आर्य संस्कृति के सहस्त्रों वर्ष पुराने प्राचीन आयामों के ह्रासोन्मुख चित्रफलक पर मुस्लिम संस्कृति के शनै: शनै: होने वाले अंत: प्रक्षेपों के कारन भारतीय जनजीवन ग्यारहवीं एवं बारहवीं शताब्दियों में नै करवटें लेने लगा था! राजनितिक बिखराव, आर्थिक ठहराव और सामाजिक भटकाव के परिणामस्वरूप रोमांचकारी बने हुए इस कालखण्ड का प्रतिबिम्बन तत्कालीन संस्कृत वांग्मयमें बड़े भव्य रूप में हुआ है! लेखक डॉ. संजय श्रीवास्तव ने इन्हीं भूले बिसरे सामाजिक चित्रों की सहायता से इन शताब्दियों के जनजीवन को विभिन्न शीर्षकों में उपनिबध्द करके इस पुस्तक में बड़ी पैनी दृष्टि से विश्लेषित किया है!
इलाहबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन इतिहास विभाग में वरिष्ठ प्रवक्ता के रूप मेंकार्यरत डॉ. संजय श्रीवास्तव ने केवल अपने विषय के सुस्पष्ट ज्ञान एवं गहन शोध के लिए जाने जाते है, अपितु भाषा के प्रवहमान सुगमता के लिए भी विख्यात है! मध्यकालीन इतिहास की जानकारी हेतु परंपरागत फ़ारसी साहित्य के स्रोतों के साथ ही साथ संस्कृत-साहित्य के स्रोतों का प्रयाप्त प्रयोग करके तथ्य का सर्वागीण चित्रण प्रस्तुत करना इनकी विशेषता है!
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