प्रथम संस्करणका निवेदन
जानकी मंगलमें (जैसा कि इसके नामसे ही स्पष्ट है) प्रात:स्मरणीय गोस्वामीजीने जगज्जननी आद्याशक्ति भगवती श्रीजानकीजी तथा परात्पर पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्रीरामके परम मङ्गलमय विवाहोत्सवका बड़े ही मधुर शब्दोंमें वर्णन किया है । जनकपुरमें स्वयंवरकी तैयारीसे आरम्भ करके विश्वामित्रके अयोध्या जाकर श्रीराम लक्ष्मणको यज्ञ रक्षाके ब्याजसे अपने साथ ले आने, यज्ञ रक्षाके अनन्तर धनुष यज्ञ दिखानेके बहाने उन्हें जनकपुर ले जाने, रंग भूमिमें पधारकर श्रीरामके धनुष तोड्ने तथा श्रीजनकराजतनयाके उन्हें वरमाला पहनाने, लग्न पत्रिका तथा तिलककी सामग्री लेकर जनकपुरोधा महर्षि शतानन्दजीके अयोध्या जाने, महाराज दशरथके बरात लेकर जनकपुर जाने, विवाह संस्कारसम्पत्र होनेके अनन्तर बरातके बिदा होने, मार्गमें भृगुनन्दन परशुरामजीसे भेंट होने तथा अन्तमें अयोध्या पहुँचनेपर वहाँ आनन्द मनाये जाने आदि प्रसङो्ंका संक्षेपमें बड़ा ही सरस एवं सजीव वर्णन किया गया है; जो प्राय: रामचरितमानससे मिलता जुलता ही है । कहीं कहीं तो रामचरितमानसके शब्द ही ज्यों के त्यों दुहराये गये है ।
इस छोटे से अन्यका सरल भावानुवाद कई वर्ष पूर्व कवितावलीके टीकाकार हमारे पूर्वपरिचित स्वर्गीय श्रीइन्द्रदेवनारायणसिंहजीने किया था, जिसका हमारे अपने श्रीमुनिलालजी (वर्तमान स्वामी श्रीसनातनदेव जी) ने बड़े परिश्रम एवं प्रेमसे संशोधन भी कर दिया था । परंतु इच्छा रहते भी इतने लम्बे कालतक उसे छापनेका सुयोग नहीं उपस्थित हुआ । श्रीसीतारामजीकी कृपासे वह स्वर्ण अवसर अब प्राप्त हुआ है और पूज्य गोस्वामीजीकी यह मंगलमयी कृति सरल अनुवादसहित श्रीरामभक्तोंकी सेवामें सादर प्रस्तुत की जा रही है । अनुवाद कैसा हुआ है, इसकी परख तो विज्ञ पाठक ही कर सकेंगे । पाठ अथवा अर्थमें जहाँ कहीं भ्रमवश तथा दृष्टिदोषसे भूलें रह गयी हों, उनकी ओर यदि कोई महानुभाव हमारा ध्यान आकृष्ट करनेकी कृपा करेंगे तो हम उनके कृतज्ञ होंगे तथा अगले संस्करणमें उन भूलोंको सुधारनेकी चेष्टा करेंगे । श्रीसीतारामजीके इस परम पावन चरित्रके अनुशीलनसे जनताका अशेष मंगल होगा इसी आशासे उनकी यह वस्तु उन्हींके पाद पद्योंमें निवेदित है ।
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