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वित्त वृद्धि: The Increase of Money

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Item Code: NZA732
Author: Mridula Trivedi, T. P. Trivedi
Publisher: Alpha Publications
Language: Hindi
Edition: 2012
ISBN: 9788192120843
Pages: 438
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 600 gm
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Book Description

ग्रन्थ-परिचय

सर्वाधिक प्रबल परिहार प्रावधान के परिज्ञान से संयुक्त, संपुष्ट, सारगर्भित, सार्वभौमिक, सार्वलौकिक, पूर्णत: प्रमाणित, प्रतिष्ठित एवं परीक्षित कृति है 'वित्त वृद्धि' सम्पति, सत्तर से भी अधिक वृहद्, सारगर्भित, प्रमाणित ग्रन्थों के रचनाकार श्रीमती मृदुला त्रिवेदी एवं श्री टीपी त्रिवेदी ने 'वित्त वृद्धि' से सम्बन्धित विविध परिहार अनुष्ठान, मंत्र साधना, आराधना एव अन्यान्य अद्भुत तथा अनुभूत अनुष्ठानों को इस कृति में संकलित, संपादित करके पाठकों के हितार्थ प्रस्तुत किया है। 'वित्त वृद्धि' को विषय की विविधता तथा विशिष्टता के आधार पर अग्रांकित बारह विभिन्न अध्यायों में व्याख्यायित एव विभाजित किया गया है-वित्तार्जन एवं समृद्धि हेतु कतिपय ज्ञातव्य तथ्य, गणपति साधनाएँ, कमलात्मिका तत्व एवं साधनाएँ, लक्ष्मी के प्रसन्नार्थ एकाक्षर मंत्र से लेकर सहस्रनाम स्तोत्र,विपुल वित्तार्जन हेतु विशिष्ट साधनाएँ, विस्तृत वित्तागमन हेतु कतिपय लघु साधनाएँ, यत्र शक्ति द्वारा वित्त वृद्धि, धनाधिपति कुबेर साधना, माता दुर्गा एव पद्मावती देवी की आराधना द्वारा धन प्राप्ति, वित्त वृद्धि एवं व्यापार समृद्धि, दीपावली पूजन प्रविधि, तथा वित्तार्जन हेतु सुगम सांकेतिक साधनाएँ।

वित्तार्जन एव वित्त संचय पर केन्द्रित 'वित्त वृद्धि' नामक इस कृति में वित्तोद्गम सम्बन्धी अन्यान्य अनुभव सिद्ध अनुष्ठान, मंत्र विधान तथा अनुभूत अनुसंधान आविष्ठित हैं जिनके सतर्क चयन, सविधि संपादन, श्रद्धा एवं समर्पणयुक्त प्रतिपादन द्वारा महालक्ष्मी की अपार कृपा असंदिग्ध है। महालक्ष्मी के पदपंकज का प्राजल पंचामृत सम्बन्धित यंत्रों तथा अनुभूत मंत्रों द्वारा सविधि निषेचन करने का परिश्रम-साध्य प्रयास 'वित्त वृद्धि' की सारगर्भिता का प्रमाण है। ज्योतिष एव मंत्रशास्त्र के गहन एव दुर्लभ रहस्य के सम्यक् सज्ञान हेतु 'वित्त वृद्धि' एक अमूल्य निधि है, जो प्रबुद्ध पाठकों के लिए अनुकरणीय, सराहनीय और संग्रहणीय है।

संक्षिप्त परिचय

श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश की प्रथम पक्ति के ज्योतिषशास्त्र के अध्येताओं एव शोधकर्ताओ में प्रशंसित एवं चर्चित हैं उन्होने ज्योतिष ज्ञान के असीम सागर के जटिल गर्भ में प्रतिष्ठित अनेक अनमोल रत्न अन्वेषित कर, उन्हें वर्तमान मानवीय संदर्भो के अनुरूप संस्कारित तथा विभिन्न धरातलों पर उन्हें परीक्षित और प्रमाणित करने के पश्चात जिज्ञासु छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करने का सशक्त प्रयास तथा परिश्रम किया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने देशव्यापी विभिन्न प्रतिष्ठित एव प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओ मे प्रकाशित शोधपरक लेखो के अतिरिक्त से भी अधिक वृहद शोध प्रबन्धों की सरचना की, जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि, प्रशंसा, अभिशंसा कीर्ति और यश उपलव्य हुआ है जिनके अन्यान्य परिवर्द्धित सस्करण, उनकी लोकप्रियता और विषयवस्तु की सारगर्भिता का प्रमाण हैं।

ज्योतिर्विद श्रीमती मृदुला त्रिवेदी देश के अनेक संस्थानो द्वारा प्रशंसित और सम्मानित हुई हैं जिन्हें 'वर्ल्ड डेवलपमेन्ट पार्लियामेन्ट' द्वारा 'डाक्टर ऑफ एस्ट्रोलॉजी' तथा प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट द्वारा देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद' तथा 'सर्वश्रेष्ठ लेखक' का पुरस्कार एव 'ज्योतिष महर्षि' की उपाधि आदि प्राप्त हुए हैं। 'अध्यात्म एवं ज्योतिष शोध सस्थान, लखनऊ' तथा ' टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी, दिल्ली' द्वारा उन्हे विविध अवसरो पर ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास ज्योतिष वराहमिहिर,ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्य विद्ममणि ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एव ज्योतिष ब्रह्मर्षि ऐसी अन्यान्य अप्रतिम मानक उपाधियों से अलकृत किया गया है।

श्रीमती मृदुला त्रिवेदी, लखनऊ विश्वविद्यालय की परास्नातक हैं तथा विगत 40 वर्षों से अनवरत ज्योतिष विज्ञान तथा मंत्रशास्त्र के उत्थान तथा अनुसधान मे सलग्न हैं। भारतवर्ष के साथ-साथ विश्व के विभिन्न देशों के निवासी उनसे समय-समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं श्रीमती मृदुला त्रिवेदी को ज्योतिष विज्ञान की शोध संदर्भित मौन साधिका एवं ज्योतिष ज्ञान के प्रति सरस्वत संकल्प से संयुत्त? समर्पित ज्योतिर्विद के रूप में प्रकाशित किया गया है और वह अनेक पत्र-पत्रिकाओं में सह-संपादिका के रूप मे कार्यरत रही हैं।

संक्षिप्त परिचय

श्री.टी.पी त्रिवेदी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी एससी. के उपरान्त इजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की एवं जीवनयापन हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद मे सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत होने के साथ-साथ आध्यात्मिक चेतना की जागृति तथा ज्योतिष और मंत्रशास्त्र के गहन अध्ययन, अनुभव और अनुसंधान को ही अपने जीवन का लक्ष्य माना तथा इस समर्पित साधना के फलस्वरूप विगत 40 वर्षों में उन्होंने 460 से अधिक शोधपरक लेखों और 80 शोध प्रबन्धों की संरचना कर ज्योतिष शास्त्र के अक्षुण्ण कोष को अधिक समृद्ध करने का श्रेय अर्जित किया है और देश-विदेश के जनमानस मे अपने पथीकृत कृतित्व से इस मानवीय विषय के प्रति विश्वास और आस्था का निरन्तर विस्तार और प्रसार किया है।

ज्योतिष विज्ञान की लोकप्रियता सार्वभौमिकता सारगर्भिता और अपार उपयोगिता के विकास के उद्देश्य से हिन्दुस्तान टाईम्स मे दो वर्षो से भी अधिक समय तक प्रति सप्ताह ज्योतिष पर उनकी लेख-सुखला प्रकाशित होती रही उनकी यशोकीर्ति के कुछ उदाहरण हैं-देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिर्विद और सर्वश्रेष्ठ लेखक का सम्मान एव पुरस्कार वर्ष 2007, प्लेनेट्स एण्ड फोरकास्ट तथा भाग्यलिपि उडीसा द्वारा 'कान्ति बनर्जी सम्मान' वर्ष 2007, महाकवि गोपालदास नीरज फाउण्डेशन ट्रस्ट, आगरा के 'डॉ मनोरमा शर्मा ज्योतिष पुरस्कार' से उन्हे देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषी के पुरस्कार-2009 से सम्मानित किया गया ' टाइम्स ऑफ एस्ट्रोलॉजी' तथा अध्यात्म एव ज्योतिष शोध संस्थान द्वारा प्रदत्त ज्योतिष पाराशर, ज्योतिष वेदव्यास, ज्योतिष वाराहमिहिर, ज्योतिष मार्तण्ड, ज्योतिष भूषण, भाग्यविद्यमणि, ज्योतिर्विद्यावारिधि ज्योतिष बृहस्पति, ज्योतिष भानु एवं ज्योतिष ब्रह्मर्षि आदि मानक उपाधियों से समय-समय पर विभूषित होने वाले श्री त्रिवेदी, सम्प्रति अपने अध्ययन, अनुभव एव अनुसंधानपरक अनुभूतियों को अन्यान्य शोध प्रबन्धों के प्रारूप में समायोजित सन्निहित करके देश-विदेश के प्रबुद्ध पाठकों, ज्योतिष विज्ञान के रूचिकर छात्रो, जिज्ञासुओं और उत्सुक आगन्तुकों के प्रेरक और पथ-प्रदर्शक के रूप मे प्रशंसित और प्रतिष्ठित हैं। विश्व के विभिन्न देशो के निवासी उनसे समय-समय पर ज्योतिषीय परामर्श प्राप्त करते रहते हैं।

पुरोवाक्

यस्यास्ति वित्तं नर: कुलीन:, पण्डित: श्रुतवान् गुणज्ञ:

एव वक्ता दर्शनीय: सर्वे गुणा: काञ्चनमाश्रयन्ति ।।

जो वित्तदान है वही कुलीन है वही पण्डित है वही वेद का ज्ञाता है वही श्रेष्ठ वक्ता है और वही दर्शनीय और रूपवान है इसलिए वित्तवान व्यक्ति सभी दृष्टि से प्रशसंनीय है तया सभी गुण, धन पर आश्रित होते हैं अत: वित्तसर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं महिमामण्डित है जिसके विद्यमान होने पर समस्त गुण धनवान व्यक्ति के अधीन हो जाते हैं किसी धनहीन व्यक्ति से, जिसको कई दिन से भोजन भी प्राप्त हुआ हो, उससे संस्कार, संस्कृति एवं भक्ति संबंधित बातें कीजिए और कहिए कि धन तो नश्वर है, धन लोलुपता विनाश का आरम्भ है तथा ईश्वर ही सत्य है तो उस धनहीन और भूखे व्यक्ति को आप पर अत्यन्त क्रोध आएगा वास्तविकता तो यह है कि धनवान व्यक्ति ही भक्ति और संस्कृति का उपदेश देते हैं ईश्वर के प्रति आस्था तथा जीवन की वास्तविकता पर प्रवचन करने वाले तथाकथित संत महात्मा एवं प्रवचनकर्ता वस्तुत: अत्यन्त समृद्ध होते हैं तथा देश एवं विदेश के विभिन्न नगरों में जाकर प्रवचन करने हेतु लाखों करोड़ों रुपये अनुदान लेते हैं तथा उनमें से अनेक विविध विकृतियों में संलिप्त भी होते हैं ।पेट भरा हो तभी उपदेश देना संभव हो पाता है और यही वित्त की महिमा का सर्वाधिक सशक्त प्रमाण है।

यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवा:

यस्यार्था: पुमांल्लोके यस्यार्था जीवति ।।

कहा भी गया है, संसार में धनवान व्यक्ति ही गुणवान स्वीकारा एवं पूजा जाता है। भाग्यशाली व्यक्ति ही धनवान, अर्थवान एवं वित्तवान होता है। उसके यहाँ अनेक गुणवान, प्रतिभावान, योग्य विद्वान, दार्शनिक, कलाकार, संगीतज्ञ, चित्रकार, कलाकार, शोधकर्ता अनुसंधानकर्ता आदि सेवारत रहते हैं अर्थ ही की सार्थकता तो समस्त संसार में सर्वविदित है।

हमने धनहीनता से अभिशप्त जीवन का संत्रास एवं संताप अनेक वर्षों तक स्वयं अनुभव किया है। उपरोक्त कथन की सत्यता से हम भलीभांति परिचित हैं जीवन का यथार्थ अत्यन्त कटु है। धन है तभी धर्म का अनुपालन सम्भव है। धन है तभी दूसरों का कल्याण करने का सामर्थ्य है। धन के अभाव में दानी हरिश्चन्द्र, दानी कर्ण, दानी राजा बलि का जो स्वरूप हमें ज्ञात है, वह कदाचित कदापि नहीं होता अर्थहीन व्यक्ति महर्षि दधीच, महर्षि वेदव्यास अथवा महर्षि वाल्मीकि बन सकता है, शास्त्रों की संरचना कर सकता है परन्तु व्यावहारिक जीवन में वित्तवान व्यक्ति ही गुणवान, विद्वान, प्रशंसनीय पूजनीय होता है जीवन की इस वास्तविकता को असत्य नहीं ठहराया जा सकता कि धनहीनता से बड़ा कोई अन्य कष्ट नहीं है असाध्य और वीभत्स वेदना से आक्रान्त व्यक्ति के पास यदि चिकित्सा कराने हेतु धन हो तो उसकी पीड़ा की शब्दों में अभिव्यक्ति सम्भव नहीं है।

अहो नु कष्ट सततं प्रवासस्ततोऽति कष्ट: परगेहवास:

कष्टाधिका नीचजनस्य सेवा ततोऽति कष्टा धनहीनता ।।

दुःख का विषय है जब वित्तवान व्यक्ति वित्तहीन हो जाता है तो उसके सगे सम्बन्धी एवं सहयोगी मित्र आदि सभी शनैः-शनै: उसका साथ छोड़ देते हैं

सत्यं मे विभवनाशकृतास्ति चिन्ता

भाग्यक्रमेण हि धनादि भवन्ति यान्ति ।।

एतलु मां दहति नष्टधनाश्रयस्य

यत् सौहदादपि जन: शिथिलीभवन्ति ।।

(मृच्छकटिक) भूखा व्यक्ति व्याकरण के अनुकरण मात्र से अपनी भूख नहीं मिटा सकता उसी प्रकार प्यासा व्यक्ति, काव्यरस से तृप्त नहीं हो सकता विद्याध्ययन से किसी के कुल या कुटुम्ब का अनुपालन नहीं होता अत: वित्तार्जन की अनिवार्यता, उपलब्धता अपरिहार्य है जिसके अभाव में धर्म का आराधन तक संभव नहीं है अत: वित्त महिमा एवं अनिवार्यता के समक्ष कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगता अशिक्षित व्यक्ति पर यदि लक्ष्मी कृपालु होती है तो उसके अवगुण और मूर्खता भी निन्दा के स्थान पर प्रशंसा के स्वर्णिम सरोवर में अवगाहन करते हैं सद्मार्ग से अर्जित वित्त ही सृष्टि की दृष्टि में स्नेह, सम्मान, समृद्धि एवं सुयश का आधार स्तम्भ है और यह प्रशंसनीय है अत: विपुल वित्तार्जन और विविध विधाओं द्वारा परोपकार, धर्म एवं समाज के उत्थान हेतु उसका उपयोग, नितान्त प्रशंसनीय एवं वंदनीय है हमारे हृदय के इन्हीं उद्गारों ने ही हमें वित्तार्जन एवं वित्त संचय पर केन्द्रित विविध मंत्र स्तोत्र, सूक्त, अनुष्ठान एवं प्रयोग आदि पर उपयुक्त एवं अनुभूत अद्भुत सामग्री का लेखन एवं संपादन करके साधकों के लिए उपयोगी कृति की संरचना हेतु विवश किया

इस अत्यन्त महत्वपूर्ण कृति को हमने 'वित्त वृद्धि' से नामांकित किया है जिसमें अपने चालीस वर्षो से भी अधिक के अध्ययन, अनुभव, अनुसंधान और संदर्भित संज्ञान को समेट कर वैज्ञानिक धरातल और व्यावहारिक जन्मांगों पर बारंबार परख कर अन्यान्य, शास्त्रानुमोदित अनुष्ठान तथा प्रयोग प्रविधि सम्पादित की है। 'वित्त वृद्धि' में वित्तार्जन में निरन्तर विस्तार, प्रसार एवं व्यवसाय में अप्रत्याशित विकास तथा आय एवं लाभ में अथाह वृद्धि से सम्बन्धित एवं समस्त कामनाओं की संसिद्धि हेतु समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए भिन्न-भिन्न स्तर के अनुष्ठान जिन्हें प्रयोग के नाम से भी शब्दांकित किया जाता है, संकलित, संयोजित एवं सम्पादित किये गए हैं एक ही औषधि सभी को व्याधिमुक्त नहीं कर पाती है इसीलिए एलौपैथी में ही नहीं आयुर्वेद, होम्योपैथी आदि चिकित्सा-पद्धतियों में भी अनेक औषधियाँ प्रचलित हैं जिनके सेवन का विधान भी पृथक् है। उसी प्रकार से वित्तार्जन के संवर्द्धन की कामना को सम्पुष्ट करने वाले मंत्र शास्त्र के विविध विधान, विभिन्न शास्त्रों में व्याख्यायित, विवेचित तथा व्यवस्थित हैं, जिन्हें 'आध्यात्मिक चेतना के अम्युदय के साथ भक्तिभावना और समर्पण, श्रद्धा, आस्था और विश्वास सहित प्रतिपादित करने पर, अथाह, चल और अचल सम्पत्ति, सुख, समृद्धि और सम्पन्नता के सम्यक् साधन सुगमता पूर्वक उपलब्ध होते हैं 'वित्त वृद्धि' में जहाँ त्रिपुरसुन्दरी महालक्ष्मी के नैमित्तिक अनुष्ठान के सम्पादन की शास्त्रोक्त विधि का उल्लेख है, वहीं सुगम मंत्रसाधनाएँ सांकेतिक साधनाएँ, शाबर मंत्रसाधनाएँ, लक्ष्मी के प्रसन्नार्थ अनुभूत स्तोत्रपाठ, वित्तप्रदाता यंत्र की संरचना एवं साधना तथा तान्त्रिक परिहार के साथ, कतिपय अनुभूत अनुष्ठान का समायोजन किया गया है प्रबुद्ध पाठकों के प्रत्येक वर्ग के लिए लक्ष्मी-साधना का सुगम मार्ग प्रशस्त करने की चेष्टा की गयी है जिसका अनुसरण, अनुकरण, अनुपालन साधक की समृद्धि की संसिद्धि करता है। वित्त की महिमा का आख्यान सुगम है परन्तु वित्तोपार्जन, भाग्य की प्रबलता पर आश्रित है। भाग्य की प्रबलता, पूर्वजन्म के संचित पुण्य कर्मो द्वारा निर्मित होती है इस तथ्य से कोई भी अपरिचित नहीं है यदि पूर्व पुण्य क्षीण हो जाएँ और वित्तोपार्जन का मार्ग अवरुद्ध हो रहा हो, तो महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित वेदों में सन्निहित विभिन्न व्यवस्थाओं के अनुकरण से क्षीण पुण्य का उत्तरोत्तर उत्थान सजीव हो उठता है परन्तु इसके विधान का संज्ञान अनिवार्य है, जो सुख, समृद्धि, सम्पन्नता, सम्पत्ति एवं सुयश के सुदृढ़ सोपान का सृजन करता है निर्धनता से बढ़कर कोई अभिशाप नहीं होता है वित्त के अभाव के कारण कुंठा, अपमान और अनादर ने कितने ही अवसरों पर ज्ञानी व्यक्तियों को भी विचलित किया है ज्ञानामृत स्वयं को उल्लसित करने का साधन है जबकि वित्त विश्व में अपने ज्ञान के प्रसार, विस्तार और विकास के लिए अनिवार्य है। ज्ञान-विज्ञान का विस्तार भी विश्वकत्याण एवं मानवता के उत्थान हेतु अपेक्षित है। अत: वैभव तथा विलासिता के लिए भी हो, तो भी अपने अनुभव, अनुसंधान से उत्पन्न आध्यात्मिक चेतना के उत्थान एवं विस्तार हेतु वित्त की महिमा को स्वीकृति प्रदान करना अपेक्षित है विज्ञान सम्बन्धी प्रयोगों और परीक्षणों को भी वित्ताभाव की स्थिति में प्रमाणित नहीं किया जा सकता। कदाचित् कोई अन्वेषण वित्तविहीनता की दशा में सही आकार ग्रहण नहीं कर मकना और ही उसका विस्तार जन-कल्याण की कामना और मानवता के सृजन हेतु किया जा सकना है। वित्तवान व्यक्तियों के अतृप्त उद्देश्यों एवं स्वप्नों को साकार स्वरूप प्रदान करने के माथ-साथ सामान्य जन के आर्थिक उत्थान का विस्तृत अभिनव अभिज्ञान और अनुसंधान 'वित्त वृद्धि' में समाविष्ट है।

 

अनुक्रमणिका

 

अध्याय-1

अध्याय- वित्तार्जन एवं समृद्धि हेतु कतिपय ज्ञातव्य तथ्य

1-16

अध्याय-2

अध्याय- गणपति साधनायें

 

2.1

उच्छिष्ट गणपति प्रयोग

17

2.2

उच्छिष्ट गणपति का अन्य प्रयोग

18

2.3

शक्ति विनायक मन्त्र

20

2.4

लक्ष्मी प्रदायक गणपति स्तोत्र

21

2.5

लक्ष्मी विनायक मन्त्र

22

2.6

लक्ष्मी विनायक प्रयोग

23

2.7

ऋणमोचन महागणपति-स्तोत्र

27

2.8

ऋणहर्ता गणपति साधना

29

2.9

ऋणहर धनप्रद मंगलस्तोत्र

31

अध्याय-3

कमलात्मिका तत्व एवं साधनायें

 

3.1

कमलात्मिका तत्व: संदर्शन एवं साधना

33

3.2

त्रैलोक्य-मंगल कमला-स्तोत्र

35

3.3

कमला अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

37

3.4

आपदुद्धारक श्रीकमला-स्तोत्रम्

39

3.5

श्री कमला कवच

43

3.6

श्रीलक्ष्मी-कवचम्

48

3.7

श्रीमहालक्ष्मी स्तोत्रम्

51

अध्याय-4

लक्ष्मी के प्रसन्नार्थ एकाक्षर मंत्र से लेकर सहस्रनाम स्तोत्र

 

4.1

एकाक्षर लक्ष्मी मंत्र साधना विधान

55

4.2

चतुराक्षर लक्ष्मी बीज मन्त्र प्रयोग

56

4.3

नौ अक्षर का सिद्धलक्ष्मी मन्त्र

58

4.4

महालक्ष्मी के प्रसन्नार्थ दशाक्षर मंत्र साधना

58

4.5

महालक्ष्मी की प्रसन्नता हेतु एकादशाक्षर मंत्र साधना

59

4.6

द्वादशाक्षर महालक्ष्मी मंत्र प्रयोग

60

4.7

सत्ताईस अक्षर के कमला मंत्र के जप द्वारा लक्ष्मी की प्रसन्नता प्राप्ति

62

4.8

लक्ष्मी जी के प्रसन्नार्थ दिव्य अनुभूत स्तोत्र

65

4.9

श्रीलक्ष्मीस्तोत्रम्

66

4.1

लक्ष्मी स्तोत्रम

70

4.11

श्री लक्ष्मी स्तोत्र

74

4.12

परशुरामकृत लक्ष्मीस्तोत्र

75

4.13

महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र

78

4.14

श्री महालक्ष्मी अष्टकम् स्तोत्र

79

4.15

महालक्ष्मीस्तुति:

81

4.16

श्रीकमला स्तुति

84

4.17

श्रीसिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र

92

4.18

लक्ष्मी पंजर स्तोत्र

94

4.19

अष्टोत्तर शतनाम महालक्ष्मी उपासना

99

4.2

अष्टोत्तर शतनाम-महालक्ष्मी माला मंत्र

102

4.21

श्रीलक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्र

105

4.22

श्री लक्ष्मी-स्तोत्रम् (भगवती लक्ष्मी के बारह नाम)

122

अध्याय-5

विपुल वित्तार्जन हेतु विशिष्ट साधनाएँ

 
 

धन, समृद्धि, सम्पन्नता, सम्पत्तिप्रदायक महालक्ष्मी प्रयोग

123

 

लक्ष्मी कवच

128

 

धनदायक्षिणी प्रयोग और कवच

131

 

दक्षिण लक्ष्मी स्तोत्र

139

 

कमलगट्टा माला प्रयोग

140

 

श्री सूक्त कतिपय विशिष्ट ज्ञातव्य

140

 

त्वरित एवं प्रचुर फलप्रदाता साधना दुर्गे स्मृता एवं लक्ष्मी मन्त्र आराधना

155

 

दुर्गेस्मृता मंत्र द्वारा संपुटित श्रीसूक्त का पाठ-विधान

158

 

बीजयुक्त लक्ष्मीसूक्त

161

 

कनकधारा स्तोत्र

164

 

महालक्ष्मी के प्राशीष प्रसाद तथा शीघ्र प्रसन्नता हेतु दक्षिणवर्ती शंख प्रयोग विधान एवं महत्ता

170

 

लक्ष्मी-नारायणहृदयस्तोत्रम्

 
 

लक्ष्मीनारायण संदर्भित महालक्ष्मी मंत्र

 
 

लक्ष्मीनारायण मंत्र

 
 

लक्ष्मी लहरी

 

अध्याय-6

विस्तृत वित्तागमन हेतु कतिपय लघु साधनाएँ

 

6.1

वृत्ति द्वारा विपुल वित्त प्राप्त करने का सद्मार्ग

209

6.2

माता लक्ष्मी का स्वप्न दर्शन और कृपा की अनुभूति

211

6.3

दीपावली एवं महालक्ष्मी गायत्री मंत्र जप विधान

212

6.4

माँ लक्ष्मी के पुत्रों से धन प्राप्ति की प्रार्थना

214

6.5

कुटुम्ब के उत्थान तथा समृद्धि के वरदान हेतु मंत्र अनुष्ठान

214

6.6

स्थायी लक्ष्मी की प्रसत्रता प्राप्त करने हेतु लघु साधना

215

6.7

स्थायी समृद्धि तथा माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति हेतु मंत्र अनुष्ठान

216

6.8

ऋण की पुन: प्राप्ति हेतु मंत्र

216

6.9

लुप्त लक्ष्मी के पुन: आगमन हेतु

217

6.1

परिश्रम का समुचित लाभ प्राप्ति हेतु

218

6.11

लक्ष्मी जी की स्थायी कृपा प्राप्ति हेतु

218

6.12

समृद्धि तथा यश संवर्द्धन हेतु मंत्र अनुष्ठान

219

6.13

सिद्ध लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मन्त्र

220

6.14

बारह राशियों के लक्ष्मी प्राप्ति हेतु अनुभूत मंत्र प्रयोग

221

6.15

अप्रत्याशित, अपेक्षित अर्थ की आकांक्षा आपूर्ति हेतु श्रीमंजुघोष मंत्र साधना विधान

224

6.16

श्री अन्नपूर्णा मंत्र-जप

225

6.17

वाणिज्य लक्ष्मी मंत्र

225

6.18

अपार धन प्राप्ति हेतु श्रीमद्भागवत् पुराण का विलक्षण अनुष्ठान

225

6.19

आभायुक्त शालिग्राम प्रयोग

226

6.2

आर्थिक सम्पन्नता

227

6.21

धनागमन में स्थायित्व एवं वृद्धि हेतु

228

6.22

वसुधा लक्ष्मी मन्त्र

 

6.23

अतुल लक्ष्मी प्राप्ति प्रयोग

 

6.24

लक्ष्मीदाता मंत्र

 

6.25

ऋणमुक्ति हेतु वैदिक व अन्य मंत्र

 

6.26

शीघ्र लक्ष्मीप्रदाता मन्त्र

 

6.27

लक्ष्मी अनुग्रह प्राप्ति

 

6.28

अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति

 

6.29

श्री लक्ष्मी जी से सम्बन्धित अन्य मंत्र

 

6.3

अन्य कुबेर मंत्र

 

6.31

ऋण, व्याधि, दुर्घटना, अकाल मृत्यु से रक्षा के उपरांत समृद्धिशाली जीवन से अभिषिक्त होने हेतु साधना

 

6.32

व्यवसाय वृद्धि तन्त्र

 

अध्याय-7

यन्त्र शक्ति द्वारा वित्त वृद्धि

 

7.1

विशिष्ट यन्त्र

235

7.2

यंत्र संरचना के ज्ञातव्य गूढ़ सत्य तथ्य

239

7.3

यति, गति एवं यंत्र संरचना

244

7.4

यंत्र लेखन प्रक्रिया एवं प्रविधि

247

7.5

यंत्र संदर्भित मंत्र जप विधान

251

7.6

जप माला के प्रकार एवं उपयोगिता अनुकरणीय तथ्य

252

7.7

साधना काल ज्ञातव्य तथ्य

253

7.8

माला संस्कार रहस्य और परिहार

253

7.9

जप माला और विधान

253

7.1

आसन कतिपय महत्त्वपूर्ण बिन्दु

256

7.11

बीसा यंत्र

256

7.12

साधना विविध विधान

257

7.13

प्रमुख धनप्रदाता यंत्र

261

1

श्री गणेश यंत्र

261

2

उच्छिष्ट गणपति नवार्ण यंत्र-मंत्र

262

3

महागणपति मंत्र व यंत्र

263

4

त्रैलोक्यकहनकर गणेश मंत्र व यंत्र

266

5

शक्ति विनायक चतुरक्षर मंत्र व यंत्र विधान

270

6

श्री गणेश पूजा यन्त्र (1)

274

7

श्री गणेश पूजा यंत्र (2)

276

8

धन-प्राप्ति के लिए लक्ष्मी विनायक यंत्र

279

9

श्रीमहालक्ष्मीविशांक-यत्र विधानम्

280

10

महालक्ष्मी यंत्र

284

11

महालक्ष्मी

287

12

ज्येष्ठा लक्ष्मी यन्त्र तथा मन्त्र

289

13

लक्ष्मी यंत्र तथा मंत्र

290

14

कुबेर यंत्र व मंत्र

291

15

श्री लक्ष्मी पूजा यंत्र

293

16

लक्ष्मी प्रदायक महासिद्ध यंत्र

296

17

सर्वसिद्धिदायक महालक्ष्मी यंत्र

297

18

बाला त्रिपुरा का लक्ष्मीप्रद बीसा यंत्र

298

19

लक्ष्मीप्रद सिद्ध बीसा यंत्र

299

20

लक्ष्मीदाता बीसा यंत्र

300

21

लक्ष्मीप्रद सर्वतोभद्र-यंत्र ()

300

22

लक्ष्मीदाता पाँच सौ का यंत्र

301

23

लक्ष्मी लाभकारी ह्रींकार यंत्र

302

24

नवकोष्ठक बीसा यंत्र

302

25

धनदायक यंत्र

303

26

लक्ष्मी स्तोत्र

304

27

श्री धनदा देवी पूजा यंत्र

305

28

श्री अन्नपूर्णा भैरवी पूजा यंत्र''

308

29

व्यापार-वृद्धि हेतु लाभदायक यंत्र

310

30

व्यापार वृद्धि कर दो सौ का यंत्र

311

31

चौवन का यन्त्र

312

32

'पंचदशी यंत्र' से भगवती लक्ष्मी की कृपा-प्राप्ति

313

33

श्री हनुमत बीसा यन्त्र

314

34

महासिद्ध श्रीदत्तात्रेय यन्त्र

314

35

वांछित लक्ष्मीप्रद हस्ती यन्त्र

315

36

लक्ष्मी प्रदानकारी अड़सठिया यन्त्र

316

37

स्वास्थ्यवर्धक तथा लक्ष्मी-प्रदायक चौंतीसा यन्त्र

317

38

बालाजी का यन्त्र

317

39

कृषि में वृद्धि हेतु

318

40

लक्ष्मी प्राप्ति के लिए आम का बन्दा लाने की विधि

319

41

धनधान्य समृद्धि के लिए पलाश का बन्दा

319

42

भूमिगत धन प्राप्ति के लिए गूलर का बन्दा

320

43

धनधान्य अक्षय रखने के लिए इमली का बन्दा

320

44

'सौन्दर्य-लहरी' के 'यन्त्र-प्रयोग'

320

7.14

स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र एवं यंत्र द्वारा धन प्राप्ति

323

अध्याय-8

धनाधिपति कुबेर साधना

327-338

अध्याय-9

माता दुर्गा एवं पद्मावती देवी की आराधना द्वारा धन प्राप्ति

 

9.1

माता दुर्गा की आराधना द्वारा धन प्राप्ति

339

9.2

पद्मावती देवी की साधना धन प्राप्ति हेतु आराधना

342

अध्याय-10

वित्त वृद्धि एवं व्यापार समृद्धि

347-354

अध्याय-11

दीपावली पूजन प्रविधि

 

11.1

दीपावली एवं समृद्धि पथ

355

11.2

दीपावली पूजन प्रविधि

356

11.3

दीपावली पर्व पूजन

362

अध्याय-12

वित्तार्जन हेतु सुगम सांकेतिक साधनाएँ

395-404

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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