चुने हुए अमूल्य रत्न
ऐसी चेष्टा करनी चाहिये, जिससे एकान्त स्थानमें अकेलेका ही मन प्रसन्नतापूर्वक स्थिर रहे । प्रकृल्लित चित्तसे एकान्तमें श्वासके द्वारा निरन्तर नामजप करनेसे ऐसा हो सकता है ।
भगवष्त्प्रेम एवं भक्ति ज्ञान वैराग्य सम्बन्धी शास्त्रोंको पढ़ना चाहिये ।
एकान्त देशमें ध्यान करते समय चाहे किसी भी बातका स्मरण क्यों न हो, उसको तुरन्त भुला देना चाहिये । इस संकल्प त्यागसे बड़ा लाभ होता है ।
धनकी प्राप्तिके उद्देश्यसे कार्य करनेपर मन संसारमें रम जाता है, इसलिये सांसारिक कार्य बड़ी सावधानीके साथ केवल भगवत्की प्रीतिके लिये ही करना चाहिये । इस प्रकारसे भी अधिक कार्य न करे, क्योंकि कार्यकी अधिकतासे उद्देश्यमें परिवर्तन हो जाता है ।
सांसारिक पदार्थों और मनुष्योंसे मिलना जुलना कम रखना चाहिये ।
संसार सम्बन्धी बातें बहुत ही कम करनी चाहिये ।
बिना पूछे न तो किसीके अवगुण बताने चाहिये और न उनकी तरफ ध्यान ही देना चाहिये ।
सबके साथ निष्काम और समभावसे प्रेम करना चाहिये ।
नामजपका अभ्यास कभी नहीं छोड़ना चाहिये, नामजपमें बाधक विषयोंका त्याग कर सदा सर्वदा ऐसी ही चेष्टा करते रहना चाहिये कि जिससे हर्ष और प्रेमसहित नामजपका अभ्यास निरन्तर बना रहे । ऐसा हो जानेपर भगवान्के दर्शनकी भी कोई आवश्यकता नहीं ।
वैराग्य वही उत्तम है जो सत्तारहित हो ।
आनन्दघनके होनेका ज्ञान भी आनन्दघनको ही है, इस तरहके हर समय रहनेवाले भावको ही ब्रह्माकार वृत्ति कहते हैं । उपर्युक्त भावसे मन, बुद्धिका अभाव हो जाता है । यह भाव जिससे प्रकाशित होता है, वही ब्रह्म है, वही अमृत है ।
जो अपने साथ ईर्ष्या करे उसके साथ भी प्रेम करे । अपनी बुराई करनेवालेका भी उपकार करे, वैर रखे उसके भी भलेकी चेष्टा करे ।
सभीके साथ मित्रताका बर्ताव करे, सभीके साथ स्वार्थ छोड्कर और मान बड़ाईका भाव त्याग कर नम्रतासे प्रेम ही करे ।
दो शब्द
शास्त्रोंका अवलोकन और महापुरुषो के वचनो काश्रवण करके मैं हम निर्णयपर पहुँचा कि संसारमें श्रीमद्भगवगीता के समान कल्याणके लिये कोई भी उपयोगी ग्रन्थ नहीं है। गीतामें ज्ञानयोग, ध्यानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, आदि जितनेभी साधन बतलाये गयेहैं, उनमेंसे कोई भी साधन अपनी श्रद्धा, रूचि और योग्यताके अनुसार करने से मनुष्यकर शीघ्र कल्याण हो सकता है।
अतएव उपर्युक्त साधनोंकी तथा परमात्माका त्तव रहस्य जानने के लिये महापुरुषो का और उनके अभाव में उच्चकोटिके साधकों का श्रद्धा, प्रेमपूर्वक सग करने की विशेष चेष्टा रखते हुवे गीताका अर्थ और मान सहित मनन करने तथा उसके अनुसार अपना जीवन बनाने के लिये प्राण पर्यन्त प्रयत्न करना चाहिये।
विषयानुक्रमणिका
1
भगवद्दर्शनकी उत्कण्ठा
2
चेतावनी
6
3
नवधा भक्ति
20
4
अर्थ और प्रभावसहित नाम जपका महत्त्व
71
5
ध्यानावस्थामें प्रभुसे वार्तालाप
79
परमात्माके लानसे परम शान्ति
109
7
भगवत्कृपा
123
8
शरणागतिका स्वरूप और फल
133
9
भगवान्की शरणसे परमपदकी प्राप्ति
145
10
गीताका रहस्य
149
11
प्रकृति पुरुषका विवेचन
163
12
समाधियोग
172
13
अष्टाङ्गयोग
183
14
विद्या, अविद्या और सम्प्रति, असम्भूतिका तत्त्व
196
15
आध्यात्मिक प्रश्रोत्तर
211
16
आचारण करनेयोग्य पचीस बातें
214
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