नम्र-निवेदन
हिंदू-संस्कृति सदैव धर्मसे अनुप्राणित रही है। इस संस्कृतिमें मानव-जीवनकी प्रत्येक किया-कलाप, आचार-व्यवहार धर्मसे अनुशासित है। गर्भाधानसे लेकर मृत्युपर्यन्त मानव-जीवनके सभी कर्म शास्त्रोक्त विधानसे नियन्त्रित रहे हैं। ऐसा होनेपर मानव-जीवन पूर्ण रूपसे सुख एवं शान्तिमय हो सकता है । विवाह-संस्कार हिंदू- संस्कृतिके षोडशसंस्कारोंमें एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है। इस संस्कारके बाद ही पति-पत्नी एकप्राण होकर गृहस्थाश्रममें प्रवेश करते हैं। धर्मानुशासित गृहस्थाश्रम अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्षके साथ ही मानव-जीवनका पंचम पुरुषार्थ भगवत्प्राप्ति करानेवाला है-ऐसी हमारी हिंदू-संस्कृति है । इसके विपरीत आधुनिक विचारधाराकी माननेवाले विवाहको केवल इन्द्रियोंकी तृप्ति और भोगका साधनमात्र ही मानने लगे हैं। यही कारण है आजकलका दाम्पत्य-जीवन सुख- शान्तिमय होनेके स्थानपर दुःख-कलहमय होता जा रहा है। न तो पुरुष ही गृहस्थाश्रमके महत्त्वको समझ रहा है और न नारी ही । गृहस्थाश्रमरूपी रथके पति एवं पत्नी दो पहिये हैं। इन दोनों पहियोंपर ही यह रथ चलता है। जहाँ एक पहियेकी खराबीसे ही रथकी गतिमें अवरोध उत्पन्न हो जाता है, वहाँ यदि दोनों ही पहिये खराब हुए तो रथका चलना ही कठिन हो जाता है । संयम एवं मर्यादाके पद्यपर चलता हुआ गृहस्थरूपी रथ शीघ्र ही अपने गन्तव्यपर पहुँच सकता है।
श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, आदि-सम्पादक 'कल्याण'से हम सभी परिचित हैं। हिंदू-संस्कृति उन संतकी ऋणी है। हिंदू-संस्कृतिको जीवित रखनेके लिये ही उनका जीवन था। श्रद्धेय श्रीभाईजीके जीवनमें अनेक आदर्शोंका एक साध समावेशमिलता है । वे एक परम विशुद्ध संत, अप्रतिम भगवद्विश्वासी, अनन्य भक्त, उत्कृष्ट कर्मयोगी, कुशलतम सदव्यवहारी, मूर्धन्य विद्वान्, साहित्यसेवी, कट्टर सनातनी, आदर्श गुरुभक्त, आदर्श गो-भक्त, आदर्श ब्राह्मण-भक्त, आध्यात्मिक प्रेरणा-स्त्रोत, महान् समन्वयकारी, अनुपम सहनशील, स्नेहशील, मधुरभाषी, सफल सम्पादक, श्रेष्ठ कवि थे। इन सब गुणोंका किसी एक ही ब्यक्तिमें समावेश होना अत्यन्त कठिन होता है परंतु यही विलक्षणता थी श्रीभाईजीके जीवनकी । इन सब गुणोंकी चरम-सीमा थी-उनका श्रीराधामाधव- प्रेमकी चरम अवस्था महाभाव दशामें प्रवेश । परमोज्ज्वल त्यागमय श्रीराधामाधव-प्रेमका ही सदैव उन्होंने वितरण किया । इतना होते हुए भी वे एक आदर्श गृहस्थ थे।
इस पुस्तकमें श्रद्धेय श्रीभाईजीद्वारा लिखित आदर्श हिंदू- विवाहका स्वरूप, उसका महत्त्व, पति-पत्नीके कर्तव्य, धर्म, व्यवहार आदि विषयके लेखों, पदों एवं पत्रों आदिका संग्रह है। इसमें पति-पत्नीके आपसी मत-भेदोंको दूर करनेके सरलतम सूत्र दिये गये हैं। दहेज, तलाक आदि जैसे महत्त्वपूर्ण विषयके लेखोंको भी इसमें सम्मिलित कर लिया गया है। श्रद्धेय श्रीभाईजीद्वारा निर्दिष्ट इन सूत्रोंके अनुसार चलनेसे दाम्पत्य-जीवन निश्चितरूपसे सुखपूर्ण एवं आदर्श हो सकता है। ये सभी सूत्र बहुत उपयोगी एवं मननीय हैं। दम्पतिमात्रके सर्वांगीण लाभके लिये ही यह विविध विषयोंका छोटा-सा संकलन पुस्तिकारूपमें प्रकाशित किया जा रहा है। सभीको इससे लाभ उठाना चाहिये।
विषय
1
दाम्पत्य-जीवन
9
2
वर-वधूका सुखमय मार्ग
12
3
सुखमय विवाहके साधन
14
4
दाम्पत्य-सुख कैसे प्राप्त हो?
5
भारतीय नर-नारीका सुखमय
गृहस्थ (कविता)
16
पतिके प्रति-
6
पतिके कर्तव्य
17
7
पतिका धर्म
18
8
पोतका व्यवहार
21
गृहस्थाश्रम बेड़ी नहीं है
22
10
पत्नीका त्याग सर्वथा अनुचित है
24
11
पत्नीका परित्याग कदापि उचित नहीं
28
पत्नीके त्यागकी बात कभी न सोचें
34
13
पत्नीपर व्यर्थ संदेह मत कीजिये
36
पत्नीके अपराधको क्षमा करें
37
15
साध्वी पत्नीका त्याग बड़ा पाप है
41
पत्नीको मारना महापाप है
43
पत्नीका सुधार
44
पर-स्त्रीका चरणस्पर्श भी न करें
45
19
पत्नीसे अनुचित लाभ न उठाइये
46
20
पति अपना धर्म सोचे
50
पति-धर्म (कविता )
52
पत्नीके प्रति-
पत्नीका धर्म
23
पत्नीका व्यवहार
53
पत्नीके कर्तव्य
54
25
पत्नी-धर्म
55
26
नारीके भूषण
56
27
नारीके दूषण
65
भारतीय नारीका स्वरूप और उसका दायित्व
72
29
नारीका गुरु पति ही है
80
30
स्वतन्त्र विवाह प्रेम नहीं, मोह है
82
31
स्वेच्छावरण हिंदू-संस्कृतिसे अवैध
84
32
पतिव्रता और बलात्कार
86
33
दुष्ट पतिको पत्नी क्या समझे
87
सती-चमत्कार
89
35
आत्महत्याकी बात न सोचें
94
अविवाहिता रहना उचित नहीं
96
घरसे निकलकर भागनेकी बात न सोचें
97
38
पतिका अत्याचार और उसका उपाय
98
39
पतिका दुर्व्यवहार और उसका उपाय
99
40
पतिका दुराचार और उसका उपाय
100
स्वभावसुधार कैसे करें
42
विवाहविच्छेद ( तलाक) सर्वथा अनुचित
101
विविध-
दहेजप्रथा और हमारा कर्तव्य
111
नारी-निन्दाकी सार्थकता
सुधारके नामपर संहार
112
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