प्राक्कथन
प्रस्तुत ग्रन्थ भारतीय संगीत का ऐतिहासिक सिंहावलोकन और उसके क्रमिक विकास का दिग्दर्शन कराने की दृष्टि से लिखा गया है । गत कुछ दशाब्दियों में भारतीय कलाओं का जो विकास हुआ है, उसका स्वरूप हमारे सम्मुख स्पष्ट है । पाश्चात्य जीवन को हमारी संस्कृति से जो नयी दिशाएँ प्राप्त हुई हैं, वे भी किसी से छिपी नहीं हैं । आक्रान्ताओं के भय से संगीत के जो ग्रन्थ दुर्बोध और गुप्त हो गए थे, उनका प्राकट्य अब होने लगा है । भारतीय वेदोक्त ध्वनि के आविर्भाव ने संसार को भारत की ओर पुन आकृष्ट किया है, यह भारत के लिए गौरव की बात है ।
आक्रान्ताओं की कोपभाजन प्रस्तर शिल्प कृतियाँ भारतीय प्राचीन संस्कृति की सुदृढ़ भित्ति का संदेश आज भी दे रही हैं । भारतीय संगीत का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है और उसकी एक एक शाखा पर विस्तारपूर्वक अनेंक बृहत ग्रन्थों का प्रणयन हो सकता है । परन्तु आज का विद्यार्थी संक्षेप में उसकी एक झाँकी करने को व्यग्र है । इस दृष्टिकोण को लेकर बोलचाल की सरल भाषा में मैंने इस ग्रन्थ को प्रस्तुत किया है ।
प्राचीन तथा छिन्न भिन्न ऐतिहासिक सूत्रों को एकबद्ध करना वैसे ही कठिन कार्य है, फिर संगीत जैसी कला पर सप्रमाण ऐतिहासिक दृष्टि प्रदान करना तो और भी दुष्कर है । भारतीय काल निर्णय को पूर्ण मान्यता प्राप्त न होना भी इसमें एक बड़ा अवरोध है ।
भारतीय दृष्टि से सगीत का उद्गम वेद है । जो संगीत वेदों में मार्गण अथवा अन्वेषण का परिणाम है, उसे मार्ग कहा गया है । यह मार्ग सगीत सनातन है, शाश्वत है और सार्वभौम है । लोकरुचि के अनुसार मनोरंजन की दृष्टि से परिवर्तित होनेवाला संगीत देशी पै ।
नाद जनित आनन्द का कोई अन्त नहीं, इसीलिए शास्त्र कारों ने अपने चिंतन और अनुसन्धान द्वारा जिन नियमों का निर्देश किया है, वे हमारे लिए बन्धन न होकर आनन्द के प्रेरक और स्रोत हैं । उनकी अवहेलना हमारी प्रगति में बाधक ही सिद्ध होगी, साधक नहीं । नवीन की खोज में भागनेवाला विज्ञान और बुद्धि धीरे धीरे उन्हों परिणामों को आज प्राप्त करती जा रही है, जो हमारे महर्षियों द्वारा पूर्व में ही प्रति पादित हो चुके हैं । इसीलिए उन महर्षियों को हम आप्त कहते हैं, जिनके समक्ष भूत, भविष्य और वर्तमान, तीनों ही हस्तामलकवत् थे । फिर भी इतिहास के जिज्ञासु को आज सप्रमाण और प्रत्यक्ष बातों से प्रसन्न करना होगा । पिछले एक सहस्र वर्षों में भारतीय संगीत का जो स्वरूप आक्रांता जाति के आग्रह से विकृत हुआ, उसका परिणाम यही है कि इतिहास और प्रमाणों से हमारी आस्था उठ चुकी है । उस आस्था को जोड़ने और पृष्ट करने के लिए हमें अपनेस्वार्णिम इतिहास पर पूर्वाग्रह से मुक्त होकर विशद दृष्टि डालनी होगी ।
यह ग्रन्थ भारतीय संगीत के इतिहास को एक नए क्रम से प्रस्तुत कर रहा है, अत प्रत्येक काल और भारतीय संगीत के प्रकारों को अलग अलग ऐतिहासिक रूप से संजोया गया है । अनुसंधान में प्रवृत्त होनेवाले संगीत प्रेमी, विशेषतया आज का सगीत विद्यार्थी इसे सरलतापूर्वक हृदयंगम कर सकेगा और उसे कोई उलझन नहों होगी ।
कृति के निर्माण में सदैव कोई न कोई प्रेरणा ही कार्य करती है । एक संगीत शिक्षक होने के नाते संगीत के विद्यार्थियों से मेरा संपर्क पुराना है । संगीत परीक्षाओं की कठिनाइयों से मैं सदैव अवगत रहा हूँ । इस ग्रन्थ के पीछे मूल प्रेरक वृत्ति यही रही है, यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं । सगीत के विभिन्न पाठ्यक्रमों में यह ग्रन्थ सहायक सिद्ध होगा, ऐसी मुझे पूर्ण आशा है । यदि इस प्रकाशन का कोई सुफल निकला तो वह भगवती के अर्पण ही होगा, जो विद्यादायिनी और संगीत की अधिष्ठात्री देवी है ।
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