लेखक परिचय
मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में ज्योतिषाचार्य वागाराम परिहार की आरम्भिक शिक्षा अपने ही गांव में सम्पन्न हुई और उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु शहर जाना पड़ा। यद्यपि शिक्षण प्रशिक्षण में इन्होंने डिप्लोमा कोर्स भी किया लेकिन होनी को कुछ और ही मंजुर था क्योंकि वागाराम परिहार ने 15 वर्ष की उस से ही हस्तरेखा, तंत्र, मंत्र एवं अंक ज्योतिष के क्षेत्र में कार्य शुरू कर दिया था। पिछले दस वर्षो से ज्योतिष के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत है । इनके 300 से अधिक मौलिक एवं शोधपूर्ण आलेख राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं एवं निरन्तर प्रकाशित हो रहे हैं। इनके द्वारा लिखित कई पुस्तके भी प्रकाशित हो चुकी हैं । श्री परिहार ज्योतिष के क्षेत्र में सशक्त हस्ताक्षर है।
पुस्तक परिचय
विवाह समस्या एवं समाधान पुस्तक लेखक के दस वर्षो के गहन अनुसंधान एवं प्रायोगिक अनुभव पर आधारित है। इसमें विवाह से पूर्व विवाह काल में एवं दाम्पत्य जीवन में होने वाला शुभाशुभों की गहन जानकारी दी है। गुण मिलान एवं कुण्डली मिलान की आवश्यकता, मिलान न होने पर होने वाली समस्याए विवाह में विलम्ब, अविवाह, विधवा योग, तलाक के कारण एव इनका निवारण, प्रेम विवाह, आपके प्रेमी के बारे में जानकार दहेज, संतान सुख आदि के बारें में जानकारी दी गई है। इसक अलावा कितने विवाह होगे, विवाह कब एवं किस दिशा में होगा आपके जीवन साथी का चरित्र कैसा रहेगा तथा सन्यास योग एत इन सभी दोषों के निवारणर्थ व्रत, उपाय एवं मंत्र प्रयोग भी दिये गये है।
प्राक्कथन
वर्तमान में भविष्य कथन एवं समस्याओं के समाधान के लिए अनेक प्रकार की पद्धतियां प्रचलित है। लेकिन इन सभी पद्धतियों में सर्वश्रेष्ठ माध्यम ज्योतिष शास्त्र को माना जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र द्वारा मानव जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को पूर्णरूपेण परिभाषित किया जा सकता है । इन घटनाओं में से अशुभ धटनाओ को दूर करने का प्रयास भी किया जाता है, जिससे अशुभ घटना टाली जा सके या उसके प्रकोप को हल्का किया जा सके। मानवमात्र इस शास्त्र का सदुपयोग कर अपना व अपने समाज के विकास में महत्वपूर्ण सहयोग दे सकता है। प्रस्तुत पुस्तक में दाम्पत्य पूर्व एवं दाम्पत्य पश्चात की प्रमुख समस्याओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने एवं उनका उपाय करने की आवश्यकताओं को समझाने एवं उनसे लाभ उठाने का प्रयास किया गया है।
वर्तमान समय में पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभावों का असर दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है। कुछ ऐसे जातक होते है जिन पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव तुरन्त ही होता है, तो कुछ जातक दुष्प्रभावों से प्रभावित नहीं होते है । आखिर किन ग्रह योगों के कारण ऐसा संभव होता है। प्रेम को पवित्र बंधन कहना भी आजकल छलावा मात्र ही लग रहा है। कुछ जातक इस पवित्रता को पूर्णरूपेण पवित्र रखनाचाहते है तो कुछ जातक इसे सिर्फ अपने स्वार्थो की पूर्ति का साधन मानते है। ऐसा विपरीत प्रभाव क्यों होता है, इस बारे में पाठकों को प्रथम बार मनोरंजनात्मक एव अनुसंधानात्मक सामग्री परोसी जा रही है। जो आम पाठकों एवं ज्योतिष क्षैत्र में अनुसंधान करने वालों के लिए सुगम राह प्रस्तुत करेगी ।
प्राचीनकाल में विवाह को सात जन्मों का बंधन भी माना जाता था। लेकिन वर्तमान में पवित्र संस्कार पर ऐसी नजर किसकी लगी कि यह सिर्फ सात दिनों का बधन भी कई बार हो जाता है। पति-पत्नी में परस्पर प्रेम अभाव, संतान सुख का प्राप्त होना या न होना, दाम्पत्य जीवन में हमेशा कलह होकर अतत: तलाक होना, आए दिन दम्पत्ति का झगड़ना, पति द्वारा पत्नी की हत्या या पत्नी द्वारा पति की हत्या करना, वैधव्य जीवन कार कारण, विवाह एक, द्वि अथवा अधिक होंगे। समलैंगिक सम्बन्धों मांगलिक दोष, नाडी दोष, विषकन्या आदि के बारे में भी विस्तार पूर्वक वर्णन पहली बार आपके इस पुस्तक के माध्यम से प्राप्त होगा । आपका विवाह कब होगा एवं किन परिस्थितियों में होगा । अविवाह की संभावना, अविवाह की स्थिति कब निर्मित होती है आदि को थी उदाहरण कुण्डलियों में माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है। इन सबसे महत्वपूर्ण गुण मिलान एव कुण्डली मिलान कैसे किया जाये, दोनों में से किसे प्राथमिकता दी जाये । गुण मिलान में नाडी दोष का महत्व क्यों है । आदि के बारे में पूर्णतया वैज्ञानिक तरीके से समझाने का प्रयास किया गया है । तत्पश्चात दोषों को दूर करने हेतु साधारण एवं सर्व सुलभ उपाय, टोटकों का भी पुस्तक में समायोजन रूचिकर लगेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
प्रस्तुत पुस्तक को लिखने में ईश्वर की कृपा मानता हूँ। इसके पश्चात पूज्य माता श्री, भाई श्री रघुनाथ परिहार, सकाराम परिहार एव भतीजी इंदिरा परिहार का पूर्ण सहयोग होना ही लेखन में रूचि पैदा करता रहा । मेरे घनिष्ठ मित्र श्री कालू राम परमार एडवोकेट जिनका प्रारभ से ही अविस्मरणीय सहयोग रहा, उनका भी तहेदिल से आभारी हूँ। ज्योतिष प्रेमियों एवं विद्वजनों में पं. दयानन्द शास्त्री, डॉ० भवानी खंडेलवाल, मोहन कुमार कश्यप, राकेश सोनी, सुधांशु निर्भय, रमेश गोमतीवाल का मार्गदर्शन भी समय-समय प्राप्त होता रहा, जिनको मैं भूला नहीं सकता। मेरे द्वारा पुस्तक को पूर्णरूप से त्रुटिहीन एवं ज्ञानवर्द्धक बनाने का प्रयास किया गया है। परन्तु मानव मात्र से भूल संभव है । इसलिए प्रबुद्ध पाठकों, विद्वानों, ज्योतिष प्रेमियों से मेरा अनुरोध है कि इस ओर मेरा अवश्य ही ध्यान आकृष्ट कराए। आपके अमुल्य सुझावों का हमेशा स्वागत है। ताकि आगामी संस्करण को रोचक, त्रुटिहीन एवं सारगर्भित बनाए जा सके। अंत में सभी विद्वजनों को प्रणाम करते हुए मैं अपने लेखकीय को विराम देता-हूँ,।
अनुक्रमणिका
1
5
2
6
3
प्रास्कथन
7
4
दाम्पत्य प्रवेश का आधार (गुण मिलान/कुंडली मिलान)
10
प्रवज्या योग-सन्यास योग
30
विवाह समय एवं मेलापक ध्यातव्य बातें
36
विवाह संस्कार का आधार सप्तपदी
40
8
विवाह काल एवं दिशा
43
9
विवाह वार्ता के समय वस्त्र चयन'
49
आपका जीवन साथी कैसा होगा
51
11
दाम्पत्य जीवन एवं संतान सुख
59
12
दहेज एक अभिशाप
66
13
विवाह कितने होगें
69
14
शीघ्र विवाह योग
72
15
विवाह में विलम्ब योग
75
16
अविवाह योग
82
17
तलाक योग
88
18
पत्नी मरण योग
93
19
विष कन्या योग
98
20
वैधव्य योग
101
21
वैधव्य दोष नाशक वट सावित्री व्रत
104
22
चरित्र योगों का वर्णन
108
23
तीव्र एवं मंद कामेच्छा,
112
24
समलैंगिकता एवं ज्योतिष
115
25
प्रेम विवाह
117
26
आपका प्रेमी: स्वभाव और चरित्र
120
27
अनेक प्रेम सम्बन्धों के योग
124
28
शुक्राष्टक वर्ग और प्रेम
126
29
क्या आपका प्रेमी सच्चरित्र है
130
धोखेबाज प्रेमी
133
31
ताजिक पद्धति एवं दाम्पत्य जीवन?
136
32
ताजिक के सप्तम भाव में प्रमुख योग
139
33
ताजिक में प्रश्न विचार एवं स्त्री सुख
142
34
मांगलिक योग एवं दाम्पत्य
145
35
दाम्पत्य सुख-दुख में ग्रहों की भूमिका
158
शीघ्र विवाह हेतु कुछ टोटके
164
37
विवाह बाधा दूर करने के उपाय
167
38
दाम्पत्य सुख और टोटके
170
39
विवाह में बाधक ग्रह एव योगं
173
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