1953 ई. में बहाई धर्म के संरक्षक शोगी एफेन्दी ने अपनी दस वर्षीय योजना के अन्तर्गत एक लक्ष्य यह भी रखा था कि 'किताब-ए-अक्दस के अनुवाद की आवश्यक भूमिका के रूप में इसके विधानों और अध्यादेशों का एक सारांश और नियमों का संग्रह तैयार किया जाए। इस संग्रह पर उन्होंने स्वयं कार्य किया था, परन्तु 1957 में उनके देहावसान के समय तक यह कार्य सम्पन्न नहीं हुआ था। उन्होंने स्वयं सार-संहिता पर कार्य किया था जिसे जारी रखा गया और 1973 ई. में विधानों का संक्षिप्त सार-संग्रह प्रकाशित हो गया। इस प्रकाशित पुस्तक में सारांश और व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ तो शामिल थी ही. किताब-ए-अक्दस के अनुच्छेदों का एक संकलन भी जुड़ा हुआ था। इन अनुच्छेदों का अनुवाद शोगी एफेन्दी पहले ही कर चुके थे और कई किताबों में वे छप भी चुके थे। किताब-ए-अक्दस के सारांश और नियम संग्रह में प्रश्न और उत्तर के पाठ भी शामिल थे क्योंकि 'प्रश्न और उत्तर' अक्दस की एक पूरक परिशिष्ट है। 1986 में विश्व न्याय मंदिर ने यह निर्णय लिया कि वह समय आ गया है जब परम पावन ग्रंथ के पूरे अंश का अंग्रेजी अनुवाद सम्भव और अनिवार्य हो गया है। इसे छः वर्षीय योजना (1986-1992) की अवधि में प्राप्त किए जाने वाले एक लक्ष्य के रूप में शामिल किया गया।
यह तय किया गया कि किताब-ए-अकदस जो एक पवित्र ग्रंथ है, इस आकार में प्रस्तुत किया जाए कि उसे सहजता और श्रद्धा के साथ पढ़ा जा सके और यह भी कोशिश की गई कि आमतौर पर विद्वतापूर्ण ग्रंथों में पाई जाने वाली पाद-टिप्पणियों और संकेत सूचक संख्याओं से भी इसे अबाधित और मुक्त रखा जाए। तथापि, पाठ के प्रवाह और विषय-वस्तु के परिवर्तन के अनुरूप अनुच्छेद-विभाजन इस तरह किया गया है कि पाठकों को अर्थ समझने में सुविधा हो, हालाँकि अरबी साहित्य की रचनाओं में इस तरह का अनुच्छेद विभाजन बहुत प्रचलित नहीं है और फिर ऐसे अनुच्छेदों को संकेत सूचक संख्याओं से अंकित किया गया है ताकि पाठक सन्दर्भ-ग्रंथों से परिचित हो सकें। इस तरह से संकेतित करने का एक लाभ यह भी है कि सभी भाषाओं में संकेतों की एकरूपता बनी रहे।
यह 149 वी बहाई वर्ष मानवजाति को सामूहिक वयस्कता की ओर ले जाने के उद्देश्य से अवतरित ईश्वर के विश्वव्यापी प्रकटीकरण के संवाहक बहाउल्लाह के स्वर्गारोहण की शताब्दी का स्मृति वर्ष है। बहाउल्लाह के अवतरण से उत्पन्न एकता की शक्तियों का अनुभव इस बात से होता है कि विगत मात्र 150 वर्षों में धर्मानुयायियों का एक समुदाय पृथ्वी के दूर-दूर के कोनों में स्थापित हो चुका है और आज मानवजाति की हर एक नस्ल का प्रतिनिधित्व कर रहा है। इन शक्तियों की क्रियाशीलता का एक और प्रमाण तब मिलता है जब हम देखते हैं कि मानव जीवन के अनेकानेक पहलुओं में आज जो अनुभव सत्यापित हो रहे हैं उनका पूर्व चित्रण बहाउल्लाह के धर्मदर्शन में पहले ही हो चुका है। उनके प्रकटीकरण के इस मातृग्रंथ, उनके इस परम पावन ग्रंथ, जिसमें उन्होंने ईश्वर के विधानों की स्थापना की है, के प्रथम प्राधिकृत अंग्रेजी अनुवाद के प्रकाशन का यह मांगलिक मुहूर्त है। ये विधान ईश्वर के उस युग के लिए हैं जिसकी पूरी अवधि एक हजार वर्ष से कम नहीं है।
बहाउल्लाह के पवित्र लेखों के एक सौ से भी अधिक संग्रहों में किताब-ए-अक़दस का महत्व अनूठा है। उनके संदेश का दावा और चुनौती है 'पूरे विश्व का नवनिर्माण और किताब-ए-अक़दस भविष्य की उस विश्व सभ्यता का घोषणा-पत्र है जिसकी स्थापना के लिए बहाउल्लाह का अवतरण हुआ है। इसके प्रावधान मूल रूप से अतीत के धर्मों द्वारा स्थापित सिद्धांतों पर आधारित है क्योंकि बहाउल्लाह ने कहा है कि 'यह धर्म ईश्वर का अपरिवर्तनीय धर्म है, यह अतीत में भी अनन्त था, यह भविष्य में भी अनन्त रहेगा। इस प्रकटीकरण में बीते युग की धारणाओं को ज्ञान के नए स्तर पर लाया गया है और सामाजिक नियमों को नये युग की आवश्यकताओं के अनुरूप बदल दिया गया है, उनकी रूपरेखा कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की गई है कि वे मानवजाति को एक ऐसी विश्व-सभ्यता की ओर ले जा सकें जिसके सौन्दर्य की कल्पना अभी शायद ही कोई कर सके।
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