निवेदन
इस छोटी-सी पुस्तिकामें श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके कुछ पत्रोंके हिन्दी अनुवादका संग्रह है, जो उन्होंने समय-समयपर अपने सम्बन्धियों और सङ्गियोंको लिखे हैं । आपके प्रत्येक पत्रमें ही कुछ-न-कुछ सीखने योग्य बातें रहती हैं, यदि सब पत्रोंको संग्रह करके प्रकाशित किया जाय तो एक बहुत बड़ा अत्यन्त उपादेय और शिक्षाप्रद ग्रन्थ बन सकता है। परंतु यह काम विशेष प्रयत्नसाध्य है। आज तो बहुत थोड़े-से चुने हुए पत्रोंका यह संग्रह प्रकाशित किया जाता है, आगे और भी किया जा सकता है। धर्म-प्रेमी जनतासे इससे लाभ उठानेकी प्रार्थना है।
विषय-सूची
पत्र-सख्या
1
चेतावनी
2
प्रेम और शरण
3
प्रेम होनेके उपाय
4
निष्काम व्यवहार
5
उद्धार कैसे हो
7
6
मुत्युका मुकदमा या भवरोग
13
सच्ची सलाह
16
8
समय कहाँ
19
9
जीवन्मुक्तिका कर्म
20
10
नाम और प्रेम
24
11
हे पतितपावन! प्राणाधार !!
27
12
चेत क्यो नहीं करते?
28
भक्तिका प्रवाह
29
14
भगवानकी निरंतर स्मृति
15
वैराग्य और प्रेम-प्रतिज्ञा
34
वैराग्य और प्रेमकी पुकार
35
17
प्रभुका प्रेमी ही धन्य है
38
18
द्रष्टाका ध्यान
41
चेत करो ।
45
साधना
21
जप,पाठ और जीवनकी सार्थकता
49
22
जबतक मृत्यु दूर है।
52
23
सत्संग
53
प्रेम और सेवा
56
25
अनन्य प्रेम
57
26
मन स्थिर होनेके उपाय
58
पूर्ण प्रेम कैसे हो?
59
अशोच्यानन्वशोचस्वमू
61
क्रोधनाशका उपाय
62
30
प्रेम कैसे बढ़े?
63
31
सगुणका ध्यान और मातापिताकी सेवा
64
32
भगवत्कृपा और प्रेम
66
33
प्रभुका प्रभाव, गुण और स्वरूप
76
वैराग्य, प्रेम और ध्यान
79
'मैं' का त्याग
84
36
चाह तहाँ राह ।
85
37
प्रेमका बर्ताव
86
मोहजालसे कैसे निकलें ?
39
भजनमें प्रेम होनेका उपाय
87
40
श्रद्धा, सक्ता ही उपाय है
88
सच्चिदानन्द परिपूर्ण है ।
89
42
'मर जाऊँ, माँग नहीं'
90
43
'मैं-मैं' बड़ी बलाय है!
91
44
व्यवहार सुधार और भक्ति
92
कायरता ही मृत्यु है
97
46
'दुखमेव सर्व विवेकिन'
99
47
भोग डुबानेवाले हैं
100
48
'खुला आर्डर'
101
ध्यान कैसे लगे?
50
बुराईके बदले भलाई
102
51
वैराग्य और ध्यान
103
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