'मौर्ययुगीन गुप्तचर व्यवस्था' पर पुस्तक लिखने की प्रेरणा इस अनुभूति पर आधारित है कि आज की अति भौतिकवादी, अलगाववादी, संहारक, निराशाजनक और राजनैतिक उथल-पुथल की प्रवृत्तियों का विकल्प क्रियाशील होने में ही है। यद्यपि यह सत्य है कि मौर्ययुगीन गुप्तचर व्यवस्था की अवधारणा आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पूर्णरूपेण व्यवहारिक नहीं है, किन्तु ऐसा विश्वास है कि इस व्यवस्था का अनुसरण कर राष्ट्र में स्थिरता कायम की जा सकती है, जो देश की प्रगति और विकास के लिए अति आवश्यक भी है।
इसमें सन्देह नहीं कि प्राचीन काल की तरह आज भी राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्थाएँ परिवर्तित रूप में पूँजीवादी साम्राज्यवादी दृष्टिकोण पर आधारित है, जिसके परिणामस्वरूप, आतंक, षड्यन्त्र और राजनैतिक अस्थिरता का वातावरण व्यापक रूप से देखा जा सकता है। राष्ट्र की सुरक्षा और स्थायित्व के लिए आवश्यक है कि गुप्तचर व्यवस्था को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जाए; क्योंकि इसकी कमजोरी विगत् वर्षों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जिसमें अशान्ति, अस्थिरता, अलगाववाद, राजनेताओं की हत्या (भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी की हत्या) यह सब गुप्तचरी की कमी का ही परिणाम रहा है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि 'मौर्ययुगीन गुप्तचर व्यवस्था' का विस्तारपूर्वक विवरण प्रस्तुत किया जाए, जिसका विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थिरता कायम रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, यदि मौर्य साम्राज्य में शिथिलता आयी तो उसका मुख्य कारण हम गुप्तचर व्यवस्था में आयी शिथिलता को ही मान सकते हैं। गुप्तचरों की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण ही सभी प्राचीन ग्रन्थों में उन्हें राजा का चक् इसमें सन्देह नहीं कि प्राचीन काल की तरह आज भी राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्थाएँ परिवर्तित रूप में पूँजीवादी साम्राज्यवादी दृष्टिकोण पर आधारित है, जिसके परिणामस्वरूप, आतंक, षड्यन्त्र और राजनैतिक अस्थिरता का वातावरण व्यापक रूप से देखा जा सकता है। राष्ट्र की सुरक्षा और स्थायित्व के लिए आवश्यक है कि गुप्तचर व्यवस्था को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जाए; क्योंकि इसकी कमजोरी विगत् वर्षों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जिसमें अशान्ति, अस्थिरता, अलगाववाद, राजनेताओं की हत्या (भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी की हत्या) यह सब गुप्तचरी की कमी का ही परिणाम रहा है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि 'मौर्ययुगीन गुप्तचर व्यवस्था' का विस्तारपूर्वक विवरण प्रस्तुत किया जाए, जिसका विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थिरता कायम रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, यदि मौर्य साम्राज्य में शिथिलता आयी तो उसका मुख्य कारण हम गुप्तचर व्यवस्था में आयी शिथिलता को ही मान सकते हैं। गुप्तचरों की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण ही सभी प्राचीन ग्रन्थों में उन्हें राजा का चक्षु स्वीकार किया गया है और कहा गया है कि राज्य की प्रतिष्ठा इन पर ही निर्भर है।
अभी तक विद्वानों द्वारा मुख्य रूप से चन्द्रगुप्त अशोक आदि राजाओं की विजयों, साम्राज्य-विस्तार आदि का विवरण ही प्रस्तुत किया गया है। भयानक युद्धों तथा राजाओं का इतिहास लिखना ही इतिहास का मुख्य विषय नहीं है, बल्कि राज्य और राजा का स्थायित्व प्रदान करने वाले विषयों पर इतिहास लिखना भी इतिहास का मुख्य अंग रहा है।
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