बेड़नी करीला माता के मन्दिर में मन्नत माँगती है कि माता मुझे लड़का कभी मत देना। मुझे तो ऐसी लड़की देना जो मुझसे भी ज्यादा सुन्दर हो और कोई बड़ा मालगुजार ही मेरी बेटी की नथ उतारकर उसका सिर ढका करे।
पर बसन्ती अपनी बिटिया हेमन्ती के लिए ऐसी मन्नत नहीं माँग पायी। हेमन्ती के भाग में तो कलेक्टरनी बनना लिखा था।
बुन्देली कवि श्री बटुक चतुर्वेदी का यह उपन्यास बुन्देलखंड की बेड़नियों के जीवन को आधार बनाकर लिखा गया है, जिसमें एक बेड़नी की बेटी की शिक्षा-दीक्षा और कलेक्टर बन जाने की व्यथा-कथा कही गयी है।
यह उपन्यास राजनीतिक जीवन के बीच एक नारी कलेक्टर के संघर्ष और हार न मानने के साहस का भी बयान करता है। ग्रामीण और बनवासी परिवेश में बुना गया यह उपन्यास हमारे समय के शासकों और प्रशासकों की लालसाओं और स्वार्थवृत्ति को भी रेखांकित करता है।
बुन्देली और खड़ी बोली मिश्रित यह उपन्यास आँखों देखे हाल ही तरह रचा गया है जिसमें बुन्देली लोकगीतों की मिठास भी घुली है-
'जो मैं ऐसो जानती,
प्रीत हरेगी चैन । नज़र कैद में राखती,
अपने दोऊ नैन।'
बुन्देलखंड की ग्रामीण नर्तकी की पुत्री के उत्थान की रोचक कहानी जिसने अपनी संस्कृति और नर्तन गायन कला को अक्षुण्ण रखते हुए उन्नति के ऐसे शिखर छुए कि अंत में जिला कलेक्टर के पद पर पहुंच कर शोषित पीड़ितों को न्याय दिलाया और शोषक, पीड़क, दबंग, अत्याचारियों को चुन-चुन कर दंडित कराया।
इस उपन्यास को पढ़कर आप बुंदेलखंडी संस्कृति के रोचक, मधुर और रसीले पहलुओं के दर्शन के साथ-साथ लोकगीतों का मनोमुग्धकारी आनंद और मुहावरेदार बुंदेली भाषा का कमाल भी!
इसे पढ़कर लगेगा आप बुंदेलखंड के रसीले राई नृत्य, रंगीले लोकगीतों तथा सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का भरपूर आनंद ले रहे हैं।
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