भूमिका
मुझे हर्ष है कि भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा मेरी कुछ चुनी हुई लघु कथाओं का यह सग्रह प्रकाशित हो रहा है । इन कथाओं के विषय में मेंरा कुछ कहना आवश्यक नहीं है। अपनी बात ये कथाए स्वयं कहती है । फिर भी मैं दो-एक बातों की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं।
पहली बात तो यह है कि इन कथाओं का किसी भी धर्म, विश्वास अथवा जातपात से कोई संबंध नहीं है। उनका पटल व्यापक है। उनमें अच्छा मनुष्य बनने की प्रेरणा है। ये उन भावनाओ को बढावा देती है, जो इन्सान को इन्सान से जोड़ती हैं और उनके बीच प्रेम तथा आत्मीयता का रिश्ता विकसित करती है।
दूसरी बात यह है कि इनके पढ़ने में अधिक समय नहीं लगता है, लेकिन प्रत्येक कथा को पढ़ने के बाद पाठक को उन मूल्यों के विषय में सोचने को विवश होना पड़ता है, जो मानव-जीवन की बुनियाद है। कहा जा सकता है कि ये कथाएं जाने-अनजाने उस एकता को साधित करती हैं, जिसकी आज बड़ी आवश्यकता है। लघु कथाओं का चलन नया नहीं है वे युगों से चली आ रही है, आगे भी चलती रहेंगी, वास्तव में ये कथाएं उन बातों को आसानी से कह देती हैं, जिन्हें बड़े-बड़े पोथे भी नही कह पाते।
ये कथाएं सबके काम की हैं । जो भी इन्हे पढेंगे, उन्हें लाभ ही होगा।
विषय-सूची
1
जन्म-भूमि की सुगंध
2
क्रोध चांडाल होता है
3
लड़के की समझदारी
5
4
संगत का फल
6
तोड़ो नहीं, जोड़ो
8
महान त्याग
10
7
पसीने की कमाई का आनंद
13
सबसे बड़ा धर्म
15
9
मां, मैं सन्यासी बनूंगा
17
रोना, क्यों?
19
11
स्वामी का वात्सल्य
21
12
अनुपम देशभक्ति
23
साधु का बोध
24
14
वृद्ध की सीख
26
मूल्यवान भेंट
28
16
अंतर की ललकार
30
शांति का मार्ग
32
18
कर्तव्य
34
दुर्लभ साधना
36
20
कथनी और करनी
38
करुणा और प्रेम
39
22
महानता का रहस्य
41
कोई बेगाना नहीं
43
सब पर दया
45
25
सच्चाई का ज्ञान
46
अपने को जानना
48
27
हिंसा की भूख
50
संत की महिमा
52
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