पुस्तक परिचय
महर्षि भृगु द्वारा लिखित प्रथमत: प्रकाशित अत्यंत प्राचीन 'योगसागर' नमक ग्रन्थ ज्योतिशास्त्र के होरा - स्कन्ध के लिए अतीव उपयोगी एवं अद्वितीय है! ज्योतिषशास्त्र में दो प्रकार की परंपरा फलादेश की प्राप्त होती है एक तो सामान्य परंपरा जिसमें कारकम, बल, दृष्टि, भाव रथ अन्य स्थितियों की अपेक्षा रहती है तथा दूसरी परंपरा 'ग्रहयोग' की है, जिसके अंतगर्त विशिष्ट नाम या संज्ञा के आधार पर गृहस्थितियों द्वारा फलादेश किया जाता है! यहाँ 'योग-सागर' नमक ग्रन्थ योगप्रकरण पर आधारित है ! जिसमें ग्रहों के आधार प्रर शुभाशुभ फल प्राप्त होता है१ आचार्य बी.वी. राम जैसे फलादेश्ज्ञ विद्वानों ने ३०० प्रमुख योगों पर कार्य किया तथा उनकी प्रमुखता प्रदान की, परंतु प्रस्तुत योगसागर नमक ग्रन्थ में हज़ार की संख्या में ग्रहयोग बताये गए है, जिनके प्रकाशन द्वारा फलादेश में चार-चाँद लग गया है! आकर्षक नामों से अभिहित ग्रहयोग पूर्णरूप से मानव के विविध पक्षों को शुभाशुभ रूप में फल प्रदर्शित करते है१ मनोज्ञ, प्रमोद,चग्युषसागर, प्रभृति योगों के नाम अतीव मनोहारी एवं आकर्षक है! प्रस्तुत योगसागर नमक ग्रन्थ ज्योतिषशास्त्रीय योग -परंपरा क अप्रतिम ग्रन्थ है
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