पुस्तक के विषय में
मनुष्य एक यंत्र है, क्योंकि सोया हुआ है। और जो सोया हुआ है और यंत्र है, वह मृत है। उसे जीवन का केवल अभ्यास है, कोई अनुभव नहीं है। और इस सोए हुए होने में वह जो भी करेगा—चाहे वह धन इकट्ठा करे, चाहे वह धर्म इकट्ठा करे, चाहे वह दुकान चलाए और चाहे वह मंदिर, और चाहे वह यश कमाए और चाहे त्याग करे, इस सोई हुई स्थिति में जो भी किया जाएगा, वह मृत्यु के अलावा और कहीं नहीं ले जा सकता है।
पुस्तक के कुछ मख्य विषय-बिंदु:
क्या आप अपने विचारों के मालिक हैं?
वे कौन सी परतंत्रताएं हैं जो मनुष्य के जीवन को सब ओर से घेरे हुए रहती हैं ?
क्या है भय का मनोविज्ञान?
जाग्रत चित्त सत्य की और स्वयं की खोज का द्वार है
जागरूकता क्या है?
भूमिका
मनुष्य एक बीज है चेतना के लिए लेकिन अभी चेतना नहीं है । अभी तो यंत्र है । और अगर इस सारी स्थिति को ठीक से समझ ले, यह अपनी सिचुएशन, यह उसकी चित्त की पूरी दशा अगर उसे पूरी-पूरी स्पष्ट हो जाए, तो इसी के स्पष्ट होने के साथ-साथ उसके भीतर कोई शक्ति जागने लगेगी जो उसे मनुष्य बना सकती है । मनुष्य मनुष्य की भांति पैदा नहीं होता, एक बीज की भांति पैदा होता है । उसके भीतर से मनुष्य का जन्म हो सकता है । लेकिन कोई भी मनुष्य मनुष्य की भांति जन्मता नहीं है । और अधिक लोग इस भूल में पड़ जाते हैं कि वे मनुष्य हैं, और यही भूल उनके जीवन को नष्ट कर देती है ।
जन्म के साथ हम एक पोटेंशियलिटी की तरह, एक बीज की तरह पैदा होते है, लेकिन हम उसी को समझ लेते हैं कि हमारा होना समाप्त हो गया, तो हम वहीं ठहर जाते हैं । बहुत कम लोग हैं जो जन्म के ऊपर उठते हों और जन्म का अतिक्रमण करते हों । जन्म पर ही रुक जाते हैं । जन्म के बाद फिर उनमें कोई विकास नहीं होता । हां, यंत्र की कुशलता बढ़ जाती है, लेकिन यांत्रिकता के ऊपर उठने का कोई, कोई चरण, कोई कदम नहीं उठाया जाता । और वह कदम उठाया भी नहीं जा सकता, जब तक हमें यह खयाल ही पैदा न हो कि हम क्या हैं ? मनुष्य यदि यह अनुभव कर ले कि वह एक यंत्र है, तो वह मार्ग स्पष्ट हो सकता है।
जिसकी यात्रा करने के बाद वह यंत्र न रह जाए । लेकिन हमारे अहंकार को इस बात से बड़ी चोट लगती है कि कोई हमसे कहे कि हम एक यंत्र हैं । मनुष्य के अहंकार को इससे बड़ी चोट लगती है कि कोई उससे कहे कि तुम एक मशीन हो । मनुष्य को तो इस बात के सुनने में बहुत मजा आता है कि तुम एक परमात्मा हो । तुम्हारे भीतर भगवान वास कर रहा है । इस बात को सुनने में उसे बहुत मजा आता है । इसलिए वह मंदिरों में और मस्जिदों में इकट्ठा होता है और उन लोगों के पैर पड़ता है जो उसे समझाते हैं कि तुम तो स्वयं भगवान हो । उसे यह बात सुन कर बड़ा आनंद मालूम होता है कि मैं भगवान हूं । उससे कोई यह कहे कि तुम एक मशीन हो, तो उसे बड़ी चोट लगती है । लेकिन कोई उससे कहे कि तुम एक भगवान हो, तो उसे बहुत आनंद मिलता है । उसके अहंकार की बड़ी तृप्ति होती है । उसके ईगो को बड़ा सहारा मिलता है कि मैं भगवान हूं । इस सत्य को बहुत ठीक से समझ लेना जरूरी है कि जैसे हम है वैसे हम भगवान तो बहुत दूर, मनुष्य भी नहीं हैं । जैसे हम हैं, भगवान होना तो बहुत दूर, हम मनुष्य भी नहीं हैं । हम बिलकुल मशीनों की भांति हैं । हमारा सारा जीवन इस बात की कथा है । हमारे पूरे पांच-छह हजार वर्ष का इतिहास इस बात की कथा है कि हम एक मशीन की भांति जी रहे हैं । जो भूल मैंने कल की थी, वही भूल मैं आज भी कर रहा हूं । जो भूल मैंने दस साल पहले की थी, वही भूल मैं दस साल बाद भी करूंगा । अगर एक आदमी आपके दरवाजे से निकलता हो और रोज एक ही गो में आकर गिर जाता हो, तो एक दिन आप क्षमा कर देंगे कि भूल हो गई । दूसरे दिन वह आदमी फिर आए और उसी गो में गिर जाए तो शायद आपको भी संकोच होगा यह कहने में कि यह भूल हो रही है । लेकिन अगर वह तीसरे दिन भी उसी गो मे गिर जाए, चौथे दिन भी, और वर्ष-वर्ष बीतते जाएं और रोज उसी गट्टे में आकर वह आदमी गिरे, तो आप क्या कहेंगे ‘
आप कहेंगे, यह आदमी तो नहीं मालूम होता, कोई मशीन मालूम होती है जो ठीक गट्टे में रोज गिर जाती है । और उसी गट्टे में । उसी भूल से रोज गुजरती है । और फिर भी इसके जीवन में कोई क्राति नहीं होती, कोई परिवर्तन नहीं होता । जिस क्रोध को हमने हजार बार किया है और हजार बार दुखी हुए हैं और पछताए हैं, वही हम आज भी कर रहे है । भूल वही है, हम रोज उसे दोहरा रहे हैं । जिस घृणा से हम पीड़ित हुए हैं, उसे हमने बार-बार किया है, आज भी कर रहे है । जिस अहंकार ने हमे जलाया है, जिसने हमे चोट पहुंचाई है, उसको हम आज भी पक्के हुए है । हर आदमी नई-नई भूलें थोड़े ही करता है, और न ही एक आदमी रोज नई भूलें ईजाद करता है । थोड़ी सी भूलें हैं, जिन्हें रोज दोहराता है । और रोज पछताता है । रोज निर्णय करता है कि नहीं, अब यह नहीं करूंगा । लेकिन उसके अगर हाथ में होता न करना, तो उसने बहुत पहले करना बंद कर दिया होता । फिर उसे ही करता है, फिर पछताता है; फिर करता है, फिर पछताता है । कोई भी फर्क उसके जीवन में होता नहीं है । क्या बताती है यह बात ? ‘यह बताती है कि मनुष्य एक यंत्र है । अहंकार को इससे चोट लगती है । चोट लगेगी भी । क्योंकि जिसका अहंकार नहीं टूटता, वह कभी यंत्र होने के ऊपर नहीं उठ सकता है ।
अनुक्रम
1
मनुष्य एक यंत्र है
01
2
यांत्रिकता को जानना क्राति है
21
3
जागरण के सूत्र
41
4
जाग जाना धर्म है
63
ओशो-स्व परिचय
83
ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट
84
ओशो का हिंदी साहित्य
86
अधिक जानकारी के लिए
91
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