निवेदन
जीवनके विकासमें कथाओंका विशेष महत्त्व है। प्राचीन समयसे यह परम्परा रही है कि घरमें बूढ़ी दादी माँ बच्चोंको कहानी सुनाती हुई भोजन कराती हैं, बच्चे बड़े चावसे कहानी सुनते हैं। कभी-कभी तो कहानी सुनानेके लिये मचलते भी हैं। माताएँ अच्छी-अच्छी कथाएँ कहानीके रूपमें बच्चोंको सुनाती हैं, जिससे उनका ज्ञानवर्धन भी होता है और संस्कार भी बनते हैं।
कथा और कहानी कई प्रकारकी होती है। कुछ तो काल्पनिक होती हैं, जिससे प्राय: मनोरंजन और मनोविनोद मुख्यरूपसे होता है। कुछ कथाएँ ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक होती हैं, जिससे जीवनमें प्रेरणा मिलती है और संस्कार बनते हैं।
वास्तवमें कथाएँ अन्तस्तलका स्पर्श करती हुई चेतना और संस्कारशीलताको विकसित करती हैं। इनमें स्वाभाविक आकर्षण होता है। व्यक्ति इन्हें मनोयोगपूर्वक चावसे पड़ता है। अत: उसके मन-मस्तिष्कपर उन कथाओंका प्रभाव भी पड़ता है। बच्चे, के और युवा-सभी इससे लाभान्वित होते हैं।
कई वर्षों पूर्व 'कल्याण' के विशेषाङ्कके रूपमें 'सत्कथाङ्क' का प्रकाशन हुआ था, जिसमें पौराणिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कथाओंका संग्रह किया गया था। ये कथाएँ बड़ी सामयिक और प्रभावोत्पादक भी हैं। उन्हीं कथाओंका छोटा संग्रह यहाँ पुस्तकरूपमें प्रस्तुत किया जा रहा है । आशा है, पाठकगण इसे पसन्द करेंगे और लाभान्वित होंगे।
विषय-सूची
1
देवताओंका अभिमान और परमेश्वर
5
2
यमके द्वारपर
8
3
आपद्धर्म
12
4
गो-सेवासे ब्रह्मज्ञान
15
गाड़ीवालेका ज्ञान
18
6
एक अक्षरसे तीन उपदेश
20
7
कुमारी केशिनीका त्याग और प्रह्लादका न्याय
22
धीरताकी पराकाष्ठा
25
9
वह तुम ही हो
27
10
उसने सच कहा
29
11
उपासनाका फल
31
योग्यताकी परख
33
13
निष्कामकी कामना-इक्कीस पीढ़ियाँ तर गयीं
35
14
शरीरमें अनासक्त भगवद्भत्तको कहीं भय नहीं
37
समस्त लौकिक-पारलौकिक सुखोंकी प्राप्तिका साधन भगवद्भक्ति
40
16
पेट-दर्दकी विचित्र औषध
44
17
आर्त पुकार दयामय अवश्य सुनते हैं
46
भगवान् या उनका बल
49
19
श्रीकृष्णका निजस्वरूप-दर्शन
52
भगवान् सरल भाव चाहते हैं
55
21
गुरुसेवा और उसका फल
58
बड़ोंके सम्मानका शुभ फल
61
23
धर्मो रक्षति रक्षित:
64
24
धर्मनिष्ठ सबसे अजेय है
66
धर्मरक्षामें प्राप्त विपत्ति भी मंगलकारिणी होती है
70
26
गर्भस्थ शिशुपर माताके जीवनका गम्भीर प्रभाव पड़ता है
74
दूषित अन्नका प्रभाव
77
28
यह सच या वह सच?
79
संसारके सम्बन्ध भ्रममात्र हैं
82
30
संतानके मोहसे विपत्ति
84
शुकदेवजीका वैराग्य
88
32
तपोबल
91
कामासक्तिसे विनाश
93
34
सत्य-पालनकी दृढ़ता
97
ईमानदार व्यापारी
100
36
अर्जुनकी शरणागतवत्सलता और श्रीकृष्णके साथ युद्ध
102
विलक्षण दानवीरता
106
38
शोकके अवसरपर हर्ष क्यों
108
39
भगवती सीताकी शक्ति तथा पराक्रम
111
वीर माताका आदर्श
115
41
सच्ची क्षमा द्वेषपर विजय पाती है
119
42
घोर क्लेशमें भी सत्पथ पर अडिग रहनेवाला महापुरुष है
122
43
विचित्र आतिथ्य
126
मैत्री-निर्वाह
129
45
विश्वास हो तो भगवान् सदा समीप हैं
134
चोरीका दण्ड
139
47
आश्रितका त्याग अभीष्ट नहीं -धर्मराजकी धार्मिकता)
141
48
दुरभिमानका परिणाम
143
जुआरीसे राजा
147
50
आसक्तिसे बन्धन
149
51
सच्ची लगन क्या नहीं कर सकती
153
भगवत्कथा- श्रवणका माहात्म्य
155
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