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भारत का प्रमुख तीर्थ: चित्रकूट का इतिहास- Major Pilgrimage of India: History of Chitrakoot

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Item Code: HBD458
Author: Kanhaiya Lal Agarwal
Publisher: B.R. Publishing Corporation
Language: Hindi
Edition: 2025
ISBN: 9788119808762
Pages: 267 (Throughout B/w Illustrations)
Cover: HARDCOVER
Other Details 9x6 inch
Weight 452 gm
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Book Description
पुस्तक परिचय

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिला का चित्रकूट तीर्थ पवित्र मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुषमा के कारण प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। अपने चौदह वर्षीय बनवास काल में राम, सीता और लक्ष्मण ने यहाँ पर लगभग बारह वर्ष का समय व्यतीत किया। उन्होंने यहाँ पर स्वनिर्मित पर्णकुटी में निवास किया। भगवान राम की बिहारस्थली होने के कारण चित्रकूट तीर्थ की गणना भारत के विशिष्ट स्थानों में की जाती है। यहीं पर वह धर्मसभा एकत्रित हुई थी, जिसमें श्रीराम ने भरत को अयोध्या राज्य के संचालन का उत्तरदायित्व प्रसन्नतापूर्वक सौंपा था। राम की कृपो से ही चित्रकूट पर्वत कामनाओं को पर्ण करने वाला बना।

प्रस्तुत ग्रंथ का उद्देश्य चित्रकूट के प्रागितिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक के इतिहास का वर्णन करना है। पुस्तक में दस अध्याय है। पहले अध्याय में चित्रकूट के प्राकृतिक भूगोल के अन्तर्गत जनपद का आकार, स्थिति, प्राकृतिक विभाग, पर्वत, नदियां, पशु-पक्षी आदि का वर्णन किया गया है। दूसरे अध्याय में प्रागितिहासिक काल से लेकर नवपाषाणकाल तक सभ्यता के विकास के विभिन्न चरणों का वर्णन किया गया है तीसरे अध्याय में महाकाव्यकालीन चित्रकूट में चित्रकूट जनपद के धार्मिक स्थलों के साथ कुछ समीपवर्ती स्थानों का भी वर्णन किया गया है। चतुर्थ अध्याय में महाजनपद कालीन चित्रकूट के अन्तर्गत गुप्तवंश, हूणवंश, वर्धनवंश, यशोवर्मा, ललितादित्य, गुर्जर प्रतिहार और चन्देल वंश का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है। पांचवे अध्याय में गुजरात के बघेलों द्वारा चित्रकूट जनपद के गहोरा क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित करने की विस्तृत विवेचना की गई है। अध्याय छह में गहोरा के बघेलयुग में चित्रकूट का वर्णन है। अध्याय सात में बान्धवगढ़ के बघेल शासकों के अन्तर्गत चित्रकूट जनपद का वर्णन किया है। अध्याय आठ में मुगलकाल में चित्रकूट का विवेचन है।

अध्याय नौ बुन्देलकाल में चित्रकूट से सम्बन्धित है। दसवें अध्याय के बाद औरंगजेब के बालाजी मंदिर फरमान का सविस्तार वर्णन है। अन्त में सन्दर्भ सूची है। लेखक ने स्वयं यात्रा कर चित्रकूट के विभिन्न दर्शनीय स्थलों का भ्रमण किया है, अतः उनका वर्णन प्रामाणिक है।

लेखक परिचय

जन्मस्थानः बांदा, उ.प्र जन्मतिथिः 10.12.1942.

एम.ए. 1962 प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व, सागर विश्वविद्यालय

पीएच.डी. 1973, विन्ध्यक्षेत्रा का ऐतिहासिक भूगोल, सागर विश्व विद्यालय

पुरस्कार 1. भगवानदास सपफड़िया पुरस्कार, सतना, 1996. 2. नीरज न्यास पुरस्कार, सतना, 2014. 3. सारस्वत सम्मान, झांसी, 2014. 4. दीवान प्रतिपाल सिंह स्मृति सम्मान, पहरा, 2015

डॉ. कन्हैयालाल अग्रवाल

शोध तेरह छात्रों को पीएच.डी. प्राप्त

आजीवन सदस्य 1. म.प्र. इतिहास परिषद, भोपाल 2. इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस, दिल्ली 3. भारतीय मुद्रा परिषद, वाराणसी 4. एपिग्रापिफकल सोसायटी ऑपफ इण्डिया, मैसूर 5. मरुभूमि शोध संस्थान, डूंगरगढ़, राजस्थान

प्रकाशन 1. खजुराहो, मैकमिलन, 1980. 2. विन्ध्यक्षेत्रा का ऐतिहासिक भूगोल, छत्ए छमू क्मसीप, 1987 3. ऐतिहासिक भारतीय अभिलेख, जयपुर, 1992. 4. भारत का राजनीतिक इतिहास, म.प्र. हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोपाल, 2004. 5. भारत की सांस्कृतिक विरासत, इलाहाबाद, 1993. 6. भारतीय पुरातत्त्व के तत्त्व, इलाहाबाद, 2014. 7. खारवेल और उसका राजत्वकाल, बी. आरपब्लिशिंग कारपोरेशन, दिल्ली, 2018. 8. उत्तर भारत का राजनैतिक इतिहास, इलाहाबाद, 2019. 9. कालिंजर का इतिहास, बी.आर. पब्लिशिंग कारपोरेशन, दिल्ली, 10. बुन्देलखण्ड का इतिहास 11. त्रिपुरी के कलचुरि राजवंश

प्राक्कथन

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिला का चित्रकूट तीर्थ पवित्र मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुषमा के कारण प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। अपने चौदह वर्षीय बनवास काल में राम, सीता और लक्ष्मण ने यहाँ पर लगभग बारह वर्ष का समय व्यतीत किया। उन्होंने यहाँ पर स्वनिर्मित पर्णकुटी में निवास किया। भगवान राम की बिहारस्थली होने के कारण चित्रकूट तीर्थ की गणना भारत के विशिष्ट स्थानों में की जाती है। चित्रकूट को भगवान राम का धाम कहा जाता है अर्थात् राम का जन्म अयोध्या में हुआ, किन्तु उनका निवास यहाँ पर है। यहाँ के कण-कण में राम के चरणों की धूलि व्याप्त है।

केवल हिन्दू ही नहीं मुसलमान भी इस तथ्य को स्वीकार करते है। अकबर के नवरत्नों में से एक अब्दर्रहीम खानखाना का यह दोहा देखिए-

धूर धरत निज शीश पर, कहु रहीम केहि काज।

जेहि रज मुनि-पत्नि तरी, सो ढुंढत गजराज ।।

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