शान्ति कैसे मिले? (लोक परलोक का सुधार) - How to Find Peace (Improving This World and the Next)

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Item Code: GPA110
Author: Hanuman Prasad Poddar
Publisher: Gita Press, Gorakhpur
Language: Sanskrit Text With Hindi Translation
Edition: 2013
Pages: 272
Cover: Paperback
Other Details 8.0 inch X 5.5 inch
Weight 220 gm
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Book Description
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निवेदन

 

भाईजी (श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार) के व्यक्तिगत पत्रोंके (जो 'कामके पत्र' शीर्षकसे 'कल्याण' में प्रकाशित होते हैं और जिनको लोग बड़ी उत्सुकतासे पढ़ते हैं) तीन भाग पाठकोंकी सेवामें जा चुके हैं।तीसरा भाग अभी कुछ ही दिनों पूर्व प्रकाशित हुआ आ । पुस्तकका आकार बहुत बड़ा न हो इसीलिये इस चौथे भागको अलग छापा है । पाँचवें भागके भी शीघ्र प्रकाशित होनेकी आशा है ।

पूर्वप्रकाशित संग्रहोंकी भांति इसमें भी पारमार्थिक एवं लौकिक समस्याओंका अत्यन्त सरल और अनूठे ढंगसे विशद समाधान किया गया है । आजकल जब कि जीवनमें दुःख, दुराशा, द्वेष और दुराचार बढ़ता जा रहा है तथा सदाचारविरोधी प्रवृत्तियोंसे मार्ग तमसाच्छन्न हो रहा है, तब सच्चे सुखशान्तिका पथप्रदर्शन करनेवाले इन स्नेहापूरित उज्वल ज्योति दीपकोंकी उपयोगिताका मूल्य आँका नहीं जा सकता ।

पहले के भागोंसे परिचित पाठकोंसे तो इनकी उपयोगिताके विषयमें कुछ कहना ही नहीं है । पुस्तक आपके सामने ही है । हाथ कंगनको आरसी क्या?

 

विषय

1

भगवान्के भजनकी महिमा

7

2

भोग मोक्ष और प्रेम सभीके लिये भजन ही करना चाहिये

11

3

भजन साधन और साध्य

17

4

भजनके लिये श्रद्धापूर्वक प्रयत्न करना चाहिये

19

5

भजनसे ही जीवनकी सफलता

21

6

भवसागरसे तरनेका उपाय एकमात्र भजन

24

7

लगन होनेपर भजनमें कोई बाधा नहीं दे सकता

25

8

नामसे पापका नाश होता है

28

9

नामनिष्ठाके सात मुख्य भाव

31

10

श्री भगवान् ही गुरु हैं भगवन्नामकी महिमा

34

11

भगवन्नामका महत्त्व

37

12

जप परम साधन है

38

13

भगवान्के नामोंमें कोई छोटा बड़ा नहीं

39

14

भवरोगकी दवा

40

15

भगवच्चिन्तनसे बेड़ा पार

41

16

कीर्तन और कथासे महान् लाभ

42

17

भगवान् के लिये अभिमान छोड़ो

43

18

महान् गुण भक्तिसे ही टिकते हैं

46

19

भगवत्कृपासे भगवत्प्रेम प्राप्त होता है

49

20

श्रीगोपांगनाओंकी महत्ता

50

21

गोपीभावकी प्राप्ति

54

22

प्रेममें विषयवैराग्यकी अनिवार्यता

56

23

प्रियतम प्रभुका प्रेम

57

24

सिद्ध सखीदेह

59

25

प्रेमास्पद और प्रेमी

60

26

प्रेम मुँहकी बात नहीं है

61

27

श्रीकृष्ण भक्तिकी प्राप्ति और कामक्रोधके नाशका उपाय

63

28

प्रियतमकी प्राप्ति कण्टकाकीर्ण मार्गसे ही होती है

66

29

गीतगोविन्दके अधिकारी

67

30

नि:संकोच भजन कीजिये

69

31

सभी अभीष्ट भजनसे सिद्ध होते हैं

72

32

भगवद्भजन सभी साधनोंका प्राण है

76

33

जीव भजन क्यों नहीं करता?

77

34

भजनकी महत्ता

82

35

श्रेय ही प्रेय है

83

36

आत्मविसर्जनमें आत्मरक्षा

87

37

मनुष्य जीवनका उद्देश्य

89

38

भगवत् सेवा ही मानव सेवा है

94

39

मन इन्द्रियोंकी सार्थकता

98

40

प्रतिकूलतामें अनुकूलता

99

41

भगवान्का मंगल विधान

99

42

भविष्यके लिये शुभ विचार कीजिये

101

43

परिस्थितिपर फिरसे विचार कीजिये

103

44

दूसरेके नुकसानसे अपना भला नहीं होगा

108

45

किसीको दु:ख पहुँचाकर सुखी होना मत चाहो!

109

46

बदला लेनेकी भावना बहुत बुरी है

117

47

निन्दनीय कर्मसे डरना चाहिये, न कि निन्दासे

118

48

निन्दासे डर नहीं, निन्दनीय आचरणसे डर है

120

49

पाप कामनासे होते हैं प्रकृतिसे नहीं

121

50

काम नरकका द्वार है

126

51

बुराईका कारण अपने ही अंदर खोजिये

130

52

मनुष्य शरीर पाप बटोरनेके लिये नहीं है

132

53

परदोष दर्शनसे बड़ी हानि

136

54

संकुचित स्वार्थ बहुत बुरा है

140

55

पापसे घृणा कीजिये

143

56

संकटमें कोई सहायक नहीं होगा

143

57

उपदेशक बननेके पहले योग्यता सम्पादन करना आवश्यक है

145

58

साधकोंके भेद

151

59

परमार्थके साधन

155

60

सच्चे साधकके लिये निराशा कोई कारण नहीं

159

61

श्रेष्ठ साध्यके लिये श्रेष्ठ साधन ही आवश्यक है

160

62

साधनका फल

164

63

शान्ति कैसे मिले?

166

64

त्यागसे शान्ति मिलती ही है

169

65

भगवच्चिन्तनमें ही सुख है

171

66

प्रसन्नता प्राप्तिका उपाय

175

67

सुख शान्ति कैसे हो?

178

68

शाश्वत शान्तिके केन्द्र भगवान् हैं

181

69

शान्तिका अचूक साधन

184

70

धनसे शान्ति नहीं मिल सकती

186

71

सेवा का रहस्य

190

72

अपनी शक्ति सामर्थ्यसे सदा सेवा करनी चाहिये

193

73

सेवा और संयमसे सफलता

196

74

दु:खियोंकी सेवामें भगवत्सेवा

197

75

कुछ प्रश्नोत्तर

200

76

कुछ आध्यात्मिक प्रश्न

205

77

कुछ पारमार्थिक प्रश्नोत्तर

208

78

प्रार्थनाका महत्व

216

79

प्रार्थना

223

80

विश्वासपूर्वक प्रार्थनाका महत्त्व

227

81

गुरु कैसे मिले

231

82

भगवान् परम गुरु हैं

232

83

भोग वैराग्य और बुद्धियोग बुद्धिवाद

236

84

जीवनमें उतारने लायक पदेश उपदेश

239

85

पीछे पछतानेके सिवा और कुछ भी न होगा

241

86

जगत् की असारता

245

87

संयोगका वियोग अवश्यम्भावी हैं

247

88

आसक्तिनाशके उपाय

249

89

भोगत्याग से ही इन्द्रिय-संयम सम्भव है

252

90

ब्रह्मज्ञान या भ्रम

256

91

चार द्वारोंकी रक्षा

259

92

चार काम अवश्य कीजिये

261

93

तीन श्रेष्ठ भाव

262

94

तीन विश्वास आवश्यक हैं

266

95

आत्मा अनश्वर है और देह विनाशी है

269

 

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