पुस्तक के बारे में
प्रस्तुत पुस्तक में लेखिका नै मलयालम भाषा, साहित्य और संस्कारों की व्यापक पड़ताल की है। पुस्तक में डस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि भाषागत सीमाओं के बावजूद साहित्य के केंद्र में मनुष्य और उसका संस्कार होता है । भाषा-वेद के अनुसार संस्कार में थोड़ा-सा फर्क अवश्य होगा, फिर भी मनुष्य जहाँ भी हौ, उसकी संवेदनाएँ एक ही होगी । पुस्तक मैं दो संस्कृतियों की तुलनात्मक दृष्टि से पड़ताल की गई है ।
डी. के वनजा ने स्नातकोत्तर (हिंदी), पीएचडी और डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त की ।
मौलिक लेखन : माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाओं में मानव मुल्य तुलना और तुलना साहित्य का पारिस्थितिक दर्शन और समीक्षा का साक्ष्य इको-फेमिनिज़्म चित्रा मुद्गल : एक मूल्याकंन आदि। साथ ही भारत की विविध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित ।
सम्मान/पुरस्कार : जोहन्नस बर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में संपन्न नवे विश्वहिंदी सम्मेलन में हिंदी भाषा एवं साहित्य के योगदानों के लिए भारत सरकार द्वारा सम्मानित ।
दो शब्द
मेरी माँ मेरे लिए जितनी प्रिय है, उतनी ही मेरी मातृभाषा मलयालम मेरे लिए प्रिय है । माँ ने इसी भाषा में मुझे संस्कार दिया, इसी में मैं पली-बढ़ी । आज मेरी शक्ति और संबल मेरा यह संस्कार ही है । हिंदी साहित्य में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद हिंदी साहित्य को और गहराई से समझने, उसमें शोध कार्य करने तथा छोटी ही कोशिश क्यों न हो, फिर भी साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में प्रवेश करने की हिम्मत और आत्मविश्वास इस संस्कार की देन है । इस सिलसिले में मैंने यह भी महसूस किया कि भाषागत सीमाओं के बावजूद साहित्य के केंद्र में मनुष्य और उसका संस्कार है । भाषा-भेद के अनुसार संस्कार में थोड़ा-सा फर्क अवश्य होगा, फिर भी मनुष्य जहाँ भी हो, उसकी संवेदनाएँ एक ही होंगी ।
मलयालम भाषी होने के नाते हिंदी साहित्य के अध्ययन से मैं खूब लाभान्वित हुई । हिंदी प्रदेश के एक विश्वविद्यालयी अध्यापक की सांस्कृतिक छवि हिंदी प्रदेश तक सीमित होगी । लेकिन मुझ जैसे अध्यापक के लिए दो संस्कृतियों के लगातार संपर्क हेतु साहित्यिक अध्ययन, अध्यापन एवं लेखन में तरह-तरह के सांस्कृतिक पहलुओं को प्रयुक्त करने तथा तुलनात्मक दृष्टि से देखने का अवसर मयस्सर है । हिंदी आलोचना के क्षेत्र में अब तक मेरी सात आलोचनात्मक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । इसी बीच कई राष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रपत्र प्रस्तुति हेतु तथा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ मलयालम साहित्य पर केंद्रित कुछ आलेख तैयार करने पड़े थे । उन आलेखों को पुस्तकाकार कर देने पर वह गैर-मलयाली पाठकों को मलयालम साहित्य के आस्वादन के लिए सहायक बन जाएगा । इस उद्देश्य से मैं यह पुस्तक तैयार कर रही हूँ । इसमें 'भारतीय मंदिरों का स्रोत एवं उनका विकास' शीर्षक लेख एक छोटा-सा शोध कार्य है । इसके अलावा मलयालम भाषा, मलयालम साहित्य एवं मलयालम संस्कार पर केंद्रित लेख भी इसमें संग्रहित हैं । मलयालम भाषा को श्रेष्ठ भाषा की हैसियत प्राप्त प्रस्तुत पुस्तक को प्रकाशित करने में मैं विशेष गौरव का अनुभव कर रही हूँ । इस पुस्तक को प्रकाशित करने में 'राष्ट्रीय पुस्तक न्यास' के अध्यक्ष एवं मलयालम के श्रेष्ठ रचनाकार सेतु माधवन जी का जो सहयोग रहा है उसके लिए मैं हृदय से आभार प्रकट करती हूँ । सेतु जी और एन. बी. टी. के प्रति मेरा नमन ।
अनुक्रम
(ix)
1
मलयालम भाषा
2
मलयालम साहित्य का इतिहास
16
केरल के मध्ययुगीन संत काव्य में राष्ट्रीय एकता एवं
3
मानवतावादी पक्ष
26
4
मध्यकालीन मलयालम साहित्य में नाथ संप्रदाय का प्रभाव
30
5
वर्गहीन समाज की परिकल्पना में मलयालम भक्ति साहित्य
44
6
मलयालम के रामकाव्य
52
7
राष्ट्रीय नवजागरण तथा मलयालम साहित्य
59
8
स्वातंत्र्योत्तर मलयालम कविता में सामाजिक चेतना
64
9
स्वातंत्र्योत्तर मलयालम स्त्री-कविता
72
10
मलयालम की कहानियों में नारी लेखन
80
11
मलयालम कहानी में पर्यावरण
92
12
मलयालम उपन्यास में पर्यावरण चिंतन
97
13
मलयालम आंचलिक उपन्यास
108
14
मलयालम व्यंग्य साहित्य
114
15
मलयालम रंगमंच का विकास
120
मलयालम पत्रकारिता
126
17
मलयालम साहित्य में दर्शन
135
18
भारतीय मंदिरों का स्रोत एवं उनका विकास क्रम
140
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