विश्वेशमर्णय सत्येन्द्र का नारीरिर्ग में निवास का उद्देश्य कुलार्चन तो था ही, साथ ही वे गोरक्ष का परिक्षण भी करना चाहते थे! वे गोरक्ष के माध्यम से ही यौन विकृति की साधनाओं का मूल मर्म भी प्रकट करने के आकांशी थे, क्योंकि जिन मान्यतों, के वे पक्षधर थे, उनके ही खण्डन से पंथ दूषित होता जबकि समाज और देश में अब उन साधनाओं के सत्पात्र प्राप्त नहीं होते ! गोरक्ष के सर्वाभ्युत्थात मैं उनकी (मत्स्येन्द्र) लोक अबमाना हो, अपवाद हो तो भी उन्हें स्वीकृत था!
जन्म २२ अप्रैल १९५४ जन्म स्थान कर्माखेड़ी (रुठियाई) गुना (म. प्र.), प्रात: स्मरणीय पूज्यपाद गुरुदेव तंत्रचूड़ामणि देशिकाचार्य श्रीमत्गोविंद शास्त्री जी के आदेश से, विगत ४० वर्षों से तंत्र को कथा के रूप में लिख रहे है! ४०० से अधिक तंत्रकथा से अधिक तंत्रकथा एवं लेख राष्ट्रीय स्टार के पात्र पत्रिकाओं में प्रकाशित से चुके है ! २० से अधिक पुस्तकें भी प्रकाशित से चुके है !
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