सुविख्यात बांग्ला उपन्यासकार ताराशंकर बंधोपाध्याय की यह पुस्तक कथावस्तु और रचना-शिल्प की दृष्टि से एक अनूठी और मार्मिक कथाकृति है |
माता-पितविहीन नीरजा नामक एक बालिका का जैसा चरित्र- चित्रण यहाँ हुआ है , वह सिर्फ तारा बाबू जैसे कथाकार ही कर सकते है | पशुवत मनुष्यो के लोभ, कुत्सा और समाज की कुरूपताओ से अनथक संघर्ष करते हुए नीरजा मानो तेजोद्दीप्त भारतीय नारी का प्रतीक बनकर उभरती है , जिसमे परदुःख-कातरता भी है और उसके लिए आत्मोत्सर्ग की भावना भी | एक ओर वह अनाचार से जूझने के लिए जलती हुए मशाल है, तो दूसरी ओर वह उसके अन्तर में प्रेम की अंतः सलिला प्रवाहित हो रही है | नारी की आत्मनिर्भरता उसके जीवन का मूलमंत्र है, जिसे वह सम्मानपूर्वक जीने की पहली शर्त मानती है | वस्तुतः तारा बाबू ने इस उपन्यास में स्थितियों और परिवेश को नाटकीयता प्रदान करके विलक्षण प्रभाव उत्पन्न किया है |
Hindu (हिंदू धर्म) (12711)
Tantra (तन्त्र) (1023)
Vedas (वेद) (707)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1906)
Chaukhamba | चौखंबा (3360)
Jyotish (ज्योतिष) (1466)
Yoga (योग) (1096)
Ramayana (रामायण) (1383)
Gita Press (गीता प्रेस) (733)
Sahitya (साहित्य) (23197)
History (इतिहास) (8267)
Philosophy (दर्शन) (3395)
Santvani (सन्त वाणी) (2590)
Vedanta (वेदांत) (120)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist