"मैं केवल यह कहना चाहती थी कि आप मेरा शरीर ले सकते हैं, लेकिन मेरा मन नहीं जीत सकते! यह कभी आपका न हो सकेगा।" नवेली वधू के मुख से ये शब्द सुनकर हरिदत्त की जो भी दशा हुई, पर उसने उफ न की, और वह कर दिखाया जो आज तक न कभी देखा था न सुना था !
कोई शिकायत नहीं आज के अत्यंत लोकप्रिय उपन्यासकार दत्त भारती का एक रोचक उपन्यास है। प्रेम, त्याग और बलिदान की यह एक अद्भुत कहानी है। मनुष्य क्या से क्या हो सकता है; वह क्या कुछ कर सकता है, इस मार्मिक उपन्यास में यह बहुत ही कुशलता के साथ उकेरा गया है।
दत्त भारती आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। कहानी, कविताओं और लेखों के अलावा आपने कई सौ उपन्यास लिखकर साहित्य में अपना एक अलग विशिष्ट स्थान बनाया है। घर और स्कूल से प्राप्त आर्यसमाजी संस्कार, विश्वविद्यालय का साहित्यिक वातावरण, देशभर में होने वाली राजनैतिक हलचलें, बाल्यावस्था में आर्थिक संकट इन सबने आपको अति संवेदनशील, तर्कशील और विचारक बना दिया, जो आपके लेखन का आधार बना। आपको समाजसेवा एवं लेखन के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं।
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