बाबासाहब डॉ. बी. आर. भाआंबेडकर को भारतीय संविधान के सिद्धांत निर्माता और दलित अधिकारों के मुखर प्रवक्ता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कम उम्र से ही भेदभाव का अनुभव किया, जिसका उन्होंने अपने बाद के लेखन में स्पष्ट रूप से वर्णन किया। एक जगह वे लिखते हैं-"स्कूल में रहते हुए मैं जानता था कि जब सामान्य वर्ग के बच्चे प्यासे होते हैं, तो ये पानी के नल के पास जा सकते हैं, उसे खोल सकते हैं और अपनी प्यास बुझा सकते हैं, लेकिन मेरी स्थिति अलग थी। मैं नल को नहीं छू सकता था और जब तक नल को कोई सामान्य जन मेरे लिए नहीं खोल देता, तब तक मेरी प्यास बुझाना संभव न था।"
1920 में उन्होंने एक साप्ताहिक मराठी अखबार शुरू किया, जिसमें जातिगत भेदभाव की कड़ी आलोचना की गई। उन्होंने 1937 और 1946 में अंग्रेजों द्वारा दिए गए चुनाव लड़ने के लिए दो राजनीतिक दलों की स्थापना की. हालांकि इन्हें संसाधन संपन्न कांग्रेस पार्टी के खिलाफ बहुत कम सफलता मिली। 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, तो प्रधानमंत्री नेहरू ते उन्हें पहले कानून और न्यायमंत्री बनने के लिए आमंत्रित किया। संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था। डॉ. आंबेडकर ने इसको सराहना की कि इसकी सीमाएँ हैं।
बाबासाहब के अनंत संघर्ष की मर्मांतक कहानी, जिसमें उनके बाल संघर्ष को मुखरता से अभिव्यक्त किया गया है।
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