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भारतीय राजनीति एवं महिलाएं: Indian Politics and Women

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Item Code: HAH382
Author: Sewa Singh Bajwa
Publisher: Divyam Prakshan, Delhi
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9789391755683
Pages: 196
Cover: HARDCOVER
Other Details 9.5x6.5 inch
Weight 480 gm
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100% Made in India
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Book Description
पुस्तक परिचय

भारत में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले दोइम दर्जे का नागरिक मन जाता रहा है। महिलों का घोओंगत में रहिना व पर्दा प्रथा इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि सदीओं से उनको घर की चार दिवारी के अंदर काम काज करने व बच्चों का पालन पोषण करने का कार्य करने के लिए ही विविश किया जाता रहा है। सवतंत्रता के बाद भी महिलाओं की स्थिति में कोई ज्यादा सुधर नहीं हुआ। गत शताब्दी के नौवें दशक में पंचायती राज कानून में संशोधन के पश्चात् महिलाओं को गावों के पञ्च सरपंच बनने व शहिरों के स्थानीय निकायों में आरक्षण नसीब हुआ। लेकिन आरक्षण के बावजूद चुनाव में जितने वाली महिलाओं का दफ्तरी कार्य उनके बेटे अथवा पति अथवा पिता अथवा ससुर ही करते हैं। फिर वी संपन्न परिवारों से चुनाव की राजनीति में अपना लोहा मनवा कर बहुत सी महिलाओं ने अपनी ईन मानवी है। यह पुस्तक महिलाओं की राजनीती में भागेदारी सबंधी यथा संभव सूचना प्रदान करती है।

लेखक परिचय

प्रोफेसर बाजवा ने अपना पूरा जीवन शिक्षण, अनुसंधान और लेखन को समर्पित कर दिया है। लेखक ने अंग्रेजी, पंजाबी, शिक्षा और जनसंचार में स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल की है। उन्होंने गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। इसके अलावा उन्हें यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा पंजाबी में मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया है। उन्हें कॉमनवेल्थ वोकेशनल यूनिवर्सिटी, टोंगा द्वारा पत्रकारिता और जनसंचार में डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (डी.लिट.) की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है।। उनके शोध पत्र प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं और उन्होंने बहु-विषयक अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया है। इसके अलावा उन्होंने मीडिया और संबंधित विषयों पर 26 किताबें लिखी हैं और कुछ किताबें प्रकाशन के अंतिम चरण में हैं। उनके पास उत्तर भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में 28 वर्षों का शानदार शिक्षण अनुभव है। वर्तमान में लेखक चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसा (हरियाणा) के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।

इसके इलावा लेखक राष्ट्रीय समाचार पत्रों में उप-संपादक के पद पर भी कार्य कर चुके हैं। वह एक प्रसिद् रेडियो प्रस्तोता, मंच एंकर और उत्कृष्ट सार्वजनिक वक्ता हैं। लेखक के चार कविता संग्रह पंजाबी भाषा में भी प्रकाशित हो चुके है और वह एक प्रतिष्ठित गीतकार और फिल्म समीक्षक भी हैं। लेखक के मार्गदर्शन में कई शोधकर्ताओं ने अपना डॉक्टरेट शोध कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया है। एक साधारण अनपढ़ किसान परिवार में जन्म लेने वाले लेखक के मन में शिक्षा जगत में शिखर तक पहुंचने की चाहत जगी और शिक्षा के माध्यम से उन्होंने एक समृद् व्यक्तित्व का विकास किया। लेखक ने अपने जीवन में सफलताएँ अपनी कड़ी मेहनत के दम पर हासिल की हैं।

आमुख

भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है और यह लैंगिक समानता और लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक संकेत है। स्वतंत्रता-पूर्व युग से ही महिलाएं राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं और राष्ट्र को आकार देने में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है। महिलाओं के राजनीतिक सशक्तिकरण में प्रमुख मील के पत्थर में से एक 1993 में संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के माध्यम से स्थानीय सरकारी निकायों में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण की शुरूआत थी। इस आरक्षण प्रणाली, जिसे पंचायती राज के रूप में जाना जाता है, ने महिलाओं के लिए एक मंच प्रदान किया है। जमीनी स्तर पर निर्णय लेने में सक्रिय रूप से भाग लेना। तब से, हमने भारतीय राजनीति में कई शक्तिशाली महिला नेताओं का उदय देखा है। इंदिरा गांधी, जो 1966 में भारत की पहली महिला प्रधान मंत्री बनीं, से लेकर प्रतिभा पाटिल, जो 2007 से 2012 तक भारत की पहली महिला राष्ट्रपति रहीं, तक महिलाएं देश में सत्ता के सर्वोच्च पदों तक पहुंची हैं। आज भी भारत कि राष्ट्रपति एक आदिवासी महिला है।

हालाँकि, इन उपलब्धियों के बावजूद, राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं को अभी भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक बड़ी बाधा संसद और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की कमी है। हालाँकि महिलाएँ आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं, फिर भी राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व काफी कम है। महिला आरक्षण विधेयक के माध्यम से इस मुद्दे का समाधान करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें संसद और राज्य विधानमंडलों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। एक और चुनौती राजनीतिक दलों और समग्र समाज के भीतर पितृसत्तात्मक मानदंडों और लैंगिक पूर्वाग्रहों का कायम रहना है। राजनीति में महिलाओं को अक्सर भेदभाव, उत्पीड़न और असमान व्यवहार का सामना करना पड़ता है। एक अधिक समावेशी और सहायक वातावरण बनाना आवश्यक है जो महिलाओं को प्रतिक्रिया या पूर्वाग्रह के डर के बिना सक्रिय रूप से राजनीति में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करे।

राजनीति में प्रवेश के लिए महिलाओं को सशक्त बनाने में शिक्षा और जागरूकता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच महिलाओं को राजनीतिक परिदृश्य में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल से सुसज्जित करती है। राजनीतिक नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम और महिला राजनीतिक सशक्तिकरण अभियान जैसी पहल महिलाओं को नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करने में सहायक रही हैं। उन सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को दूर करना भी महत्वपूर्ण है जो महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में बाधा बनती हैं। आर्थिक सशक्तीकरण, संसाधनों तक पहुंच और वित्तीय सहायता यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि महिलाओं को राजनीति में समान दर्जा मिले। कार्यक्रम जो वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।

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