चिकित्सा विज्ञान और जीवन-रक्षक तकनीकों में हुए अभूतपूर्व विकास के सहारे अनेक लोगों को मौत के मुँह से वापस ला पाना सम्भव हुआ है। हाल में प्रकाशित मृत्यु के निकट के अनुभव के विवरणों को जानना एक दिलचस्प विषय बन चुका है।
"मृत्यु के बाद जीवन-आलोक" इस विषय की छान- बीन करते हुए एक विकासशील धर्म की अवधारणाओं से इसे जोड़ता है। हालाँकि बहाई धर्म अभी कोई 160 साल ही पुराना है, यह ईसाई धर्म के बाद दुनिया में दूसरा व्यापक धर्म बन चुका है। विश्व एकता से सम्बन्धित इसकी शिक्षाएँ धार्मिक और जातीय उन्मादों से पीड़ित धरतीवासियों को राहत की साँस देती हैं।
इस पृथ्वी के निर्माण और आकार को लेकर मनुष्य की समस्त खोजों के बावजूद, हम में से अधिकांश, अब भी यह जानते हैं कि इन सब के केन्द्र में स्वयं मनुष्य है। इसी प्रकार समय को लेकर हमारी धारणा केवल उस अवधि तक ही सिमट गई है, जो हमारा उपग्रह सूर्य की अस्सी परिक्रमा पूरी करने में लेता है। हालाँकि मृत्यु के बाद जीवन की सम्भावना हमें आत्मा की अमरता और उसकी शाश्वत सत्ता के बारे में सोचने को बाध्य करती है। इन सारी बातों को एक उचित संदर्भ में रखने के लिए यह आवश्यक होगा कि हमने इस सृष्टि और उसमें अपने स्थान के बारे में जो कुछ जाना – सीखा है, उस पर पुनर्विचार करें।
हमारे इस ब्रह्माण्ड में अरबो खरबो आकाशगंगाएँ हैं और इनमें से प्रत्येक में अरबो सूर्य या तारे हैं। जिस आकाशगंगा में हम स्वयं को पाते हैं, कहा जाता है कि उसमें 1000 खरब तारे हैं। इसका व्यास लगभग 100,000 प्रकाश वर्ष है यानि, 5,880,000,000,000,000,000 मील। सबसे निकटतम ज्ञात तारा अल्फा सेंटोरी सी. हमारी धरती से 4 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। हमारा सूर्य एक औसत तारा है जो हमारी आकाशगंगा के केन्द्र से लगभग 32,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है और प्रत्येक 2,250 लाख वर्षों में यह कक्षा की एक परिक्रमा पूरी करता है। माना जाता है कि 45 खरब वर्ष पहले हमारा सूर्य और उसके 9 ग्रह, नक्षत्रों के बीच बादल के टकराने से टूट कर निर्मित हुए थे।
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