मंगली योग भ्रान्ति व निदान: Mangali Yoga - Doubts and Resolutions

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Item Code: NZA925
Publisher: Alpha Publications
Author: कुसुम वशिष्ठ (Kusum Vashist)
Language: Sanskrit Text with Hindi Translation
Edition: 2011
ISBN: 9780179480841
Pages: 201
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 230 gm
Fully insured
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Book Description

लेखिका का परिचय

श्रीमति कुसुम वशिष्ठ ने (कामर्स) वाणिज्य में स्नातक की परीक्षा पास की तत्पश्चात ज्योतिष की दो वर्ष की पढाई करके ज्योतिष प्रवीण तथा ज्योतिष विशारद परीक्षाएं सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की । इनकी प्रतिभा को पहचान कर इन्हें ज्योतिष शिक्षा क्षेत्र में सम्मिलित कियागया । यह 1990 से ज्योतिष संकाय की सदस्य हैं । यह एक अनुभवी शिक्षक हैं । आप वैसे तो ज्योतिष के सभी विषयों पर सामान्य रूप से अधिकार बनाए हुए हैं । परन्तु विशेष रूप से फलित, विवाह संबंधी विषय, जैमिनी, मुहूर्त की शिक्षा पिछले कई वर्षों से दे रही हैं । आपने पिछले वर्षों से सफल भविष्य वाणियां देकर समाज के व्यक्तियों की बहुत सेवा की है । इनके लेख कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं । आपको भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद, मद्रास द्वारा ज्योतिष कोविद, ज्योतिष, वाचस्पति की उपाधि एव भारत निर्माण ने ज्योतिष प्राचार्य की उपाधि से सम्मानित किया है । अन्य संस्थाओं द्वारा भी सम्मानित किया गया है । आपने मुहूर्त्त पर 'मुहूर्त्त प्रकरण' नामक पुस्तक लिखी है । जिसकी सराहना पाठकों ने अनेक प्रकार से की है । यदि किसी पुस्तक से पाठक को लाभ हो तो लेखक का प्रयास सार्थक हो जाता है । इसी प्रकार मंगली योग के समस्त पहलुओं पर लेखक ने यह पुस्तक लिखी है । कुसुम जी ने यह कार्य जन हिताय के लिए किया है । पाठक पढकर लाभ उठाएंगे यही इनका ध्येय है । इनका यह प्रयास प्रशंसनीय है ।

प्रस्तुतिकरण

''मंगली योग'' से सम्बधित समस्त पहलुओं का विश्लेषण मैंने इस पुस्तक में किया है यह विषय अत्यधिक प्रचलित होने पर आज भी पूर्णत स्पष्ट नहीं है । विशेष आग्रह किए जाने पर सर्वप्रथम मैंने इरा विषय के महत्वपूर्ण तथ्यो को इस पुस्तक में लिखा है नगली योग का मिलान कुण्डली मिलान में किरन प्रकार किया जाए तथा कितना आवश्यक है, कितना प्रभावी है साथ ही मंगली से संबधित समस्त विषय इस पुस्तक में संकलित है । लिखते समय मेंरा यही उद्देश्य होता है कि गंभीर विषय को भी सहजता और सरलता के साथ प्रस्तुत किया जाए जिससे पाठक आसानी से विषय को समझे क्लिष्ट भाषा का उपयोग तथा विषय को घुमा फिरा कर लिखना मैं उचित नहीं समझती भाषा की सरलता ही विशेषता है । इस पुस्तक के द्वितीय संस्करण में मगल के अन्य स्थान में स्थित होने पर तथा विभिन्न राशियों में स्थित होने के फल का भी समावेश किया है जिससे यह स्पष्ट होता है कि मगल अन्य स्थान में स्थित होकर भी हानिकारक हो सकता है।

''ज्ञान बाटने से बढता है'' इसी पक्ति को ध्यान में रखते हुए मुझे ईश्वर ने जो भी शान दिया है उसे किसी भी रूप में प्रदान करती हूं जिससे अन्यों का भला हो तथा पाठकगण विषय को समझकर उस विषय में अग्रणी हो जिससे ज्ञान शीघ्रता से बढे न कि किसी एक जगह रिथर रहे किसी भी विषय में पारंगता पाना कठिन है मुझे ईश्वर कृपा और पठन, पाठन तथा अनुभव द्वारा जो भी प्राप्त हुआ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है । मुझमें कुछ भी नही सब ईश्वर तथा गुरु का दिया हुआ है। उसे जो भी किसी को देना होता है वो किसी न किसी रूप में दे देता है। फिर हम किसी को देने वाले या करने वाले कौन हैं । सब उसकी लीला है । वैरने कमी कहीं भी पाई जा सकती है। यदि इस पुस्तक से आप लाभान्वित हुए तो निश्चय ही मेंरा और आपका प्रयास सफल हुआ।

आपके महत्वपूर्ण सुझावों का सदैव स्वागत किया जाएगा । अपनी त्रुटियों तथा कमियो के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ।

 

विषय-सूची

कृतज्ञता

(iii)-(v)

प्रस्तुतिकरण

(vi)-(vii)

1

मंगली योग तथा भ्रातियां

1

2

मगल का रूप तथा गुण

5

3

मगल के शुभ-अशुभ फल

10

4

मंगली योग भावानुसार

12

5

मंगल के लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भावों में स्थित होने के फल

15

6

मंगली योग का वैवाहिक जीवन पर प्रभाव

25

7

मंगल के विभिन्न राशियों में फल

35

8

भाव तथा राशि स्थित मगल के फल

38

9

मंगली योग शास्त्रीय विवेचना

41

10

वैवाहिक जीवन की हानि

48

11

मंगली योग भंग की स्थिति

49

12

अनुभव के आधार पर मगल का हानिकारक होना

52

13

मंगली योग का प्रभाव

54

14

कुण्डली मिलान में मंगली योग का मिलान

84

15

मंगली दोष के कुप्रभाव को दूर करने के उपाय

98

16

मंगल के तृतीय, पंचम, षष्ठ, नवम, दशम, एकादश भाव में स्थित होने के फल

102

17

मगल के तृतीय, पंचम, षष्ठ, नवम, दशम एवं एकादश

भाव में स्थित होने पर दृष्टि फल

118

18

बारह लग्नों (मेंष रवे मीन तक) के विभिन्न भावों में

स्थित मगल के फल

124

19

पंचम. षष्ठ, नवम भाव में स्थित मंगल के उदाहरण

159

20

मंगली दोष निवारण हेतु एकान्त विवाह की पूजा विधि

168

21

मंगला गौरी पूजन विधि तथा व्रत

192

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