नाम- डॉ. राकेश शास्त्री
शिक्षा- हाईस्कूल (1971), इण्टरमीडिएट (1973) प्रथम श्रेणी (यू.पी. बोर्ड, बी. ए. (ऑनर्स संस्कृत) (1975) मेरठ विश्विद्यालय की योग्यता सूची में छटवाँ स्थान, महाविद्यालय स्वर्णपदक, एम.ए (संस्कृत-साहित्य वैशिष्टय) (1977), प्रथम श्रेणी, पी-एव.डी. (वेद), पुराणेतिहासाचार्य (1984) सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, वि.वि. योग्यता सूची में प्रथम स्थान, विश्वविद्यालय स्वर्णपदक, साहित्याचार्य (प्रथम श्रेणी), डी.लिट् (2013), (राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर)
अनुभव सेवानिवृत्त अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, श्री गोविन्द गुरु राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बाँसवाड़ा (राज.) लगभग 29 वर्ष राजस्थान सरकार की उच्वशिक्षा सेवा, एम.फिल्, पी-एच.डी. के छात्रों को निर्देशन। गुरुकुल काँगडी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के संस्कृत विभाग में लगभग 5 वर्ष अध्यापक, वैदिन एवं पौराणिक रिसर्च इन्स्टीट्यूट नैमिषारण्य, उ.प्र. में शोध-सहायक 2 वर्ष।
ग्रन्ध लेखन-ऋग्वेद के निपात (पी-एच.डी. शोधप्रबन्ध), मार्कण्डेय महापुराण (हिन्दी अनुवाद), वेदान्तसार, सांख्याकारिका, तर्कसंग्रह, तर्कभाषा, अर्थसंग्रह, भारतीय दर्शन की मूल अवधारणाएँ, दर्शनशास्त्र का अन्तरंङ्ग इतिहास, महाभारतीय सांख्य, सांख्यदर्शनम्, स्नातक संस्कृत सरला, सुगम संस्कृत व्याकरण, स्वप्नवासवदत्तम्, प्रतिमा नाटकम्, मुद्राराक्षराम्, नागानन्दम्, रत्नावली नाटिका, वेणी संहारम् उत्तररामबरितम्, शतकचतुष्टयम्, नलवम्पू (प्रथम उच्छ्वास), वासवदत्ता, कादम्बरी कथामुखम्, हर्षचरितम् (पंचम उच्छ्वास), बुद्धचरितम् (प्रथमसर्ग), काव्यप्रकाश (दो खण्ड), रसमंङ्गापर (प्रथम आनन), काव्यदीपिका (सम्पूर्ण), वक्रोक्ति
कृष्णयजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के तैत्तिरीय आरण्यक से सम्बन्धित होने से इसका नाम 'तैत्तिरीयोपनिषद्' हुआ। यजुर्वेदीय तैत्तिरीय आरण्यक के सप्तम से नवम कुल तीन प्रपाठक ही इस उपनिषद् के नाम से जाने जाते हैं। प्रपाठक से अभिप्राय यहाँ अध्याय से है। इस उपनिषद् में कुल तीन वल्लियाँ हैं- (1) शिक्षा, (2) ब्रह्मानन्द तथा (3) भृगु वल्ली।
वैदिक साहित्य एक परिचय अथाह ज्ञान राशि के अक्षय भण्डार 'वेद' भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्वसाहित्य में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। सामान्यरूप से वेदों से अभिप्राय ऋग्वेद, युजर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन्हीं चार वेदों से ग्रहण किया जाता है, किन्तु 'मन्त्रब्राह्मणयोर्वेदनामधेयम्' इत्यादि कथन के अनुसार- संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् तक सम्पूर्ण वैदिक साहित्य को वेद-संज्ञा प्रदान की गयी है, जबकि शिक्षा, निरुक्त, कल्प, व्याकरण, छन्द एवं ज्योतिष ये सभी छः वेदाङ्ग, वेदों को समझने में सहयोगी साहित्य के अन्तर्गत आते हैं।
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