पुस्तक के बार में
रूपात्मक सौंदर्य और नादात्मक माधुर्य के कारण तैत्रीवाद्य जनमानस में लोकप्रिय रहे हैं। प्राचीन काल से ही संगीत में तत्रीवाद्यों का अपना महत्वपूर्ण स्थान रहा है। आज भी संगीत की प्रत्येक विधा में तंत्रीवाद्यों का विशेष महत्व है । एकल वादन के साथ-साथ संगत एवं वाद्यवृंद में भी इन वाद्यों का बहुतायत से प्रयोग होता है। वैदिक वाड्मय में अनेक वीणा वादकों और वादिकाओं का उल्लेख मिलता है । हमारा भारतीय संगीत उत्थान, पतन और पुनर्निर्माण के अनेक दौर देख चुका है। कलाकारों ने विपरीत परिस्थितियों में भी संगीत की साधना की । इन कलाकारों की अथक साधना का ही परिणाम है कि भारतीय संगीत आज भी अपनी महत्ता बनाए हुए है । इन कलाकारों के संबंध में थोड़ा-बहुत जानने की इच्छा के फलस्वरूप ही इस पुस्तक की रचना हो सकी है।
पुस्तक के लेखक डा. प्रकाश महाडिक स्वयं एक जाने-माने बेला वादक और संगीत साधक हैं ।
भूमिका
मानव सभ्यता के प्रारंभ से संगीत मोक्ष प्राप्ति और मनोरंजन का साधन माना जाता रहा है। वैदिक वाङ्मय में अनेक वीणा वादकों और वादिकाओं का उल्लेख मिलता है। हमारा भारतीय संगीत उत्थान, पतन और पुनर्निर्माण के अनेक दौर देख चुका है। कलाकार ने विपरीत परिस्थितियों में भी मां सरस्वती के चरणों में बैठकर संगीत की साधना की । इन कलाकारों की अथक साधना का ही परिणाम है कि भारतीय संगीत आज भी अपनी महत्ता बनाए हुए है । इन कलाकारों के संबंध में थोड़ा-बहुत जानने की इच्छा के फलस्वरूप ही इस पुस्तक की रचना हो सकी है। प्रथम अध्याय में घराना, बाज तथा वादन शैली को स्पष्ट कर उसकी विभिन्न मान्यताओं पर विचार किया गया है । तानसेन के वंशज सेनिया धराने के नाम से जाने जाते हैं। इस अध्याय में तानसेन की पुत्री और दामाद के धराने का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया गया है, साथ ही शिष्य परंपरा पर भी विचार किया गया है ।
रुद्रवीणा को बीन भी कहा जाता है। भारतीय संगीत के बहुत-से तंत्रीवादक ऐसे हुए जो सुरबहार और सितार दोनों ही वाद्य बजाने में निपुण रहे। बीन, सुरबहार और सितार इन तीनों की वादन तकनीक लगभग एक समान है, इसलिए दूसरे अध्याय में इन्हीं वाद्य वादकों का अध्ययन किया गया है।
रबाब, सुरसिंगार और सरोद एक ही परिवार के वाद्य हैं, इन वाद्यों की धारण एवं वादन तकनीक में बहुत कुछ समानता है। आज रबाब और सुरसिंगार वाद्य की परंपरा प्राय : लुप्त हो चुकी है, फिर भी इन वाद्यों के कलाकारों का परिचय इसलिए दिया गया है, क्योंकि इन वाद्यों के अनेक नामी कलाकर हुए और उनका संबंध आज के कई कलाकारों से दिखाई देता है। इस कारण तृतीय अध्याय में रबाब, सुरसिंगार और सरोद वादकों का परिचय दिया गया है ।
चतुर्थ अध्याय में गज से बजाए जाने वाले वाद्य वायलिन और सारंगी वाद्य के कलाकारों की जानकारी दी गई है। उ. अलाउद्दीन खां एक उत्तम सरोद वादकके साथ-साथ एक उत्कृष्ट बेला वादक भी रहे है, इसलिए बेला (वायलिन) से संबंधित जानकारी इसी अध्याय में सम्मिलित करना उचित समझा गया । विचित्र वीणा, संदूर और गिटार के कलाकारों के जीवन का रेखांकन अंतिम पांचवें अध्याय में किया गया है । तत्पश्चात् कहीं घराना और व्यक्ति विशेष के नाम से सारणियां दी गई हैं । सारणी में केवल कलाकारों के उन्हीं पुत्रों के नाम हैं, जो संगीत क्षेत्र में कार्यरत है, ऐसे पुत्र-पुत्री जिन्हें किसी उस्ताद या पंडित की संतान होने का गौरव तो है, किंतु वे संगीत जगत में अपना योग्य स्थान नहीं बना पाए अथवा संगीत क्षेत्र में कार्यरत् नहीं हैं, उनके नाम सारणी में सम्मिलित करना उचित नहीं समझा गया ।
प्रस्तुत पुस्तक में कलाकारों की शिक्षा, साहित्यिक कार्य, शिष्य परंपरा और वादन विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है । कहानी-किस्सों, बड़ी-बड़ी बोझिल शब्दावली एवं निरर्थक प्रशंसा से प्राय : बचने का प्रयास किया गया है । प्रतिष्ठित कलाकारों के कार्यक्रम संगीत सम्मेलन, आकाशवाणी, दूरदर्शन में होते ही रहते हैं। इसी प्रकार डिस्क कैसेट आदि भी निकलती ही रहती हैं। विदेश प्रवास भी आजकल सामान्य बात हो गई है । प्राय : सभी कलाकारों को प्रति वर्ष कोई-न-कोई पुरस्कार मिलते ही रहते हैं। पुस्तक की सीमा को देखते हुए इन बातों का उल्लेख करना संभव नहीं हो सका है। हां, फिर भी विदेश के विशेष कार्यक्रम और पुरस्कार का उल्लेख किया गया है । जिस कलाकार का जितना परिचय ज्ञात हो सका, उसको आवश्यकतानुसार देने का प्रयास किया है । कुछ कलाकारों का परिचय कम लिखने का कारण सीमित साधन एवं न्यून जानकारी प्राप्त होना है । इसमें किसी कलाकार और धराने विशेष के कलाकारों से किसी प्रकार के दुराग्रह या वैमनस्य का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता । हां, एक बात और कि, कलाकारों का परिचय उनके गुरु-शिष्य परंपरा को ध्यान में रखकर देने का प्रयास किया है। इस पुस्तक की रचना के लिए अनेक दुर्लभ ग्रंथों का अध्ययन किया गया, साथ ही तंत्री-वादकों की विशेषताओं का विवरण रिकार्ड (डिस्क), टेप्स एवं कलाकारों द्वारा दिए गए साक्षात्कारों पर आधारित है। जिन तंत्री-वादकों से साक्षात्कार लिए, उनके नाम इस प्रकार हैं- उ. विलायत खां, पं, रविशंकर, पं. अजय सिन्हाराय, उ. अब्दुल हलीम जाफ़र खां, प्रो. के. सी. गंगराडे, उ. इलियास खां. पं. विमलेंदु मुखर्जी, श्री बुधादित्य मुखर्जी, पं. बलराम पाठक, पं. अरविंद पारिख, उ. ज़ियामोहिउद्दीन डागर, पं. हिंदगंधर्व दिवेकर, श्री हिंदराज दिवेकर, पं. बुद्धदेवदासगुप्त, पं. सुप्रभात पाल, पं. ज्योतिन भट्टाचार्य, श्रीमती शरनरानी बाकलीवाल, पं. गजानन राव जोशी, पं. वी.जी जोग, पं. जी. एन. गोस्वामी, पं. डी. के. दातार, डा. (श्रीमती) एन. राजम्, प्रो. शिशिरकणाधर चौधरी, प्रो. वी. सी. रानडे, श्री गोपालचंद नंदी, उ. मोहम्मद हुसैन खां, पं. रामनारायण, पं. शिवकुमार शर्मा, श्री ओमप्रकाश चौरसिया। इन कलाकारों के अतिरिक्त अन्य कलाकारों से भी साक्षात्कार लेने का प्रयास किया गया, किंतु अपरिहार्य कारणों से उनसे मिलना संभव नहीं हो सका। उपर्युक्त कलाकारों से प्राप्त जानकारी को यथायोग्य सम्मिलित किया गया है।
उक्त कलाकारों में से कुछ कलाकारों का स्वर्गवास हो चुका है, उन कलाकारों को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन सभी कलाकारों का मैं हृदय से आभारी हूं जिनका सहयोग मुझे प्राप्त हुआ। उन ग्रंथकारों, प्रकाशकों, संपादकों, मित्रों और शुभचिंतकों का हृदय से आभारी हूं जिनकी मदद मैंने इस कार्य में ली है। मेरे गुरु श्री राठौर जी, श्री के. एम. बड़ोदिया, प्राचार्य श्री एस. आर. बड़ोदिया और पं. तुलसीराम देवांगन जी के योग्य मार्गदर्शन में ही यह कार्य संभव हो सका है। अत : इनका मैं ऋणी व कृतज्ञ हूं। संगीत से जुड़े व्यक्ति इस कृति से लाभ उठाएंगे, तो मेरा परिश्रम सार्थक होगा। पाठकों के योग्य सुझाव की प्रतीक्षा रहेगी।
विषय-सूची
1
घराना, बाज तथा वादन शैली
2
रुद्रवीणा (बीना), सितार, सुरबहार वादक
9
3
सितार वादक एवं सुरबहार वादक
24
4
रबाब, सुरसिंगार और
60
5
सरोद वादक
62
6
बेला (वायलिन), एवं सारंगी वादक
78
7
सारंगी वादक
95
8
विचित्र वीणा, संतूर और गिटार वादक
105
संतूर वादक
107
10
गिटार वादक
110
11
विभिन्न घरानों की सारणियां
113
12
संदर्भ कलाकार
132
13
ग्रंथ-सूची
133
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