निर्विवाद रूपें उपन्यासके गल्प विधाक अद्यतन आ परिष्कृत स्वरूप केर रूपमे मान्यता प्राप्त अछैक। प्रायः विश्व भरिक बेसी साहित्यिक समालोचक आ भाषाविद् भाषाक विकासक पहिल सीढ़ी पद्य विद्या (कहवी, फकड़ा) आदिके मानैत छथि। परंच इहो सत्य जे साहित्य जौं समाजक सन्दिशायुक्त अएना थिक तए आधारविम्व समाजसँ पृथक एकर अस्तित्वक सम्पुष्टि सेहो सम्भव नहि। एहि दृष्टिएँ दृष्टिपात कएलासँ तथ्यक फरिछौठ आर कठिनाह। शिक्षित वर्गक अपेक्षा अशिक्षित समूहमे प्रचलित व्यवहारक सम्यक अनुशीलन एहि तथ्यके स्पष्ट करैत अछि जे लोक प्रचलनमे पद्यसँ कम लोकप्रियता गद्यक प्रायः कहियो नहि रहल। खिस्सा ओ कथा कहबाक आ सुनवाक परिपाटी भारतीय बाङगमयमे प्रायः अदीसँ प्रचलित रहक संकेत लोक व्यवहारसँ भेटइत अछि। भागवत आ रामायण सन महाकाव्यक कथा वाचनक अतिप्राचीन आ पुष्ट परम्परा, आमजनक पैघ आ सांगोपांग कथा श्रवणक औत्सुक्यकें स्पष्ट करैत अछि। एतहि ई स्पष्ट करव आवश्यक जे मैथिली उपन्यासक वर्तमान स्वरूप बंगला आदिक माध्यमे आ अंग्रेजी साहित्यक प्रभावसँ आकार ग्रहण कएलक ई बेसी विद्वानक मान्यता छनि। मैथिलीमे कथा साहित्यक उदभव बीसम सदी मे पूर्वार्द्ध क भेल मानल जाइत अछि। देश-विदेशक विविध साहित्यसँ अवगत भेलाक पश्चात् सांगोपांग वर्णनक सुसंगत व्यवस्थाक अन्तरगत् उपन्यास विधाक जन्म आख्यायिका ओ उपाख्यानक आधारकै विस्तृत करैत जर्नादन झा जनसीदनक निर्दयी सासुसँ भेल।
प्राचीन भारतमे प्रतिष्ठित सुदीर्घ वैदिक आ लौकिक दूहूक साहित्यिक आ भाषिक परम्परा एतबा मानबा लए विवस करैत अछि जे उपन्यास रूपी विस्तृत वितानक प्रति लोकक आग्रह व्यापक छल। एकर स्पष्ट प्रमाण भागवत, रामायण, महाभारत आदि महाकाव्यक सृजन अछि। अति प्राचीन व्यास परम्परा एहि तथ्यकें पुष्ट करैत अछि जे पद्यमे लिखल विस्तृत कथाके बिखिया-बिखियाके कहवाक आ सुनवाक औपन्यासिक परिवेश अदौसँ छल।
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