीनी बौद्ध यात्री हूवान सांग जब सन् 629 से लेकर 645 तक भारत में था, उस समय सम्राट हर्षवर्द्धन का साम्राज्य चरमोत्कर्ष पर था । सर्वत्र सुख-शांति थी, लेकिन उसके बाद पश्चिमी भारत में अरबों के तथा उत्तर-पश्चिम में शक व हूणों के आक्रमणों ने भारत के राजनीतिक व सामाजिक इतिहास को ही बदल डाला । इवान सांग के कुल अस्सी साल बाद कोरियाई बौद्ध भिक्षु हे चो जब सन् 724 में भारत आता है तो वह हूवान सांग की बतायी तस्वीर सै भारत की तस्वीर को बिलकुल भिन्न पाता है । उल्लेखनीय यह है कि विदेशी आक्रमणों से ग्रस्त, धुंधलाएं अस्पष्ट दौर-आठवीं शताब्दि के इतिहास का हमारे यहा नितांत अभाव है । हमें अपने बारे में इस दौर की जो भी जानकारी मिलती है, वह मुस्लिम इतिहास या आक्रांताओं कै उल्लेखों से मिलती है, ऐसे में हे चो का यह भारत के पांचों क्षेत्रों की तीर्थ यात्रा का विवरण उसके आंखों देखे भारत का एक समसामयिक साक्ष्य तो है ही, एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज भी है, साथ ही मध्य एशिया का भी, जो अब तक प्रकाश में नहीं आ सका है । नौवीं सदी में गुम हुए चीन के एक गुफा मठ में बंद है चो का यह यात्रा-विवरण एक हजार साल बाद सन् 1908 में ही बाहर आ सका । जर्मन और अंग्रेजी के अनुवाद के बाद हिंदी में पहली बार प्रस्तुत हे यह यात्रा विवरण ।
जगदीश चंद्रिकेश बौद्ध साहित्य, विशेषकर बौद्ध कला के अध्येता । 'वैदिक साहित्य में कलाओं का प्रारूप एवं उसकी दार्शनिक पृष्टभूमि' शोध-प्रबध तथा 'बंगाल शैली की चित्रकला' के अतिरिक्त सभी बौद्ध स्मारकों के यात्रा-वृतांत के साथ उनके पुरातात्विक पक्ष पर प्रचुर परिमाण में लेखन। हिंदुस्तान टाइम्स की पत्रिका 'कादम्बिनी' के संपादकीय विभाग से सेवा निवृत ।
संप्रति : स्वतंत्र लेखन ।
अनुक्रम
1
हिंदी अनुवादक की अपनी बात
सात
2
भूमिका
नौ
भाग-1
बौद्ध तीर्थयात्री
3
फाहियान
4
सुंग य्विन और ह्वेइ शंग
6
5
ह्वान सांग
8
इत्सिंग
12
7
हे चो
15
तीर्थयात्रियों के विवरणों का महत्व
26
9
यात्रा विवरणों के पुन: अनुवाद की आवश्यकता
32
10
संदर्भ-ग्रंथ
36
भाग-2
संस्मरण का अनुवाद : भारत के पांचों क्षेत्रों की तीर्थ-यात्रा
11
हे चो का यात्रा संस्मरण
39
भारत के पांचों क्षेत्रों की यात्रा
72
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